1991 में भारत बदलना चालू हुआ। खराब आर्थिक स्थिति की वजह भारत को अपना बाजार विश्व के लिए खोलना पड़ा। इन्हें आर्थिक सुधार कहा गया। आर्थिक सुधार की गति को देख कर कहा गया, “आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया को कभी भी वापस बदला नहीं जा सकता” (The process of economic reforms is irreversible)। सुधारों की भी अपनी गति और साथ ही दुर्गति होती है। ऐसा ही हुआ। पीवी नरसिंह राव के समय में शुरू हुआ बदलाव का यह रथ 2014 तक आते-आते लगभग रुक गया।
देश में कई मोर्चों पर गड़बड़ियाँ होना चालू हुई। आर्थिक तरक्की के साथ ही गड़बड़ियाँ भी चालू हुईं। देश के बड़े शहरों में ऊँची ऊँची बिल्डिंग बनना चालू हुई, इनमें से बड़ी संख्या मात्र ढाँचा बन कर रह गईं, इनके लिए पैसा देने वाले लोग सड़कों पर आ गए।
बैंकों से कर्जा लेकर भाग जाने और ना लौटाने के कारण उनकी हालत खराब हो गई। देश का कर ढाँचा बिगड़ गया। हर राज्य में अलग-अलग तरह के टैक्स आ गए, इससे आम आदमी टैक्स के जाल में फंस गया। आर्थिक तरक्की की रफ़्तार को जारी रखने के लिए बाहर की कम्पनियों को प्रोत्साहन देने वाली कोई भी योजनाएँ नहीं लाईं गईं।
इस मकड़जाल के चलते देश की रफ़्तार धीमी पड़ने लगी। आर्थिक ढाँचा चरमराने लगा और भारत को विश्व की पाँच सबसे पस्त हालत अर्थव्यवस्थाओं में गिना गया। 2014 में देश में कॉन्ग्रेस की सत्ता पलट गई। भ्रष्टाचार विरोधी लहर और अपनी पॉपुलैरिटी की लहर पर सवार होकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पूर्ण बहुमत वाली सरकार में प्रधानमंत्री बने।
मोदी सरकार के 10 वर्ष लगभग पूरे हो चुके हैं, देश में आम चुनावों का माहौल है। राजनीतिक दल अपने अपने हिसाब से अपना प्रचार कर रहे हैं। कॉन्ग्रेस कुछ नई योजनाओं के आठ इस रण में उतरी है जिनमे वामपंथ की साफ़ छाप दिखती है, भाजपा अपने काम गिना रही है। आर्थिक सुधार के मोर्चे पर देखा जाए तो मोदी सरकार ने कई बदलाव देश में किए हैं।
GST: मकड़जाल जाल खत्म, एक देश एक टैक्स
मोदी सरकार के सबसे बड़े बदलावों में सबसे ऊपर वस्तु एवं सेवा कर (GST) का ही नाम रखा जाना चाहिए। देश की आजादी के लगभग 55 वर्ष बाद लाया गया यह कानून देश में टैक्स के मकडजाल को सुलझा रहा है। GST से पहले देश में केन्द्र स्तर पर केन्द्रीय बिक्री कर, एक्साइज ड्यूटी, सेवा कर और अन्य कई कर लगाए जाते थे, राज्यस्तर पर भी मनोरंजन कर, लॉटरी, और लग्जरी कर जैसे टैक्स लगते थे। इनके अपने अलग अलग विभाग थे। यदि किसी वस्तु पर एक से अधिक टैक्स लगता तो करदाता को उन विभागों के चक्कर काटने होते।
GST से पहले माल की आवाजाही भी बड़ी समस्या थी। एक रिपोर्ट के अनुसार, GST लाए जाने से पहले माल लाने ले जाने वाला एक ट्रक अपना 20% समय मात्र राज्यों के चेकपॉइंट पर ही बिता देता था। टैक्स चुकाना भी एक समस्या थी क्योंकि या भी बड़े पैमाने पर ऑफलाइन तरीके से होता था। GST से यह तस्वीर बदली है।
1 जुलाई 2017 को लाए गए GST में 17 अलग-अलग तरह के करों को समाहित कर दिया गया। GST के लिए एक एकीकृत पोर्टल भी लाया गया। यहाँ आसानी ने GST जमा किया जा सकता था। GST के कारण सरकार को भी बम्पर कमाई होना चालू हुई। वित्त वर्ष 2023-24 में सरकार को ₹20.18 लाख करोड़ की कमाई हुई। इसकी तुलना अगर GST से पहले के समय से की जाए तो यह 2016-17 के दौरान मात्र ₹3.19 लाख करोड़ था। यानी GST के बाद इसमें लगभग 6 गुने की वृद्धि हुई है।
सरकारी बैंकों का एकीकरण
मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी तब देश के सरकारी बैंक बुरी हालत में थे। अधिकांश बैंकों को हर वर्ष केंद्र सरकार से पैसा लेकर काम चलाना पड़ता था। बैंकों द्वारा दिए गए कर्जे का बड़ा हिस्सा NPA हो गया था। सरकारी बैंकों की संख्या बड़ी होने के कारण इनका प्रबन्धन भी मुश्किल हो रहा था और अलग अलग जगह पूँजी होने के कारण यह एक बड़ा निर्णय भी नहीं ले पाते थे। मोदी सरकार ने इन्हें एकीकृत करने का निर्णय लिया। मोदी सरकार ने योजना बनाई कि यदि देश में कुछ ही बड़े बैंक हों तो उनका प्रशासन और नियमन आसान होगा।
मोदी सरकार ने देश के 27 सरकारी बैंकों को कम करके 12 करने की योजना चालू की। यह संख्या वर्तमान में 12 है, इसका सबसे आखिरी चरण 2020 में पूरा हुआ था। सरकार की योजना है कि इन्हें अब केवल 4 पर ही लाया जाए। सरकार इन सभी बैंकों को विश्व स्तरीय बैंक बनाना चाहती है। बैंकों में सुधार का परिणाम है कि बीते दो वर्षों के बजट में केंद्र सरकार को इन्हें चलाने के लिए नई पूँजी नहीं देनी पड़ी है। बैंकों का NPA भी कम हो कर 3% हो चुका है। यह 2018 में 11% से ऊपर था।
RERA- घर का सपना पूरा
मोदी सरकार द्वारा किए गए बड़े आर्थिक सुधार में से एक RERA भी है। रियल एस्टेट क्षेत्र में स्पष्ट नियमन लाने वाला यह क़ानून लाखों भारतीयों को घर दिलाने में सफल रहा है। RERA कानून के पहले बिल्डरों की बेईमानियाँ चरम पर थी।
बड़े प्रोजेक्ट्स में अपना फ्लैट खरीदने वाले लोग जीवन भर की कमाई उन बिल्डर को देते थे, कभी कभार घर मिल जाता था। कई मामलों में बिल्डर या तो दिवालिया हो जाता था, मकान देने की तारीख आगे बढ़ाता था या फिर जानबूझ कर उनका पैसा दूसरे प्रोजेक्ट में लगाता था। इससे शहरों में आधे तैयार ढांचों की तस्वीरों से अखबार पटा रहता था।
2016 में मोदी सरकार द्वारा पास किया गया RERA कानून इन सभी गडबडियों पर रोक लगाता है। RERA के अंतर्गत मकान खरीदने वाले लोगों से मिला 70% पैसा बिल्डर को अलग खाते में रखना होता है। किसी मकान की लंबाई चौड़ाई क्या होगी, इसका निर्धारण भी अब सामान्य तरीके से होता है। यह पहले अलग अलग बिल्डर के आधार पर होता था। यह भी नियम लाया गया है कि बिल्डर किसी भी ग्राहक से 10% से अधिक राशि पहले ही नहीं माँग सकता। ऐसे में इस क्षेत्र में पारदर्शिता आई है और लोगों को अपना घर भी समय से मिल रहा है।
PLI योजना: ताकि विश्व भारत में बनाए
देश में आर्थिक सुधार के अलावा मोदी सरकार ने यह भी प्रयास किया है कि भारत में ज्यादा से ज्यादा निर्माण हो और साथ विदेशी निवेश भी आए। मोदी सरकार ने देश में निर्माण करने वाली कम्पनियों को प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) के जरिए बढ़ाने की योजना तैयार की है। वह उत्पाद, जो भारत में नहीं बनते, उनके क्षेत्र में निर्माण पर मोदी सरकार इन कम्पनियों को 4-6% की सब्सिडी दे रही है। इस PLI का असर इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण के क्षेत्र में देखने को मिला है।
वर्तमान में देश में उपयोग होने वाले लगभग 97% स्मार्टफ़ोन भारत में ही बन रहे हैं। एप्पल जैसी बड़ी कम्पनी भी भारत में आकर अब आईफोन बना रही है और विश्व में भी पहुँचा रही है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में बिकने वाला हर सातवाँ आइफोन अब भारत में बना हुआ है। एप्पल ने 14 बिलियन डॉलर (₹1.1 लाख करोड़ से अधिक) के आइफोन भारत में वर्ष 2023-24 में बनाए। भारत का 2023-24 में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात भी 20 बिलियन डॉलर (लगभग ₹1.7 लाख करोड़) पार होने वाला है।
इसके अलावा भी कई मूलभूत सुधार हैं जो कि मोदी सरकार ने किए हैं। यह सुधार आर्थिक तरक्की में तेजी लाने में काफी सहायक रहे हैं।