सियासत की इस पिच का नाम है बिहार। प्रैक्टिस उत्तर प्रदेश के हाथरस में हो रही। मकसद है दो-दो बार आम चुनावों के पिच पर औंधे मुँह गिरे राहुल गाँधी और उत्तर प्रदेश में ढेर हुई उनकी बहन प्रियंका गाँधी को फिर से लॉन्च करना।
इसके लिए परिवार का वफादार मीडिया गिरोह फिल्डिंग में जुट गया है। ‘दलित प्रेम’ को गेंद बनाकर बिहार विधानसभा चुनाव के लिए उछाला जा रहा है, ताकि बीजेपी नीत एनडीए के हाथ से जीती हुई बाजी फिसल जाए।
ऐसा हम नहीं कह रहे। ये मीडिया गिरोह की हालिया रिपोर्टों से झलकता है। हम सिलसिलेवार तरीके से यह जानेंगे कि बिहार चुनाव से ठीक पहले हाथरस केस पर सियासी रोटी सेंकने की कोशिश कैसे हो रही है? सोशल मीडिया में अमेरिका के ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ की तर्ज पर ‘दलित लाइव्स मैटर’ ट्रेंड क्यों कराया जा रहा?
अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉएड की मौत के बाद उक्त ट्रेंड चला था, जिसकी नक़ल कर हाथरस केस पर प्रोपेगेंडा फैलाने में की जा रही। विदेशी आन्दोलनों से नक़ल कर सुर्खियाँ बटोरने की ये कवायद जामिया में हुए प्रदर्शनों में भी दिखा था, जब आयशा और लदीदा को पेश किया गया था। दोनों ने हिजाब पहन सूडान की सलाहा की नक़ल कर दीवार पर खड़े होकर स्पीच दी थी।
अब यही कीड़ा बिहार चुनाव से पहले कुलबुलाने लगा है। वैसे तो ‘राहुल गाँधी हैज अराइव्ड’ और ‘राहुल इज बैक’ कर के तो हर साल कई लेखों के जरिए उन्हें लॉन्च किया जाता है। इसी क्रम में इस बार हाथरस को मुद्दा बनाया जा रहा है। ‘इंडिया टुडे’ में एक प्रकाशित खबर में राहुल-प्रियंका की तुलना इंदिरा गाँधी से की गई है, जिन्होंने 1977 में बिहार के बेल्ची में दलितों के नरसंहार के बाद वहाँ भाषण दिया था।
तो क्या ऐसे लेख लिखने वाले मानते हैं कि ये नेतागण सिर्फ वोट्स के लिए ऐसा कर रहे हैं और उन्हें पीड़ितों का दुःख-दर्द सुनने से कोई मतलब नहीं है? और क्या ये मीडिया संस्थान इस चीज का महिमामंडन भी कर रहे? राहुल का हाथरस जाने के क्रम में ‘सुर्खियाँ’ बनने और प्रियंका का वाल्मीकि मंदिर में प्रार्थना करने को ‘मास्टरस्ट्रोक’ बताया जा रहा है। साथ ही बिहार में चुनावी नैरेटिव बदलने की बात कही गई है।
तो क्या मान लिया जाए कि ये सब बिहार चुनाव के लिए हो रहा है, पीड़ित परिवार के लिए नहीं? इससे राहुल व प्रियंका गाँधी का गुणगान करने वाले मीडिया संस्थानों को इसलिए कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि इससे बिहार में भाजपा के वोटरों के प्रभावित होने की संभावना है? ‘इंडिया टुडे’ को इस बात का भी अफ़सोस है कि रामविलास पासवान और जीतन राम माँझी जैसे दलित नेता राजग का हिस्सा क्यों हैं। स्पष्ट है, बिहार चुनाव को हाथरस के नाम पर प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है।
इसी तरह शेखर गुप्ता की ‘द प्रिंट’ ने भाजपा नेताओं के हवाले से दावा किया है कि जिस तरह से उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार का हाथरस मामले में रवैया रहा है, इससे डर है कि बिहार में भाजपा पर प्रभाव पड़ सकता है। एक अनाम भाजपा नेता के हवाले से दावा किया गया है कि सीएम योगी ने तो तेज़ी से एक्शन लिया, लेकिन जिस तरह विपक्ष ने सक्रियता दिखाई है, बिहार में इस मामले को उठाए जाने से भाजपा को खतरा हो सकता है।
हालाँकि, गया के पूर्व सांसद और बिहार के महादलित नेता हरि माँझी को ऐसा नहीं लगता। उन्होंने तो राहुल गाँधी के हाथरस जाने के क्रम में गिरने और प्रियंका गाँधी के बयानों को एक्टिंग करार दिया। वो इन दोनों को ‘पप्पू-पिंकी’ कहते हैं। माँझी कहते हैं कि ‘दलितों पर अत्याचार सिर्फ़ भाजपा शासित राज्य में होता है, बाक़ी ग़ैर भाजपा शासित राज्य में पलकों पर बिठाकर रखते है’- ऐसा वामपंथी-कॉन्ग्रेसी और उनके दरबारी पत्रकारों का तर्क रहता है।
उनका आरोप है कि यही लोग ग़ैर-भाजपा शासित राज्य में दलितों पर हो रहे अत्याचार पर चुप रहते हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर अख़बार की दो कतरनें शेयर कर के हाथरस पर हंगामा करने वालों को आड़े हाथों लिया। इसमें से एक में पिछले एक महीने में नाबालिगों के साथ हुई हैवानियत की 12 घटनाओं का जिक्र था और सभी आरोपित मुस्लिम थे। एक अन्य मेरठ की खबर थी, जहाँ एक सिनेमा हॉल के पास दलित लड़की से गैंगरेप की बात थी और आरोपित मुस्लिम थे।
गया से लगातार 10 वर्ष सांसद रह चुके हरि माँझी ने पूछा कि दलितों के ठेकेदार इन ख़बरों पर क्यूँ नहीं बोलते? मायावती से लेकर रावण, उदित राज तक सब चुप रहेंगे। उन्होंने कहा कि इन पर बोलने से इनका राजनीतिक करियर और खोखला सेक्युलरिज़म ख़तरे में आ जाएगा। बिहार चुनाव पर उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस के लोग अभी और खिसियाएँगे, क्योंकि आगामी बिहार चुनाव में उन्हें नील बटे सन्नाटा मिलेगा।
दलितों के ठेकेदार इस पर क्यूँ नहीं बोलते? मायावती जी से लेकर रावण से लेकर उदित राज सब चुप रहेंगे। क्यूँकि इनका राजनीतिक कैरीयर और खोखला सेक्युलरिज़म ख़तरे में आ जाएगा । “बेटी का अस्मत लूटने वाला दरिंदा है दरिंदा” दरिंदे को दरिंदे के नज़र से देखो pic.twitter.com/SDFXeML1Cj
— हरि मांझी (@HariManjhi) October 2, 2020
उन्होंने कहा कि उन्हें सुनने में आया है एक दलित ठेकेदार पार्टी के प्रचार के लिए बिहार आए हुए हैं जो, कि कुछ दिन पहले भाजपा में थे। साथ ही तंज कसा कि वो जैसे ही कॉन्ग्रेस में गए, उनका हश्र क्या हुआ हम सभी जानते है। ज्ञात हो कि कॉन्ग्रेस पार्टी के अनुसूचित जाति-जनजाति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदित राज फ़िलहाल बिहार दौरे पर हैं। बिहार में लगे सारे ‘कल कारखानों’ और ‘विकास कार्यों’ का श्रेय कॉन्ग्रेस को देते फिर रहे हैं।
बता दें कि बिहार के तीन बड़े दलित नेताओं का राजग के पाले में आना विपक्षी पार्टियों को अखर रहा है और इसके जरिए दलित मतों को भाजपा से तोड़ने की कोशिश के तहत ये सब किया जा रहा है। बिहार में दलित वोटरों की संख्या 16% है, जो किसी भी सीट पर हार-जीत का समीकरण तय करने में सक्षम है। लगभग इतनी ही संख्या मुस्लिम वोटरों की है और 12% यादव हैं। ऐसे में राजद-कॉन्ग्रेस अपने लिए 28% ‘माई’ वोटरों के अलावे दलितों का वोट भी काटना चाहती है।
पहले बड़े नेता हैं रामविलास पासवान और अब उनके पुत्र चिराग पासवान भी राजनीति में अच्छी तरह सक्रिय हैं, जो आजकल लोजपा के सारे निर्णय ले रहे हैं। लोजपा के राजग में होने से बिहार में 5% पासवान वोटरों के लोजपा के साथ होने का भय इन दलों को सता रहा है, क्योंकि रामविलास इस वर्ग के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं, जो कांशीराम और मायावती से भी 15 वर्ष पहले राजनीति में आए थे।
दूसरे तुरुप का इक्का हैं जीतन राम माँझी, जो बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं और अपनी अलग पार्टी बना कर चुनावी मैदान में उतरते रहे हैं। चुनाव के ऐन वक़्त पर उन्हें अपने पाले में कर नीतीश कुमार ने महादलितों के वोट्स को साधने में मजबूती हासिल कर ली है। खासकर गया और जहानाबाद व उससे सटे जिलों में माँझी से चुनाव प्रचार करवाया जाएगा। वो अपने बयानों के कारण पहले से ही सुर्ख़ियों में रहते हैं।
बिहार में तीसरे जिस वाइल्ड कार्ड की एंट्री हुई है, वो हैं अशोक चौधरी। बिहार सरकार में मंत्री अशोक चौधरी को नीतीश कुमार ने जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष का बड़ा पद देकर एक बड़ा दाँव खेला है। कॉन्ग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे अशोक चौधरी राबड़ी मंत्रिमंडल का भी हिस्सा रहे हैं और उन्होंने प्रदेश में कॉन्ग्रेस को मजबूत करने के लिए काफी मेहनत की थी। जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार के नीचे अब वो पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं।
ये तीन इक्के कॉन्ग्रेस-राजद के लिए परेशानी का सबब हैं और बिहार चुनाव से पहले ये लोग किसी ऐसे मुद्दे को उठाने की फ़िराक में थे, जिससे बिहार में दलितों को भड़काया जा सके। हाथरस के रूप में उन्हें ये मुद्दा मिला, वरना बलरामपुर में भी एक दलित समुदाय की लड़की का गैंगरेप हुआ और इनमें से कोई पूछने तक नहीं गया, क्योंकि आरोपित मुस्लिम हैं। हाथरस के नाम पर अब मीडिया भी माहौल बना रहा।
‘मनी कण्ट्रोल’ लिखता है कि चुनाव से पहले बिहार में हाथरस मुद्दे को लेकर आक्रोश है और बिहार के 243 में से उन 38 सीटों पर राजग को परेशानी हो सकती है, जो दलितों के लिए आरक्षित हैं। इसमें तेजस्वी यादव के बयान का जिक्र है, जिन्होंने भाजपा सरकार के ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान पर तंज कसते हुए भाजपा को दलित-विरोधी और महिला-विरोधी पार्टी बताया। राजद के बाकी नेता भी यही राग अलाप रहे हैं।
इसी तरह ‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ भी लिखता है कि बिहार में भाजपा के दलित नेता हाथरस मामले के उठने के बाद डरे हुए हैं। इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान का बयान है, जिन्होंने कहा है कि पीएम मोदी ने सीएम योगी को इस मामले में सख्त कार्रवाई करने की बात कह के अपना काम कर दिया है। उनका कहना है कि हाथरस मामले को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है और स्पष्ट है कि इसमें मीडिया ट्रायल चल रहा है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री का कहना है कि जब प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री से कड़ी कार्रवाई करने को कहा है, तो हमें इंतजार करना चाहिए। उन्होंने इस मामले को सोशल मीडिया पर पोर्नोग्राफिक कंटेंट्स को भी जोड़ कर देखा और कहा कि सोशल मीडिया पर अनुशासन की त्वरित ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि जाँच तो होनी चाहिए लेकिन मीडिया ट्रायल को टाला जा सकता था। एक अन्य दलित नेता का बयान लेकर डराने की कोशिश की गई है।
इसी तरह सरसंघचालक मोहन भागवत के बयान को लेकर 2015 बिहार चुनाव में डर फैलाया गया था। ये हौवा फैलाया गया कि भाजपा आरक्षण ख़त्म कर देगी। साथ ही पूरे चुनाव में इसी को मुद्दा बनाया गया। उस समय भाजपा और जदयू का साथ नहीं था, और भाजपा को हार का मुँह देखना पड़ा। जैसे पिछले बार ‘आरक्षण ख़त्म होने’ की बात की गई, इस बार ‘भाजपा शासित राज्यों में दलित लड़की से कथित बलात्कार’ को भुनाने की कोशिश हो रही।