Wednesday, September 18, 2024
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ईद-ए-मिलाद पर ट्रैफिक से लेकर पुलिस-प्रशासन सब की व्यवस्था, कैद में भगवान गणेश की मूर्ति: कर्नाटक में और क्या-क्या करेगी कॉन्ग्रेसी सरकार?

कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार ईद के जुलूस के लिए पूरी तैयारी करती है, तो गणेश चतुर्थी जैसे हिंदू पर्वों की पूरी तरह से अनदेखी।

कर्नाटक में जहाँ ईद-ए-मिलाद के लिए हर मोड़ पर ट्रैफिक से लेकर पुलिस की व्यवस्था की गई है, वहीं गणेश चतुर्थी के जश्न में भगवान गणेश की मूर्ति को “कैद” कर दिया गया। ये स्थिति एक बार फिर इस सवाल को खड़ा करती है कि हिंदुओं के धार्मिक आयोजनों पर सुरक्षा व्यवस्था की जगह उन पर अंकुश क्यों लगाया जाता है? और अगर सुरक्षा का दावा किया जा रहा है, तो भगवान गणेश की मूर्ति को पुलिस वैन में क्यों ले जाया गया? ऐसा लग रहा है कि कर्नाटक की कॉन्ग्रेसी सरकार भगवान से भी ज़्यादा कानून-व्यवस्था को भगवान मान बैठी है, और अगर ये कानून हिंदू परंपराओं से टकरा जाए, तो गणेश जी तक को पुलिस स्टेशन में ले जाना पड़ता है।

ईद-ए-मिलाद पर प्रशासन अलर्ट, और गणेश चतुर्थी पर?

कर्नाटक के बेंगलुरु में 16 सितंबर 2024 के लिए ईद-ए-मिलाद के अवसर पर पुलिस ने शहरभर में ट्रैफिक को मैनेज करने के लिए एडवाइजरी जारी की है। हर गली-मोहल्ले में पुलिस तैनात की गई है, और एक-एक सड़क पर नजर रखी जाएगी कि कहीं कोई जुलूस के दौरान असुविधा न हो। बेंगलुरु पुलिस ने बाकायदा ट्रैफिक रूट्स को बदल दिया, ताकि ईद के जुलूसों को किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। लेकिन दुख की बात यह है कि इसी ट्रैफिक व्यवस्था में गणेश विसर्जन के जुलूस के दौरान भगवान गणेश को “कैद” किया गया।

एक तरफ ईद-ए-मिलाद पर पूरी पुलिस फोर्स मुसलमानों की भीड़ के लिए अलर्ट मोड पर थी, तो दूसरी तरफ हिंदू धर्म के त्योहार पर भगवान की मूर्ति को ट्रैफिक और लॉ एंड ऑर्डर का हवाला देते हुए पुलिस वैन में ले जाया गया। क्या भगवान गणेश की भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल था, या फिर यह हिंदू त्योहारों के प्रति प्रशासन की दोहरी मानसिकता का परिणाम था?

क्या हिंदू त्योहार पर सुरक्षा का अभाव है?

सोचने वाली बात है कि जब ईद-ए-मिलाद के लिए सरकार इतनी चौकन्नी है, तो गणेश चतुर्थी पर ऐसा क्या हो गया कि भगवान गणेश की मूर्ति को पुलिस की हिरासत में रखना पड़ा? यह वाकया एक सच्चाई को उजागर करता है कि हिंदू त्योहारों पर सरकार का रवैया अलग होता है। प्रशासन के लिए ईद का जुलूस शांति से निकल जाए, इसके लिए हर संभव इंतजाम किए जाते हैं, लेकिन जब गणेश चतुर्थी की बात आती है, तो हिंदुओं के धार्मिक प्रतीक को ‘कानून व्यवस्था’ के नाम पर पुलिस वैन में बंद किया जाता है।

जरा सोचिए, ईद पर जुलूस निकलता है और प्रशासन पूरी ताकत लगाता है कि किसी भी इस्लामी मजहबी को दिक्कत न हो। वहीं गणेश चतुर्थी पर अगर कोई हिंदू परिवार भगवान गणेश की मूर्ति को विसर्जन के लिए लेकर जा रहा है, तो उसे क्या मिलता है? पुलिस, जो हिंदुओं के धार्मिक अधिकारों को ‘कंट्रोल’ करने का काम करती है।

गणेश जी की ‘गिरफ्तारी’ का सच?

बेंगलुरु में गणेश चतुर्थी के दौरान की एक वायरल तस्वीर ने सबको चौंका दिया, जिसमें गणेश जी की मूर्ति पुलिस वैन में रखी गई थी। सोशल मीडिया पर यह तस्वीर तेजी से फैली, और लोग सवाल करने लगे कि यह क्या हो रहा है? क्या भगवान गणेश को भी कर्नाटक की कॉन्ग्रेसी सरकार ने “गिरफ्तार” कर लिया? असल में, यह घटना कर्नाटक के यादगिरी जिले की है, जहाँ गणेश चतुर्थी के जुलूस के दौरान प्रशासन ने कहा कि सुरक्षा कारणों से गणेश जी की मूर्ति को विसर्जन स्थल तक पुलिस वैन में लेकर जाना होगा। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब ईद-ए-मिलाद के जुलूसों को पुलिस सुरक्षा में बिना किसी रुकावट के जाने दिया जा सकता है, तो गणेश जी के जुलूस को क्यों नहीं?

क्या यही “धर्मनिरपेक्षता” है?

इस तरह की घटनाएँ हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या यह वही ‘धर्मनिरपेक्षता’ है जिसका दावा कॉन्ग्रेस की सरकारें करती हैं? जब ईद के जुलूस के लिए सड़कों पर बैरिकेड लगाए जाते हैं, ट्रैफिक डायवर्ट किया जाता है, और पुलिस बल तैनात होते हैं, तो गणेश चतुर्थी पर भगवान की मूर्ति को ‘गिरफ्तार’ क्यों करना पड़ता है? क्या यह प्रशासन का दोहरा रवैया नहीं है?

इसमें कोई संदेह नहीं है कि सभी धर्मों का सम्मान होना चाहिए, लेकिन अगर गणेश चतुर्थी जैसे प्रमुख हिंदू त्योहारों पर भीड़ और कानून-व्यवस्था के नाम पर भगवान को ही ‘कैद’ करना पड़े, तो यह धर्मनिरपेक्षता नहीं, बल्कि भेदभाव का प्रतीक है।

ईद-ए-मिलाद और गणेश चतुर्थी की तुलना

ईद-ए-मिलाद और गणेश चतुर्थी, दोनों धार्मिक त्योहार हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन की प्रतिक्रिया में इतना बड़ा अंतर क्यों है? क्या गणेश चतुर्थी के दौरान सड़कों पर भीड़ नहीं होती? क्या विसर्जन के दौरान कोई ट्रैफिक व्यवधान नहीं होता? फिर क्यों ईद के लिए तो रूट बदल दिए जाते हैं और गणेश चतुर्थी के लिए भगवान गणेश की मूर्ति को पुलिस वैन में रखना पड़ता है?

ईद के जुलूस के लिए पुलिस प्रशासन सड़कें बंद करवा सकता है, पर हिंदू त्योहारों पर ऐसा करना उनके लिए मुश्किल क्यों हो जाता है? क्या गणेश विसर्जन का जुलूस इतना छोटा था कि उसे पुलिस वैन में ‘कैद’ कर देना ही एकमात्र उपाय था?

यह दिखावा कब तक चलेगा?

सरकार की ‘धर्मनिरपेक्षता’ सिर्फ कागजों पर है या फिर केवल कुछ विशेष धर्मों के लिए? कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर पहले भी तुष्टिकरण की राजनीति के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन इस घटना ने इस धारणा को और मजबूत किया। ईद-ए-मिलाद के जुलूस को शांतिपूर्वक निकालने के लिए पूरी व्यवस्थाएँ की गईं, जबकि गणेश चतुर्थी के विसर्जन के दौरान भगवान गणेश की मूर्ति को ‘कैद’ कर लिया गया। यह केवल धार्मिक भावनाओं का अपमान नहीं, बल्कि इस बात का स्पष्ट संकेत है कि सरकार की प्राथमिकताएं कहाँ हैं।

कर्नाटक की कॉन्ग्रेसी सरकार का असली चेहरा

कर्नाटक की कॉन्ग्रेसी सरकार ने एक बार फिर दिखा दिया कि उनकी प्राथमिकताएँ क्या हैं। ईद-ए-मिलाद के लिए तो प्रशासन चौकन्ना था, लेकिन गणेश चतुर्थी के दौरान भगवान की मूर्ति को ही कैद कर लिया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि कर्नाटक में सरकार की प्राथमिकता हिंदू त्योहारों की सुरक्षा नहीं, बल्कि उन्हें सीमित करने की है। जब तक यह दोहरा रवैया जारी रहेगा, तब तक हिंदू समाज के धार्मिक अधिकारों का हनन होता रहेगा।

अब यह सवाल सरकार से है कि क्या वे अपनी ‘धर्मनिरपेक्षता’ का सही मायने में पालन करेंगे, या फिर भगवान गणेश की मूर्ति को ‘गिरफ्तार’ करने जैसे कदम उठाते रहेंगे?

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
Shravan Kumar Shukla (ePatrakaar) is a multimedia journalist with a strong affinity for digital media. With active involvement in journalism since 2010, Shravan Kumar Shukla has worked across various mediums including agencies, news channels, and print publications. Additionally, he also possesses knowledge of social media, which further enhances his ability to navigate the digital landscape. Ground reporting holds a special place in his heart, making it a preferred mode of work.

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