Friday, April 26, 2024
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‘इन मुजरिमों पर सरकार का हाथ, लिंचिंग के लिए मुस्लिमों का नाम ही काफी’: RSS प्रमुख के बयान से भड़के ओवैसी

"लिंचिंग करने वाले हिंदुत्व के खिलाफ, वो आततायी हैं। कानून के जरिए उनका निपटारा होना चाहिए, क्योंकि ऐसे मामले बनाए भी जाते हैं। कहा नहीं जा सकता कि कौन से सही हैं और कौन से गलत।" - सरसंघचालक मोहन भागवत के इस बात का बिना संदर्भ जाने ओवैसी ने उगला जहर।

राजनीतिक दल AIMIM के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान से भड़क गए हैं। उन्होंने कहा कि ये नफरत हिंदुत्व की देन है और इन ‘मुजरिमों’ को हिंदुत्ववादी सरकार की पुश्त पनाही हासिल है। उन्होंने कहा, “इन अपराधियों को गाय और भैंस में फ़र्क़ नहीं पता होगा लेकिन क़त्ल करने के लिए जुनैद, अखलाक़, पहलू, रकबर, अलीमुद्दीन के नाम ही काफी थे।” उन्होंने ट्विटर पर एक के बाद एक ट्वीट कर के RSS प्रमुख से नाराजगी जताई।

असदुद्दीन ओवैसी ने लिखा, “केंद्रीय मंत्री के हाथों अलीमुद्दीन के कातिलों की गुलपोशी हो जाती है, अखलाक़ के हत्यारे की लाश पर तिरंगा लगाया जाता है, आसिफ़ को मारने वालों के समर्थन में महापंचायत बुलाई जाती है, जहाँ भाजपा का प्रवक्ता पूछता है कि क्या हम मर्डर भी नहीं कर सकते? कायरता, हिंसा और क़त्ल करना गोडसे की हिंदुत्व वाली सोच का अटूट हिस्सा है। मुस्लिमों की लिंचिंग भी इसी सोच का नतीजा है।”

बता दें कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि ‘हिन्दू-मुस्लिम एकता’ उनके विचार से एक बड़ा ही भ्रामक शब्द है। उन्होंने कहा कि ये दो हैं ही नहीं तो एकता की बात क्यों। उन्होंने कहा कि इन दो शब्दों को जोड़ना है ही नहीं क्योंकि ये तो जुड़े हुए हैं। मोहन भागवत ने कहा कि जब ये मानने लगते हैं कि हम जुड़े हुए नहीं हैं, तब दोनों संकट में पड़ जाते हैं।

उन्होंने स्पष्ट कहा कि हिन्दू-मुस्लिम समान पूर्वजों के वंशज हैं। बकौल मोहन भागवत, वैज्ञानिक भी सिद्ध कर चुके हैं कि पिछले 40,000 वर्षों से हम सभी भारतीयों का DNA समान ही है। उन्होंने आगे कहा था, “गौमाता पूज्य हैं, लेकिन लिंचिंग करने वाले हिंदुत्व के खिलाफ जा रहे हैं। वो आततायी हैं। कानून के जरिए उनका निपटारा होना चाहिए, क्योंकि ऐसे मामले बनाए भी जाते हैं। कहा नहीं जा सकता कि कौन से सही हैं और कौन से गलत।”

मोहन भागवत ने आगे कहा, “अथर्ववेद में भी लिखा है कि हरेक धर्मों को मानने वाले और हर एक भाषा बोलने वाले यहाँ एक साथ रहते है। मुद्दों पर आपके मत अलग-अलग हो सकते हैं, क्योंकि प्रजातंत्र में अभिव्यक्ति जाहिर करने की स्वतंत्रता है। हिन्दू-मुस्लिम एक ही समाज के हैं, ये पक्का समझ कर चलना चाहिए। भारत में इस्लाम आक्रांताओं के साथ आया। गुरु नानक देव के समय से ही हिन्दू-मुस्लिमों को जोड़ने का प्रयास चल रहा है।”

गाजियाबाद में सरसंघचालक मोहन भागवत का सम्बोधन

हालाँकि, उन्होंने सवाल दागा कि आज तक एकता क्यों नहीं आ पाई। उन्होंने कहा कि ये सत्ता या राजनीति नहीं, बल्कि समाज ही करेगा। उन्होंने कहा कि लोगों को समझदार बनना पड़ेगा। बकौल सरसंघचालक, लिंचिंग के मामलों में पक्षपात के बिना जाँच हो और दोषी को सज़ा हो। उन्होंने कहा कि हिन्दू समाज का आत्म-सामर्थ्य बढ़ाने का काम कर रहा है, लेकिन साथ ही कहा कि कुछ लोग डर के मारे एक नहीं होना चाहते।

असल में असदुद्दीन ओवैसी ने मोहन भागवत के शब्दों का सन्दर्भ समझे बिना ही बयान दे दिया, जबकि मोहन भागवत ने भारत के विभिन्न समुदायों के बीच एकता की बात की थी। उन्होंने उदाहरण दिया था कि कैसे प्राचीन काल में वायु, अग्नि और वरुण की पूजा करने वाले साथ रहते थे। त्वरित प्रतिक्रिया देने वालों से पूछा जाना चाहिए कि अपराधियों को सज़ा दिलाने की बात करना और भारत की एकता की वकालत करना कहाँ से ‘नफरत’ वाली भाषा हो गई?

सरसंघचालक को पता था कि कुछ लोग उनके बयान का विरोध करेंगे और अपने इसी सम्बोधन में उन्होंने कहा कि विरोध करने वाले भी अच्छे इंसान हैं। उन्होंने उनका दर्द महसूस करते हुए कहा कि उन्हें ठोकर लगी होती है, इसीलिए वो कहते हैं कि ये सब (एकता) संभव नहीं है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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