Wednesday, April 24, 2024
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नंदीग्राम चुनाव: बंगाल फतह के बाद भी ममता का परिणाम में गड़बड़ी का आरोप, जज को बताया ‘भाजपा सदस्य’

'कलकत्ता हाईकोर्ट में एक वरिष्ठ वकील होने के नाते उन्हें आमंत्रित किया गया था। उन्होंने हमारे कानूनी प्रकोष्ठ (Cell) के कार्यक्रमों में भाग लिया। मुझे तारीख के बारे में अच्छे से याद नहीं है, लेकिन यह 2015 के आसपास की बात है। इसमें गलत क्या है?''

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कलकत्ता हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल को एक पत्र लिखकर अपनी याचिका जस्टिस कौशिक चंदा के अलावा किसी दूसरी पीठ को सौंपने का अनुरोध किया है। इस मामले की सुनवाई अगले सप्ताह गुरुवार (24 जून 2021) को होगी।

दरअसल, ममता बनर्जी ने नंदीग्राम चुनाव परिणाम में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। टीएमसी सुप्रीमो ने शुक्रवार (18 जून 2021) को याचिका पर सुनवाई करने वाले जज पर सवाल खड़े करते हुए उन्हें भाजपा का सदस्य बताया था।

मुख्यमंत्री के वकील संजय बसु ने दावा किया, “मेरी मुवक्किल को न्यायिक प्रणाली और न्यायालय पर बहुत विश्वास है। हालाँकि, माननीय न्यायाधीश की ओर से पूर्वाग्रह की आशंका है।” पत्र में उन्होंने आरोप लगाया, ”याचिका पर सुनवाई कर रहे जस्टिस कौशिक चंदा भाजपा के सक्रिय सदस्य रह चुके हैं। ऐसे में चुनाव याचिका पर फैसले के राजनीतिक निहितार्थ होंगे।” बसु ने अदालत से नंदीग्राम चुनाव मामले को चुनौती देने वाली ममता की याचिका को दूसरी पीठ को सौंपे जाने का अनुरोध किया है।

उन्होंने आगे कहा, ”यदि न्यायाधीश के समक्ष चुनाव याचिका पर सुनवाई होती है, तो मेरे मुवक्किल के मन में प्रतिवादी के पक्ष में और उसके खिलाफ न्यायाधीश की ओर से पूर्वाग्रह की संभावना है।”

पत्र में कहा गया कि जस्टिस कौशिक चंदा की कलकत्ता उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में पुष्टि की जानी अभी बाकी है। ममता ने माननीय न्यायाधीश के नाम की कलकत्ता के माननीय उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में मंजूरी देने पर भी आपत्ति जताई थी। बसु का कहना है कि मेरे मुवक्किल को लगता है कि न्यायाधीश को इन आपत्तियों के बारे में पता है और इसलिए इस तरह न्यायाधीश की ओर से पूर्वाग्रह की आशंका है।

संजय बसु ने कहा कि न्यायपालिका में जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए इस मामले को किसी दूसरी पीठ को सौंप दिया जाना चाहिए। ताकि ऐसा न लगे कि जस्टिस कौशिक चंदा अपने ही मामले में न्यायाधीश के रूप में फैसला सुनाएँगे।

गौरतलब है कि शुक्रवार (18 जून) को जस्टिस कौशिक चंदा ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 24 जून को तय की है। उन्होंने इस दौरान मुख्यमंत्री को उपस्थित रहने का निर्देश दिया। साथ ही कोर्ट ने यह भी जानकारी माँगी थी कि क्या ममता बनर्जी द्वारा दायर याचिका जनप्रतिनिधित्व कानून (Representation of People Act) के अनुरूप है। सुनवाई टलने के बाद तृणमूल कॉन्ग्रेस (टीएमसी) ने जज के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया। टीएमसी ने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर जज कौशिक चंदा की दो तस्वीरें शेयर कीं। इसमें जस्टिस कौशिक चंदा भाजपा के दिलीप घोष के साथ एक मंच साझा करते हुए दिखाई दे रहे हैं।

वहीं, टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने ट्वीट करके एक तस्वीर शेयर की। इस तस्वीर को शेयर करते हुए डेरेक ने लिखा, ”वह व्यक्ति कौन है जो दोनों तस्वीरों में है? क्या वह कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति कौशिक चंदा हैं? क्या उन्हें नंदीग्राम चुनाव मामले की सुनवाई के लिए नियुक्त किया गया है? क्या न्यायपालिका और नीचे गिर सकती है?”

एक और ट्वीट में टीएमसी सांसद ब्रायन ने वकील रहते हुए कौशिक चंदा के कलकत्ता हाईकोर्ट में बीजेपी की ओर से पेश होने के दस्तावेज पेश किए हैं। डेरेक ने लिखा, ”ये वह मामले हैं जहाँ न्यायमूर्ति कौशिक चंदा कलकत्ता हाईकोर्ट के समक्ष भारतीय जनता पार्टी के लिए पेश हुए हैं और अब उन्हें नंदीग्राम चुनाव मामले की सुनवाई का जिम्मा सौंपा गया है।”

वहीं, टीएमसी प्रदेश महासचिव कुणाल घोष ने कहा, ”हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। हम न्यायमूर्ति चंदा की योग्यता पर सवाल नहीं उठाते।” टीएमसी नेता ने कहा, ”न्यायपालिका के प्रति सम्मान के साथ न्यायमूर्ति कौशिक चंदा को नंदीग्राम केस की सुनवाई का जिम्मा सौंपा गया है।”

दिलचस्प बात यह है कि टीएमसी को यह समझ नहीं आ रहा है कि जज बनने से पहले कौशिक चंदा कलकत्ता हाईकोर्ट में वरिष्ठ वकील थे। अगर उन्होंने किसी मामले में बीजेपी का प्रतिनिधित्व किया है, तो बतौर वकील उन्होंने ऐसा किया।

पश्चिम बंगाल में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष व सांसद दिलीप घोष ने कहा, ”कलकत्ता हाईकोर्ट में एक वरिष्ठ वकील होने के नाते उन्हें आमंत्रित किया गया था। उन्होंने हमारे कानूनी प्रकोष्ठ (Cell) के कार्यक्रमों में भाग लिया। मुझे तारीख के बारे में अच्छे से याद नहीं है, लेकिन यह 2015 के आसपास की बात है। इसमें गलत क्या है?” उन्होंने कहा कि इसके बाद वह एडिशनल सॉलिसिटर जनरल बने। एक वरिष्ठ वकील होने के नाते हो सकता है कि उन्होंने कई मामलों में हमारी पार्टी का प्रतिनिधित्व किया हो। उसमें गलत क्या है? ऐसे कई वकील हैं, जो राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं और केस लड़ते हैं। उन्होंने आगे कहा कि एक न्यायाधीश के रूप में उनकी ‘तटस्थता’ पर सवाल उठाना गलत था।

घोष ने जोर देकर कहा, “क्या इसका मतलब यह है कि एक वरिष्ठ वकील कभी न्यायाधीश नहीं हो सकता। राज्य विधानसभा में स्पीकर तृणमूल कॉन्ग्रेस से हैं, लेकिन हम उनकी तटस्थता के लिए उनका सम्मान करते हैं।” भाजपा के बंगाल में कानूनी सेल के अध्यक्ष पार्थ घोष ने कहा कि उन्हें यकीन नहीं हो रहा है कि ट्वीट की गई तस्वीर असली है या नहीं। उन्होंने तब तक टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है, जब तक कि तस्वीरें प्रमाणित नहीं हो जातीं। कानूनी सेल की सदस्य प्रियंका टिबरेवाल ने कहा कि न्यायमूर्ति कौशिक चंदा कभी पार्टी में नहीं थे और न ही भाजपा के भीतर किसी पद पर रहे।

इस मामले पर वकील और कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ सांसद विकास रंजन भट्टाचार्य ने कहा, “जब कोई न्यायाधीश बनता है, तो उसे संविधान के तहत शपथ लेनी होती है। मुद्दा यह नहीं है कि उन्होंने एक वकील के रूप में किन मामलों में लड़ाई लड़ी, बल्कि एक न्यायाधीश के रूप में उनकी भूमिका क्या थी। किसी को भी जज की निष्पक्षता पर सवाल नहीं उठाना चाहिए।”

बता दें कि जस्टिस चंदा ने 1997 में लॉ कॉलेज से स्नातक किया। 18 दिसंबर 1998 को एक वकील के रूप में कार्यभार संभाला। उन्हें 10 जून 2014 को ‘वरिष्ठ वकील’ बनाया गया था। अप्रैल 2015 और सितंबर 2019 के बीच जस्टिस सतीश चंदा ने भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के रूप में कार्य किया। इसके बाद कौशिक चंदा को 1 अक्टूबर 2019 को एक एडिशनल जज के रूप में कलकत्ता हाईकोर्ट में पदोन्नत किया गया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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