वॉल स्ट्रीट जर्नल ने कुछ दिनों पहले एक लेख लिखकर भाजपा व फेसबुक के बीच संबंधों को लेकर सवाल खड़े किए थे। इसके बाद कॉन्ग्रेस ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया। अब भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने एक हैरान करने वाला खुलासा करते हुए बताया है कि अमेरिका में प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए कॉन्ग्रेस ने बकायदा लॉबी बना रखी है।
अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए उन्होंने एक पत्र भी पोस्ट किया है। यह पत्र कॉन्ग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने फेसबुक को लिखा था और कहा था कि किसी भी जानकारी के लिए वह उनकी लॉबी को संपर्क करें।
Manish Tewari’s letter to Facebook opens up a Pandora’s box.
— Amit Malviya (@amitmalviya) August 20, 2020
Mr Tewari wrote a letter to Facebook management on 18th August, where he says that Facebook management can get in touch with his senior policy advisor Bharat Gopalaswamy in the USA. (1/n) pic.twitter.com/f5jqTnJBhw
मनीष तिवारी ने यह पत्र फेसबुक को 18 अगस्त को लिखा। इस पत्र में उन्होंने WSJ के लेख का हवाला देते हुए फेसबुक की अधिकारी (जिन पर रिपोर्ट में एकतरफा होने के आरोप लगे) पर प्रतिक्रिया माँगी। साथ ही ये भी जिक्र किया कि भारतीय एक्जीक्यूटिव के इशारे वैश्विक हेट स्पीच पर नीतियों की अनदेखी भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर सीधा हमला है।
फेसबुक से इस लेख पर प्रतिक्रिया माँगने के अलावा मनीष तिवारी ने यह भी लिखा कि अगर आगे उन्हें कोई अन्य विचार या कोई तत्काल सहायता, या स्पष्टीकरण की आवश्यकता है तो वे उनके वरिष्ठ नीति सलाहकार डॉ. भारत गोपालस्वामी से संपर्क कर सकते हैं जो वाशिंगटन डीसी में ही रहते हैं।
अमित मालवीय के अनुसार मनीष तिवारी के पत्र में इस बात का उल्लेख कि भारत गोपालस्वामी कॉन्ग्रेस नेता के वरिष्ठ नीति सलाहकार हैं- कई सवाल खड़े करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत गोस्वामी एक ऐसे संगठन के निदेशक हैं जो फेसबुक के कंटेंट को मैनेज करता है वो भी मुख्यत: राजनीति और चुनाव से संबंधित।
अमित मालवीय के अनुसार, गोपालस्वामी अटलांटिक काउंसिल में 2013 से 2019 तक निदेशक पद पर थे। इसी बीच साल 2018 में फेसबुक की साझेदारी इस कंपनी से हुई ताकि वह उनकी सुविधाओं का इस्तेमाल करते हुए चुनाव के समय में और अन्य संवेदनशील मौकों पर अपना दुरुपयोग होने से बच सकें।
इस संबंध में फेसबुक ने एक बयान भी जारी किया था। बयान में बताया गया था कि अटलांटिक काउंसिल की डिजिटल फॉरेंसिक रिसर्च लैब फेसबुक के साथ मिलकर काम कर रही है ताकि दुनिया भर के उभरते खतरों और विघटनकारी अभियानों पर रियल टाइम की जानकारी और अपडेट प्रदान किया जा सके।
फेसबुक ने कहा था, “हमारी सेवाओं पर संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिए यह हमारे लिए आँख-कान की तरह काम करेगा। इससे फेसबुक दुनिया भर में होने वाले चुनावों के दौरान अपनी सकारात्मक भूमिका सुनिश्चित करेगा।”
फेसबुक ने उस समय यह भी जानकारी दी थी कि चुनाव के दौरान और बेहद संवेदनशील क्षणों में अटलांटिक सर्विस ही उन्हें एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देगा। ऐसे में अटलांटिक काउंसिल और फेसबुक के बीच समझौता यह भी स्पष्ट करता है कि अटलांटिक काउंसिल ही तय करेगा कि कि कौन गलत सूचना फैला रहा है और कौन नहीं, और उनके इनपुट के आधार पर, फेसबुक कार्रवाई करेगा।
उल्लेखनीय है कि अटलांटिक काउंसिल को द्विदलीय और मध्यमार्गी संगठन के रूप में जाना जाता है, यह वास्तव में राजनीतिक और वैचारिक प्रचार के साथ काम करने में माहिर है। उस पर अमेरिकी साम्राज्यवादी ताकतों के हाथों में खेलने का आरोप है, जिसमें दुनिया भर के देशों में राजनीतिक परिणामों में हेरफेर करने और प्रभावित करने की क्षमता है।
अब इन्हीं सब आधारों पर अमित मालवीय याद दिलाते हैं कि जब पिछले साल फेसबुक द्वारा बड़ी संख्या में पेज डिलीट किए गए थे, तो डिलीट प्रो-राइट विंग पेजों की संख्या डिलीट समर्थक कॉन्ग्रेस पेजों की तुलना में बहुत अधिक थी। वह बताता है कि इस प्रक्रिया का नेतृत्व अटलांटिक काउंसिल ने किया था।
अमित मालवीय सभी तथ्यों को सामने रखते हुए कहा कि ये संबंध और सेवाएँ फेसबुक मैनेजमेंट तक पहुँचकर भारत में राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए किया गया। आईटी सेल प्रमुख ने कॉन्ग्रेस नेताओं के ऐसे रसूखदार लोगों के साथ संबंध पर सवाल उठाए और कहा ये सब नैतिकता और हितों के टकराव को बढ़ाता है।
मालवीय ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि फेसबुक पर दबाव बनाने के लिए लॉबिस्टों की सेवा का सहारा ले रहे हैं। उन्होंने कहा, “लॉबिस्ट एक ऐसे पेड लोग होते हैं जिनका काम सरकार के निर्णय प्रभावित करना होता है। लेकिन यहाँ हैरान करने वाली बात ये है कि ऐसे लोगों का इस्तेमाल फेसबुक जैसी निजी कंपनियों के निर्णय को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल किया गया।”
एक सबसे महत्वपूर्ण बात जिसे अमित मालवीय ने उठाया, वो ये कि एक संसद में बैठा व्यक्ति कैसे इन विदेशी सेवाओं का इस्तेमाल कर सकता है।
Great to host @OfficeOfRG at the Atlantic Council in Washington DC.Absorbing incisive & thoughtful interaction with leaders of real economy pic.twitter.com/iEHQNUYnRT
— Manish Tewari (@ManishTewari) September 20, 2017
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि मनीष तिवारी खुद भी अटलांटिक काउंसिल से जुड़े थे। वह 2017 में संगठन में शामिल हुए थे। उस वर्ष, उन्होंने सितंबर 2017 में वाशिंगटन डीसी में संगठन में एक कार्यक्रम में राहुल गाँधी की मेजबानी की थी।
इन सबसे यह मालूम चलता है कि जब कॉन्ग्रेस फेसबुक पर भाजपा के साथ जुड़े होने के आरोप लगा रही है, वो भी एक ऐसी रिपोर्ट पर जिसके सूत्र भी किसी को नहीं मालूम, वह पार्टी खुद उस संगठन से जुडी हुई है जिसके संबंध फेसबुक से हैं ताकि उसके नैरेटिव को नियंत्रित किया जा सके।
गौरतलब है कि एक ओर जहाँ 18 अगस्त को लिखे अपने पत्र में मनीष तिवारी ने यह आरोप लगाए हैं कि WSJ के आर्टिकल पर फेसबुक ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। वहीं फेसबुक ने 17 अगस्त को यह साफ कर दिया है कि जैसा लेख में लिखा गया है, वैसा वास्तविकता में नहीं है। वो केवल अपने प्लेटफॉर्म पर हेट स्पीच वाले कंटेंट को ही प्रतिबंधित करते हैं।