केंद्र की मोदी सरकार द्वारा पास किए गए कृषि कानूनों को लेकर तरह-तरह की अफवाह फैलाई जा रही हैं और इसी के सहारे हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा है। पहले कॉन्ग्रेस सरीखी राजनीतिक पार्टियों ने किसानों को भड़का कर उन्हें सड़क पर उतारा और फिर इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों से लेकर खालिस्तानी तत्व तक इस प्रदर्शन में जुड़ गए। अब पंजाब के किसान हरियाणा होकर दिल्ली पहुँच रहे हैं, जहाँ जम कर अराजकता फैलाई जा रही है।
केंद्र की मोदी सरकार ने संसद के दोनों सदनों में ‘कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम 2020’ और ‘कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020’ को एक्ट का रूप दिया। पहला अधिनियम किसानों को अपने उत्पाद को बेचने के लिए अधिक विकल्प मुहैया कराता है। खरीददारों के बीच बढ़ी प्रतिस्पर्धा से अंतरराज्यीय व्यापार को बढ़ावा मिलता है।
जहाँ इस अधिनियम के बारे में तरह-तरह के अफवाह फैलाए जा रहे हैं, इसकी खूबियों के बारे में स्पष्ट करना ज़रूरी है। सबसे पहले तो बता दें कि इसके तहत किसानों और व्यापारियों के बीच एक बड़ा तंत्र तैयार होता है। इससे मंडी के बाहर बाधामुक्त तरीके से अपने उत्पाद बेचने की सहूलियत किसानों को मिलती है। साथ ही इलेक्ट्रॉनिक व्यापार के लिए भी एक नेटवर्क तैयार होता है। फिर भी अफवाह फैलाए जा रहे हैं।
एक अफवाह ये है कि इससे राज्यों के APMC (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्किट कमिटी) की शक्ति कम हो जाएगी, या फिर वो निष्प्रभावी हो जाएँगे। जबकि, ऐसा नहीं है। इस बिल का उद्देश्य राज्यों की APMC को निष्प्रभावी करना है ही नहीं। ये किसानों को मौजूदा APMC का अतिरिक्त विपणन चैनल प्रदान करेगा। APMC अपने प्रचलन की दक्षता में और सुधार करें, इसके लिए ये क़ानून उन्हें प्रोत्साहित करेगा।
इसके अलावा एक अन्य अफवाह बार-बार फैलाई जा रही है कि इससे किसानों के उत्पाद पर मिलने वाला ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)’ ख़त्म हो जाएगा, जिसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बार-बार सफाई दे चुके हैं। असली बात तो ये है कि MSP पर खरीद सरकार की प्राथमिकता बनी रहेगी और इसकी नीति अथवा प्रक्रिया से इस कानून का कुछ भी लेना-देना है ही नहीं। राज्य एजेंसियों के माध्यम से MSP पर खरीद जारी रहेगी।
किसानों को इलेक्ट्रॉनिक व्यापार प्लेटफॉर्म पर किसी भी प्रकार की लेवी, उपकर या मंडी शुल्क नहीं लिया जाएगा। लेन-देन में पारदर्शिता आएगी। किसानों को भुगतान उसी दिन, अथवा 3 दिनों के भीतर हो जाएगा। ये अधिनियम व्यापार क्षेत्र में राज्य या केंद्र के किसी भी कानून से ऊपर नहीं होगा। किसानों के विवाद के निपटारे के लिए भी तंत्र बनाया गया है। उप मंडल अधिकारी ये उसके द्वारा गठित की गई समिति को ये अधिकार दिया गया है।
एक अन्य अफवाह ये है कि इससे व्यापारियों के हाथों में सब कुछ आ जाएगा, जबकि किसानों के पास कुछ भी नहीं रहेगा। ये गलत है, क्योंकि इस कानून में व्यापारियों द्वारा नियमों का उल्लंघन करने पर सज़ा का भी प्रावधान है। 25,000 रुपए से लेकर 5 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। जिसके पास इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म का नियंत्रण है, उसके द्वारा गड़बड़ी की जाने पर इससे दोगुने जुर्माने का प्रावधान है।
जहाँ भी उपज की मूल्य में उतार-चढ़ाव की संभावना है, वहाँ MSP तय किया जाएगा। एक बार उत्पाद बेच दिए जाने के बाद किसी भी प्रकार की जोखिम के लिए खरीददार ही जिम्मेदार होगा, किसान नहीं। फसल की कटाई से पहले बेचे जाने के बावजूद स्वामित्व किसानों के पास बना रहेगा, और उपज की सुपुर्दगी के बाद किसान भुगतान प्राप्त करेगा। अगर प्रायोजक किसी स्थायी संरचना का निर्माण करता है तो उसका स्वामित्व किसानों के पास आ जाएगा। कुछ सवालों के जवाब देखिए:
अगर MSP बना रहेगा तो सरकार ने कृषि कानूनों में इसकी चर्चा क्यों नहीं की है?
ऐसा इसीलिए, क्योंकि MSP हमेशा से एक शासकीय तंत्र का हिस्सा रहा है, न कि विधायिका का। इससे फायदा ये होता है कि जब भी ज़रूरत पड़े, इसे बढ़ाया जा सकता है। इससे किसानों को फायदा मिलेगा।
अगर लेनदेन प्राइवेट हो रहा है, फिर ये कैसे सुनिश्चित किया जाएगा कि MSP मेंटेन रखा गया है?
प्राइवेट ट्रेड MSP की दरों से ज्यादा ही होगा। कोई भी किसान प्राइवेट प्लेयरों के पास तभी जाएँगे, जब उन्हें MSP से ज्यादा रुपए मिलेंगे।
क्या मोदी सरकार ने MSP को कमजोर कर दिया है?
आँकड़े तो ऐसा बिलकुल नहीं कहते। 2009-14 में यूपीए-II के काल में 1.52 LMT दाल MSP पर खरीदे गए। वहीं 2014-19 की पहली मोदी सरकार ने 76.85 LMT दालों की खरीद की। अब आप खुद ही अंतर का अंदाज़ा लगा लीजिए।
किसानों को एक बार कॉन्ट्रैक्ट करने के बाद फँसा लिया जाएगा? फिर वो बाहर नहीं निकल पाएँगे?
ये एक बेहूदा तर्क है क्योंकि इन कृषि कानूनों में किसानों को ये छूट दी गई है कि वो जब चाहें, उन्हें करार रद्द करने का अधिकार है। अगर उन्होंने एडवांस नहीं लिया है, तो उन्हें किसी भी प्रकार की पेनल्टी नहीं देनी है। अगर एडवांस लिया भी है तो उसे लौटा कर कॉन्ट्रैक्ट रद्द किया जा सकता है। इस पर किसी भी प्रकार का ब्याज नहीं लिया जाएगा।
किसानों की जमीन सुरक्षित नहीं रहेगी? उन्हें हड़प लिया जाएगा?
ऐसा नहीं है, क्योंकि किसानों की जमीन को लीज पर देने का किसी अन्य प्रकार से इस्तेमाल करने पर प्रायोजकों को दंड भरना पड़ेगा। किसानों द्वारा तय की गई अवधि और किसानों द्वारा तय किए गए अनाज के लिए ही इसका इस्तेमाल उसी काम के लिए होगा, जिस कृषि कार्य के लिए करार हुआ है।
फिर पंजाब में ही ज्यादा विरोध क्यों हो रहा है? विपक्षी दल इतना बेचैन क्यों हैं?
पंजाब की राजनीतिक पार्टियों की बेचैनी इस बात को लेकर है कि वहाँ अब तक इस तरह क्रय-विक्रय के कार्य में दलालों की बड़ी भूमिका थी, जिनका नेटवर्क काफी तगड़ा है। अब उन दलालों की छुट्टी होगी, जिससे ये दल बेचैन हैं।
और हाँ, ऐसा कुछ बहुत नया भी नहीं है, जो विवादित हो। क्योंकि, APMC के तहत पहले से ही ‘कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग’ का चलन है और ये कई राज्यों में चल रहा है, इसीलिए इसमें कुछ भी विवादित नहीं। पंजाब-बंगाल में पेप्सिको और हरियाणा में SAB Miller इसके उदाहरण हैं। यूपीए ने भी ऐसे नियम ड्राफ्ट किए थे। जब अच्छी फसल के लिए खरीददार ही सारे संसाधन मुहैया कराएगा और क्षति का निर्वहन भी वही करेगा, तो किसानों को फायदा ही है न?
इसके अलावा एक विधेयक में, किसानों के हितों की रक्षा के लिए पर्याप्त व्यवस्था का प्रावधान है। भुगतान सुनिश्चित करने हेतु प्रावधान है कि देय भुगतान राशि के उल्लेख सहित डिलीवरी रसीद उसी दिन किसानों को दी जाएँ। मूल्य के संबंध में व्यापारियों के साथ बातचीत करने के लिए किसानों को सशक्त बनाने हेतु प्रावधान है कि केंद्र सरकार, किसी भी केंद्रीय संगठन के माध्यम से, किसानों की उपज के लिए मूल्य जानकारी और मंडी आसूचना प्रणाली विकसित करेगी।
मोदी सरकार के कृषि कानूनों को लेकर बिचौलियों का साम्राज्य तहस-नहस होने के डर से वो और उनके आका नाराज हैं और अफवाह फैला कर जनता को भड़का रहे हैं। इन कृषि कानूनों को लेकर फैलाई जा रही है अफवाह का जवाब कई बार पीएम मोदी ने भी दिया है। लेकिन, असलियत ये है कि किसानों को अपनी फसल के मनपसंद दाम मिल रहे हैं, वो भी अपने शर्तों पर। लेकिन, कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन के नाम पर अफवाह फैलाई जा रही है, हिंसा की जा रही है और मोदी सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार चल रहा है।