मोहन यादव मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री होंगे। सक्रिय राजनीति में आने से पहले उन्होंने सालों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और उसकी छात्र ईकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के लिए काम किया है। विभिन्न स्तरों पर अलग-अलग दायित्वों का निवर्हन कर चुके हैं।
1990 के दौर में जब बिहार और उत्तर प्रदेश में लालू प्रसाद यादव तथा मुलायम सिंह यादव में मुस्लिमों का तुष्टिकरण करने की होड़ लगी थी, तब मध्य प्रदेश के युवा मोहन यादव अभाविप से जुड़कर ज्ञान, शील, एकता की अलख जगा रहे थे। जब राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक रथ लेकर निकले लाल कृष्ण आडवाणी को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के आदेश पर 23 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर में गिरफ्तार किया गया था, तब युवा मोहन अभाविप की मध्य प्रदेश ईकाई के मंत्री थे।
1990 का ही साल था जब उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के आदेश पर अयोध्या में रामभक्तों पर फायरिंग हुई थी। उस साल 2 नवंबर को अयोध्या में रामधुन में रमे भक्तों पर फायरिंग हुई थी। अयोध्या की गलियों में रामभक्तों को दौड़ा-दौड़ा कर निशाना बनाया गया था। 3 नवंबर 1990 को जनसत्ता में छपी एक रिपोर्ट में लिखा गया, “राजस्थान के श्रीगंगानगर का एक कारसेवक, जिसका नाम पता नहीं चल पाया है, गोली लगते ही गिर पड़ा और उसने अपने खून से सड़क पर लिखा सीताराम। पता नहीं यह उसका नाम था या भगवान का स्मरण। मगर सड़क पर गिरने के बाद भी सीआरपीएफ की टुकड़ी ने उसकी खोपड़ी पर सात गोलियाँ मारी।”
2 नवंबर 1990 को ही कोठारी बंधुओं की हत्या हुई थी। 20 साल के शरद कोठारी को घर से बाहर निकाल सड़क पर बिठाया गया और उनके सिर को गोली से उड़ा दिया। छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख 22 साल के रामकुमार कोठारी भी कूद पड़े। एक गोली रामकुमार के गले को भी पार कर गई। उस दिन अयोध्या में किसी भी रामभक्त के पैर में गोली नहीं मारी गई थी। सबके सिर और सीने में गोली लगी थी। तुलसी चौराहा खून से रंग गया था। राम अचल गुप्ता का अखंड रामधुन बंद नहीं हो रहा था तो उन्हें पीछे से गोली मारी गई।
रामनंदी दिगंबर अखाड़े में घुसकर साधुओं पर फायरिंग की गई। कोतवाली के सामने वाले मंदिर के पुजारी को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया। रामबाग के ऊपर से एक साधु आँसू गैस से परेशान लोगों के लिए बाल्टी से पानी फेंक रहे थे। उन्हें गोली मारी गई और वह छत से नीचे आ गिरे। फायरिंग के बाद सड़कों और गलियों में पड़े रामभक्तों के शव बोरियों में भरकर ले जाए गए।
उस दिन मरने वाले कारसेवकों की संख्या को लेकर अलग-अलग आँकड़े दिए जाते हैं। कारसेवकों द्वारा जारी की गई सूची में 40 कारसेवकों के मारे जाने की बात कही गई थी और उनके नामों की सूची भी प्रकाशित की गई थी। मुलायम ने बताया था कि अटल बिहारी वाजपेयी ने उनसे 56 लोगों के मारे जाने की बात कही थी। वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा अपनी क़िताब ‘युद्ध में अयोध्या‘ में लिखा है कि उन्होंने 25 लाशें देखी थी। केंद्र सरकार ने 15 कारसेवकों के मारे जाने का आँकड़ा दिया था, जबकि विश्व हिन्दू परिषद ने 59 लोगों के मारे जाने की बात कही थी।
लालू राम रथ को रोक देने का दंभ भरते हुए जीवन भर बिहार में मुस्लिमों के वोट बटोरते रहे। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ‘मुल्ला मुलायम’ का तमगा हासिल कर इतराते रहे। तब मध्य प्रदेश के उज्जैन का युवा मोहन राष्ट्रसेवा की अपनी धुन में रमा रहा। 1992 में जब अयोध्या में विवादित ढाँचा ध्वस्त हुआ था तब वे अभाविप में राष्ट्रीय मंत्री का दायित्व सँभाल रहे थे।
राम की कृपा देखिए महाकाल का वही भक्त मोहन यादव अब मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। वह भी उस समयकाल में जब अयोध्या के भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा होने को है। दूसरी तरफ राजनीति में बेटे से ही मात खाकर मुलायम दिवंगत हो चुके हैं और लालू पूरे कुनबे के साथ बिहार की राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए अब ‘जाति’ के भरोसे बैठे हैं।