लोकसभा चुनावों के मद्देनजर कॉन्ग्रेस का हाथ थामकर राजनीति के मैदान में उतरने वाली कॉन्ग्रेस की पूर्व नेता उर्मिला मातोंडकर ने गुरुवार को सीएए के ख़िलाफ़ बोलते हुए मोदी सरकार द्वारा लाए गए कानून की तुलना ब्रिटिश समय में लागू हुए रॉलेट कानून से की। मातोंडकर ने महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में ये टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि 1919 के रॉलेट एक्ट की तरह 2019 के नागरिकता संशोधन कानून को इतिहास के काले कानून के रूप में जाना जाएगा।
#WATCH Urmila Matondkar:After end of WW II in 1919, British knew unrest was spreading in India&that may rise after war was over. So, they brought a law commonly known as Rowlatt Act. That 1919 law&Citizenship (Amendment)Act of 2019 will be recorded as black laws in history(30.1) https://t.co/tIoLS2HTh7 pic.twitter.com/rmmnb52Kk4
— ANI (@ANI) January 31, 2020
उर्मिला कहा, “1919 में दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने बाद अंग्रेज यह समझ गए थे कि हिंदुस्तान में उनके खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है। ऐसे में उन्होंने रॉलेट एक्ट जैसे कानून को भारत में लागू किया। वर्ष 1919 के इस रॉलेट एक्ट और 2019 के नागरिकता संशोधन कानून को अब इतिहास के काले कानून के रूप में जाना जाएगा।”
हालाँकि, ये बात साफ है कि उर्मिला मातोंडकर ने सीएए के साथ रॉलेट एक्ट की तुलना मोदी सरकार की छवि को तार-तार करने के लिए किया। लेकिन शायद इस दौरान वे ये नहीं समझ पाईं कि रॉलेट एक्ट क्या था और सीएए क्या है। और आखिर क्यों भूलकर कर भी इनके बीच तुलना नहीं होनी चाहिए।
दरअसल, रॉलेट कानून ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से निर्मित कानून था। इसके अनुसार ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए उसे जेल में बंद कर सके। लेकिन, मोदी सरकार द्वारा लाया गया कानून तो केवल इंसानियत की सतह पर है। जिसके तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के सताए लोगों को एक छत मिलेगी। इसलिए इन दोनों कानूनों को एक दूसरे से जोड़ना, वो भी सिर्फ़ इसलिए कि एक बड़ा तबका इसका विरोध कर रहा है, निराधार है।
अगर वाकई आजाद भारत के इतिहास में किसी कानून की तुलना उर्मिला मातोंडकर को रॉलेट एक्ट से करनी है। तो वो उसी पार्टी की देन है। जिसके सहारे वो साल 2019 में राजनीति में आईं।
साल 1971 में इंदिरा काल में आया मीसा कानून था। एक ऐसा विवादस्पद कानून जिसमें कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली संस्थाओं को बहुत अधिक अधिकार दे दिए गए और आपातकाल के दौरान (1975-1977) इन्ही में कई संशोधन करके देखते ही देखते राजनीतिक विरोधियों को उनके घरों से, ठिकानों से उठाकर जेल में डाल दिया गया। कहा जाता है कि इस कानून के तहत इंदिरा गाँधी पूरी तानाशाह हो गई थीं। इस कानून के तहत करीब 1 लाख लोगों को जेल में डाला गया था। इसका इस्तेमाल खासकर अपने विपक्षियों, पत्रकरों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डालने के लिए किया गया था।