कॉन्ग्रेस मतलब क्या? जो अपनी गलतियों से नहीं सीखे। जो इतिहास से सबक ना ले। जो हमेशा उस पाले में खड़ी नजर आए जो देश और जनमत के खिलाफ हो।
यदि कॉन्ग्रेस के चरित्र के मूल के में ये सब बातें न होती तो क्या कारण था कि वह साल भर से भी कम समय में दूसरी बार एक जैसी ही गलती करती। आज जिस तरह से वह चीन के प्रोपेगेंडा के साथ खड़ी दिख रही है, ठीक इसी तरह वह पिछले साल पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा के साथ खड़ी नजर आई थी, जब जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाया गया था।
दिलचस्प यह है कि कश्मीर भी नेहरू की ऐतिहासिक भूल थी और चीन के साथ सीमा विवाद भी उनकी ही ‘आकांक्षाओं’ की उपज है। 370 हटाए जाने के बाद भी कॉन्ग्रेस ने पार्टी के भीतर की आवाजों को अनसुना कर दिया था और अबकी बार भी वह यही दोहरा रही है।
उस समय भी कॉन्ग्रेस और उसके चाटुकारों के प्रोपेगेंडा तथा नेहरू की ऐतिहासिक भूलों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मुकाबिल थे। यही वजह है कि आज दोनों ने एक के बाद एक चीन और उसकी जुबान बोलने वालों को पाठ पढ़ाया।
मोदी ने मन की बात में चीनी सुर में बोलने वालों को राष्ट्रधर्म का पाठ पढ़ाते हुए कहा कि जिन परिवारों ने अपने बेटों को खोया है, वे अब भी अपने बच्चों को सेना में भेज रहे हैं। उनकी भावना और त्याग अतुलनीय है। साथ ही यह भी दोहराया कि भारत अपनी संप्रभुत्ता की रक्षा के लिए संकल्पबद्ध है। उन्होंने कहा कि लद्दाख में भारत की भूमि पर आँख उठाकर देखने वालों को करारा जवाब मिला है, भारत मित्रता निभाना जानता है तो आँख में आँख डालकर देखना और उचित जवाब देना भी जानता है।
The world has seen India’s commitment to protecting its borders & sovereignty. In Ladakh, a befitting reply has been given to those coveting our territories: PM Narendra Modi during #MannKiBaat (file photo) pic.twitter.com/bCf0oCgqoa
— ANI (@ANI) June 28, 2020
इसके कुछ घंटों बाद एएनआई को दिए इंटरव्यू में कहा, “भारत विरोधी प्रोपेगेंडा का जवाब देने में हम पूरी तरह सक्षम हैं। लेकिन तब तकलीफ होती है जब इतने बड़े राजनीतिक दल का अध्यक्ष ऐसे वक्त में ओछी राजनीति करने लगे।”
#WATCH “Parliament honi hai, charcha karni hai to aaiye, karenge. 1962 se aaj tak do-do haath ho jayein…,” HM Amit Shah on Rahul Gandhi’s “Surender Modi” tweet .
— ANI (@ANI) June 28, 2020
Full interview with ANI Editor Smita Prakash to be released at 1 pm pic.twitter.com/ngGYyqkwQq
उन्होंने कहा, “चर्चा करनी है आइए, करेंगे। कोई चर्चा से नहीं डरता है। 1962 से आज तक दो-दो हाथ हो जाए। मगर जब देश के जवान संघर्ष कर रहे हैं, सरकार स्टैंड लेकर ठोस कदम उठा रही है उस वक्त ऐसे बयान नहीं देने चाहिए।”
ऐसा नहीं है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मसलों पर इस तरह के स्टैंड के लिए कॉन्ग्रेस को बीजेपी से ही नसीहतें मिल रही हैं। उसकी खुद की पार्टी और सहयोगी दल के नेता भी इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और कॉन्ग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा ने ट्विटर पर लिखा है कि एकजुट होने के वक्त हो रही राजनीतिक कीचड़बाजी से हम दुनिया में तमाशा बन गए हैं।
It’s highly unfortunate that the national discourse surrounding the surge in Chinese transgressions has deteriorated into political mud-slinging.
— Milind Deora मिलिंद देवरा (@milinddeora) June 27, 2020
When we should be united in condemning China’s actions & seeking solutions, we are exposing our divisions
देवड़ा ने कहा, “यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब चीन के अतिक्रमण के खिलाफ राष्ट्रीय आवाज एक होनी चाहिए, तब उसकी जगह राजनीतिक कीचड़बाजी हो रही है। हम दुनिया में तमाशा बन गए हैं। चीन के खिलाफ एकजुट होने की जरूरत है।”
इससे पहले शनिवार (जून 27, 2020) को राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार ने राहुल गाँधी पर निशाना साधते हुए कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। 1962 के युद्ध का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि किसी पर आरोप लगाते समय यह भी देखना चाहिए कि अतीत में क्या हुआ था। इसे भूला नहीं जा सकता है। चीन ने हमारी 45 हजार वर्ग किमी क्षेत्र में अतिक्रमण कर लिया था।
लेकिन लगता नहीं कि कॉन्ग्रेस का राष्ट्रीय हितों से कोई सरोकार है। यही कारण है कि चीनी प्रोपेगेंडा के साथ खड़े नहीं होने के कारण उसने संजय झा को प्रवक्ता पद से हटा दिया। संजय झा ने हाल ही में एक लेख के माध्यम से पार्टी की कार्यशैली पर सवाल खड़ा किया था।
कॉन्ग्रेस की कार्यशैली को लेकर ऐसी ही प्रतिक्रियाएँ सोशल मीडिया में भी सामने आ रही हैं। एक हालिया सर्वे में भी चीन के मोर्चे पर कॉन्ग्रेस को लोगों ने नकार दिया है। एबीपी न्यूज़ और सी वोटर की ओर से कराए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई कि चीन के साथ हालिया तनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बनी हुई है। सर्वे में करीब 73 फीसदी लोगों ने उनके नेतृत्व में भरोसा जताया। वहीं सर्वे में शामिल करीब 61 फीसदी लोगों का कहना था कि कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गॉंधी भरोसे के लायक नहीं हैं।
राहुल गाँधी का व्यवहार इन दिनों भारत में चीनी एजेन्ट जैसा लग रहा है। राहुल गाँधी लगातार सरकार से सवाल कर रहे हैं। वह विपक्ष के नेता हैं सवाल उठाना उनका अधिकार है, लेकिन उनके सवालों से ऐसा क्यों लग रहा है कि वह देश के गौरव से बेवजह खिलवाड़ कर रहे हैं।
राहुल गाँधी के ट्विटर संदेशों के लहजे से साफ पता चलता है कि वह देश की जनता को ये संदेश देना चाहते हैं कि भारतीय सीमाओं में चीनी सेना घुस गई है और देश की सुरक्षा खतरे में है। इस अनर्गल प्रलाप से देश की प्रतिष्ठा को होने वाले नुकसान की चिंता राहुल गाँधी को नहीं है।
बता दें कि कॉन्ग्रेस का शीर्ष परिवार जब चीन के हित में अपनी ही सरकार के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मसले पर लगातार बोल रही है, चीन के भीतर वहॉं की सरकार के खिलाफ नाराजगी लगातार बढ़ रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि चीनी सरकार मारे गए सैनिकों का आँकड़ा सार्वजनिक नहीं कर रही है और साथ ही दवाब डालकर सैनिक के परिवारों पर चुप कराने में जुटी हुई है।
राहुल गाँधी चीन के समर्थन में अपरोक्ष कैंपेन ऐसे ही नहीं चला रहे हैं। उनके चीन से बड़े मधुर संबंध हैं। इस बात का सबूत साल 2017 में पूरे देश को मिल चुका है। जब भारत और चीन के बीच डोकलाम में विवाद चल रहा था, तब तत्कालीन कॉन्ग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने 8 जुलाई को आधी रात को अंधेरे में तत्कालीन चीनी राजदूत लुओ झाओहुई से मुलाकात की थी। कॉन्ग्रेस ने इस बारे मे जानकारी छुपाने की कोशिश भी की।
2008 को सोनिया गाँधी की अगुवाई वाली कॉन्ग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पार्टी के बीच एक समझौता होने की बात भी सामने आ चुकी है। इसके अलावा ये बातें भी सामने आई है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने समय-समय पर राजीव गाँधी फाउंडेशन में बहुत बड़ी मात्र में ‘वित्तीय सहायता’ दी थी।
वैसे, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय किए जाने के समय भी कॉन्ग्रेस के कुछ नेताओं ने पार्टी को आइना दिखाया था और पार्टी लाइन से अलग रुख अपनाते हुए जनभावना के साथ खड़े हुए थे। भुवनेश्वर कालिता ने यह कहते हुए, ‘कॉन्ग्रेस आत्महत्या कर रही है और मैं इसमें उसका भागीदार नहीं बनना चाहता’, राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था । जर्नादन द्विवेदी, दीपेंद्र हुड्डा, मिलिंद देवड़ा जैसे गॉंधी परिवार के करीबी रहे नेताओं ने भी पार्टी से इतर राय रखने में वक्त जाया नहीं किया था।
जर्नादन द्विवेदी ने उस समय कहा था, “मैंने राम मनोहर लोहिया जी के नेतृत्व में राजनीति की शुरूआत की थी। वह हमेशा इस अनुच्छेद के खिलाफ थे। आज इतिहास की एक गलती को सुधार लिया गया है।” इतना कुछ होने के बाद भी पार्टी ने सीख बजाए नेहरू की करतूतों को ढकने के लिए राष्ट्र विरोधी प्रोपेगेंडा के सुर में सुर मिलाया।
अब देखना दिलचस्प होगा कि उपर जिक्र की गई अपनी बीमारियों और ‘शीर्ष परिवार जो कहे वही सही’, वाली मानसिकता से निकलने का कॉन्ग्रेस कोई रास्ता तलाश पाती है या फिर इतिहास के पन्नों में ऐतिहासिक भूल के तौर पर दफन हो जाना ही उसकी नियति है।