जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन को ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता रहा है। कॉन्ग्रेस की सरकार के दौरान ही ये परंपरा शुरू की गई। आज भी कॉन्ग्रेस पार्टी अपने पूर्व मुखिया का जन्मदिन धूमधाम से मनाती है। लेकिन, जब जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री थे, तब भी उनके जन्मदिन का जश्न बड़ा भव्य होता था। ‘British Pathe’ पर उपलब्ध 1954 के एक वीडियो में देखा जा सकता है कि किस तरह प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन का जश्न मनाया जा रहा है और उसमें वो खुद भी शामिल हैं।
इस वीडियो में बताया गया है कि नई दिल्ली स्टेडियम में 50,000 लोगों की मौजूदगी में ‘चाचा नेहरू’ के नारे के बीच उनका जन्मदिन का जश्न मनाया गया। इस दौरान बीच में खुली गाड़ी से घूमते जवाहरलाल नेहरू ने लोगों के ऊपर अपनी फूल की मालाएँ फेंकी। इसके बाद 2000 युवाओं ने परेड किया और जवाहरलाल नेहरू ने उसे ‘जन्मदिन की सलामी’ ली। इस दौरान नेहरू को लोगों से मिलते हुए भी देखा जा सकता है। वीडियो में स्टेडियम खचाखच भरा नजर आ रहा है।
कई लोगों का सोचना है कि जवाहरलाल नेहरू का महिमामंडन और उन्हें मिलने वाला अटेंशन उनके निधन के बाद शुरू हुआ, लेकिन इस वीडियो को देख कर स्पष्ट है कि उनके जीवन काल से ही इस तरह की चीजें होती रही हैं। मीडिया द्वारा ये प्रचारित किया जाता है कि 1964 में पंडित नेहरू के निधन के बाद ही उनकी जयंती को ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाने का चलन कॉन्ग्रेस सरकार ने शुरू किया। लेकिन, असली कहानी संयुक्त राष्ट्र में सोशल वेलफारे फेलो रहे वीएम कुलकर्णी से शुरू होती है।
I used to think that fanfare around Pt Nehru's birth anniversary started after his death. But wait, watch this @BritishPathe footage from 1954. Wow! Classic propaganda to build personality cults. India was one of the poorest countries in the world.#JawaharlalNehru #ChachaNehru pic.twitter.com/7j2PLRccYO
— Anuj Dhar (@anujdhar) November 14, 2021
वो यूके में अपराध का शिकार हुए बच्चों के पुनर्वास पर कार्य कर रहे थे। उन्होंने देखा कि भारत में पीड़ित बच्चों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। इंग्लैंड में क्वीन एलिजाबेथ II के जन्मदिवस के दिन ऐसे पीड़ितों बच्चों के लिए फंड्स इकट्ठा करने का अभियान चलाया जाता रहा है। इसीलिए, उन्होंने तब पीएम रहे नेहरू के जन्मदिन को भी इस मौके के लिए इस्तेमाल करना उचित समझा। यूएन में प्रस्ताव स्वीकृत हुआ। कहा जाता है कि नेहरू पहले थोड़े ‘झिझके’, लेकिन फिर उन्होंने इसकी अनुमति दे दी।
‘राष्ट्रीय बाल कल्याण परिषद’ (ICCW) ने 1951 में जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिवस के मौके पर एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित किया और तब से इसे ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा। ICCW को भले स्वतंत्र संस्था बताया जाता रहा हो, लेकिन नेहरू कैबिनेट में अहम मंत्री रहीं राजकुमारी अमृता कौर 1952-58 तक इसकी पहली अध्यक्ष थीं। AIIMS की स्थापना में उनका बड़ा रोल था। 1957 में ‘बाल दिवस’ का स्टाम्प भी मिलता है, जब नेहरू जीवित थे।
1961 का भी ‘बाल दिवस’ का स्टाम्प मिलता है। नेहरू तब भी पीएम थे और उनकी बेटी इंदिरा गाँधी तब ICCW की अध्यक्ष हुआ करती थीं। 1954 में बच्चों को ‘नेहरू चाचा की जय’ के नारे लगाने के लिए भी कहा गया था। वीएम कुलकर्णी को आज कोई याद नहीं करता और ये मौका नेहरू के महिमामंडन और उनके वंशजों द्वारा उनके गुणगान का एक अवसर बन गया। आज भी मीडिया यही प्रचारित करती है कि नेहरू के निधन के बाद उनकी याद में ‘बाल दिवस’ मनाया जाने लगा।
I came across commemorative stamps from 1957 with date and Children's day mentioned on it clearly.
— Restless Monk (@OnlyNakedTruth) November 13, 2018
Yes folks Nehru was this vain. pic.twitter.com/K3XaCCAiY9
1954 के उस वीडियो से पता चलता है कि आज़ादी के बाद इस गरीब देश में इसके नेता का खुद के प्रमोशन और अपने चेहरे के महिमामंडन पर ज्यादा जोर था। तभी देश तब तरक्की नहीं कर पाया। चीन से हार में फजीहत हुई सो अलग। कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा अवैध कब्जे में चला गया। तिब्बत पर चीन का एकाधिकार हो गया। भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं बन सका। पिता के बाद बेटी, फिर नाती और फिर नाती की पत्नी के हाथों में देश की सत्ता झूलती रही।