जामिया वालों ने दिसंबर 2019 को क्या किया था? बसें जलाई थीं। पत्थरबाजी की थी। विरोध के नाम पर कानून को हाथ में लेकर ला इलाहा इल्लल्लाह के नारे लगाए थे। ‘अल्लाह को मानते हैं, लोकतंत्र को नहीं’ का ऐलान भी इन्हीं जामिया वालों ने किया था।
पुलिस ने क्या किया था? इन पर कानून के तहत कार्रवाई की थी। कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए लाठियाँ भी चलाई थीं। गिरफ्तारियाँ भी की थीं। कई FIR भी हुए हैं, केस चल रहे हैं। दिल्ली पुलिस को इन सब के लिए दल्ली पुलिस (DALLI POLICE) का नाम जामिया वालों ने दिया था।
2 साल बाद यही जामिया वाले अब क्या कर रहे हैं? लोकतंत्र को बचाने निकले हैं। उस लोकतंत्र को, जिसे ये मानते ही नहीं थे, अल्लाह को मानते थे। आश्चर्य यह कि जिस पुलिस को ये लोग दल्ली पुलिस घोषित किए थे, उन्हीं की सुरक्षा में दिल्ली के प्रेस क्लब में जमा हुए – लोकतंत्र बचाने को।
STATE REPRESSION, WITCH-HUNT & RESISTANCE (सत्ता का दमन, चुन-चुन कर शिकार और प्रतिरोध) – इतने भारी-भरकम शब्दों के साथ जामिया के लोग दिल्ली के प्रेस क्लब में जमा हुए। 15 दिसंबर 2021 को दोपहर 2 बजे का समय दिया गया था। तीन-सवा तीन बजे तक कुल 70-80 लोग जब जमा हुए, तब कार्यक्रम शुरू किया गया। पहचान छुपा कर मैं भी वहाँ शामिल था। वहाँ जो सुना-देखा, वो मजेदार है। पढ़िए और समझिए इनकी मानसिकता को।
सबसे पहले जानिए कौन-कौन लोग वहाँ बोलने गए थे।
इन लोगों में जो रो (क्या हुआ, पुलिस ने कितना मारा… आदि-इत्यादि) रहे थे, उनके बारे में या उनके बोले गए शब्दों को लिख कर खुद का और आपका समय बर्बाद करने का मतलब नहीं है। यह सारी बातें दिसंबर 2019 की हमारी रिपोर्टों में दर्ज है, मेन स्ट्रीम मीडिया ने भी काफी कवरेज की थी। उल्लेख सिर्फ उनके बोले का करूँगा, जिन्होंने बहकते-बहकते ही सही, अपने दिल की बात कह दी। इसमें सबसे पहले नंबर आता है अख्तरिस्ता अंसारी का।
शरजील इमाम हीरो, किसान आंदोलन को जीत की राह दिखाने वाला
अख्तरिस्ता अंसारी पहले जामिया की छात्रा थीं, अब जेएनयू में पढ़ रही हैं। इनके अनुसार देश की दूसरी यूनिवर्सिटियों में भी विरोध होता है, लेकिन जामिया के विरोध को इसलिए दबाया गया क्योंकि वहाँ मुस्लिम पढ़ते हैं। हालाँकि बड़ी चालाकि से इन्होंने यह छुपा लिया कि विरोध करने के नाम पर बसों को जलाना, पुलिस पर छात्र के रूप से अलग मजहबी भीड़ बन कर हमला करना शायद ही किसी यूनिवर्सिटी (एएमयू भी इसका अपवाद है, उसकी भी चर्चा एक वक्ता ने की लेकिन रोने के ही अंदाज में) में होता है।
खैर, अख्तरिस्ता अंसारी के उस हिस्से को पढ़िए, जहाँ वो शरजील इमाम को हीरो की तरह पेश करती हैं, उसे किसान आंदोलन को जीत का रास्ता दिखाने वाला बताती हैं।
“बहुत जरूरी है ऐसे लोगों को याद करना, जो हमारे लिए, इस देश को बचाने के लिए लड़ रहे थे, लड़ते हुए जेलों में बंद हैं। बहुत जरूरी है आज शरजील इमाम को याद करना, जो उस चक्का जाम की बात कर रहे थे, जिसके मॉडल पर चल कर आज किसान आंदोलन ने उसी तरीके से प्रोटेस्ट किया और सरकार झुकने पर मजबूर हो गई। बहुत जरूरी है आज उमर खालिद को याद करना, जो गाँधी की बात करते थे, जो संविधान को हाथ में लेकर जंतर-मंतर पर प्रोटेस्ट करते थे लेकिन आज जेल में बंद हैं।”
अख्तरिस्ता अंसारी के बाद अब आते हैं अरुंधति राय पर। अरुंधति गेस्ट ऑफ ऑनर थीं, लिहाजा सबसे ज्यादा बोलीं। बोलीं क्या, CAA/NRC का राग अलापीं। एकदम नपे-तुले शब्दों में, लेकिन वही जिसे पिछले 2 सालों से वामपंथी बोलते आ रहे हैं – कागज नहीं दिखाएँगे, नागरिकता खत्म हो जाएगी… सत्ता मुस्लिमों से उनका हक हड़प लेगी। यह तानाशाही सरकार है, हिंदू सरकार है… आदि-इत्यादि। जैसा मैंने कहा था, रोने वाली बातों को लिखने-पढ़ने का क्या फायदा… इसलिए मुद्दे पर आते हैं।
PM सिर्फ 5 साल के लिए बने, फिर अगला 5 साल कोई और
लोकतंत्र बचाने आईं अरुंधति राय ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई वर्तमान सरकार को मुस्लिमों, दलितों, गरीबों, आदिवासियों, वामपंथियों आदि का दुश्मन बता गईं। ध्यान दीजिए कि शुरुआती लाइन में यह लेखिका मोदी सरकार को सिर्फ मुस्लिमों का विरोधी बता रही थीं। शायद कुछ नोट्स बना कर लाई थीं, जिनको पढ़ कर और भी समूहों को बाद में जोड़ गईं। सरकार के अलावे इन्होंने आरएसएस को भी घृणा करने वाला बता दिया।
घृणा से आगे बढ़ते हुए अरुंधति राय ने चुनाव की बात कर दी। अडानी-अंबानी की बात कर दीं। चुनाव में सिर्फ भाजपा ही जीतती है, यह भी बोल गईं। इसके बाद जो बोलीं, उसे उनके शब्दों में ही पढ़िए, मजा आएगा।
“जैसे इन्होंने कृषि कानून को वापस लिया, वैसे ही इनको CAA/NRC वापस लेना होगा। इसके अलावा सिर्फ 2 चीज और कहना चाहती हूँ – एक तो यह कि इनको (मोदी सरकार को) सत्ता से हटाना पड़ेगा। जो भी पार्टी विपक्ष में है, आपस में लड़ते हैं, वो इनके (भाजपा) साथ हैं। यूपी में हम चाहते हैं कि पूरा विपक्ष जो तानाशाही के खिलाफ है, वो एकसाथ होकर लड़ें। अगर वो साथ नहीं होते हैं, इसका मतलब है, वो इनके (भाजपा के) साथ हैं। दूसरी बात है – यह बड़ी सी बात है… हमें एक माँग उठानी होगी कि हमारे देश में प्रधानमंत्री आप एक ही बार के लिए बन सकते हैं… एक ही टर्म के लिए, उसके बाद कोई और आएगा, उसके बाद कोई और… यही हमारी एक लोकतांत्रिक माँग होनी चाहिए।”
इसके अलावा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई देश की सरकार को सबने मुस्लिमों को मार देने वाला, इस्लामोफोबिक वगैरह-वगैरह शब्दों से नवाजा। यही इन लोगों का जामिया विरोध का मॉडल 2019 में भी था, आज भी है।
एक बात जो मजेदार रही, वो जानना जरूरी है। पूरी भीड़ में से किसी ने भी ला इलाहा इल्लल्लाह का नारा नहीं लगाया। प्रेस क्लब के बाहर पुलिस अच्छी खासी थी, शायद यह वजह रही होगी। वरना ये लोग अपने प्रिय शशि थरूर तक को इसके लिए गरिया चुके हैं, अपने खेमे से बाहर का बता चुके हैं।