Saturday, July 27, 2024
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वो सीट जिसने RSS प्रचारक नरेंद्र मोदी को बनाया नेता, किसकी थी यह सीट… कौन है वो और अभी कहाँ?

यह सीट भाग्यशाली सीट मानी जाती थी। इसे लेकर BJP का मानना था कि जीत पक्की है। अभी इस सीट का कनेक्शन कर्नाटक से है। आखिर कौन था वो शख्स, जिसने 17 साल लगातार जीतने वाली सीट पहला चुनाव लड़ रहे मोदी के लिए छोड़ दी थी?

साल 1950, तारीख 17 सितंबर। नरेंद्र मोदी इसी दिन पैदा हुए, गुजरात में। स्कूली पढ़ाई के बाद इनका मन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के साथ जुड़ गया। जुड़ा ऐसा कि सब कुछ छोड़ देश सेवा का मन बना लिया।

धीरे-धीरे देश सेवा में रम गए। साथ ही RSS की जिम्मेदारियों को निभाते हुए एक-एक सीढ़ी आगे भी बढ़ते गए। सामाजिक कार्य करने वाले मोदी का फिर एक वक्त राजनीति से सामना हुआ। वो इसलिए क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने आपातकाल लगा दिया।

इंदिरा की काट के लिए ऐसे में RSS ने उन्हें गुजरात में आपातकाल के विरोध में समन्वय के लिए, ‘गुजरात लोक संघर्ष समिति’ का महासचिव नियुक्त किया। जब इंदिरा गाँधी ने RSS पर प्रतिबंध लगाया, तो मोदी को गिरफ्तारी से बचने के लिए छिपना पड़ा।

1970 के दशक के अंत में नरेंद्र मोदी गुजरात में संघ के प्रचारक बन गए और बाद में दिल्ली चले गए। 80 के दशक के मध्य में वह एक बार फिर गुजरात लौट आए। यहाँ वो भाजपा में शामिल हो गए और संगठन को मजबूत करने के लिए काम किया।

गुजरात में रहते-रहते नरेंद्र मोदी का पूर्व भाजपा नेता शंकरसिंह वाघेला के साथ विवाद होता है। इस प्रकरण के बाद, उन्हें हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में भाजपा की गतिविधियों की देखरेख के लिए दिल्ली भेजा जाता है। इस बीच शंकरसिंह वाघेला कॉन्ग्रेस का दामन थाम लेते हैं।

इस दौरान नरेंद्र मोदी 2001 तक गुजरात से दूर रहते हैं। दिल्ली में पार्टी के लिए काम रहते हैं। उधर गुजरात में केशुभाई पटेल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार हिल चुकी होती है। 2001 के भूकंप के बाद भ्रष्टाचार, सत्ता के दुरुपयोग और खराब प्रशासन के आरोपों को केशुभाई की सरकार झेल रही होती है।

इसी समय केशुभाई पटेल ने अपने खराब स्वास्थ्य (शायद पार्टी के निर्देश पर) के कारण इस्तीफा दे दिया और नरेंद्र मोदी (जिन्होंने कभी किसी सार्वजनिक पद का अनुभव नहीं था) को मुख्यमंत्री बनाया गया। ऐसे में 6 महीने के भीतर मोदी को विधान सभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित होने की आवश्यकता थी।

राजकोट (पश्चिम) की वो सीट, जिसने बदली भारतीय राजनीति की दिशा

राजकोट (पश्चिम) की सीट, जिसे पहले राजकोट II सीट कहा जाता था। यह सीट भाग्यशाली सीट मानी जाती थी। इसे लेकर भाजपा नेताओं का मानना था कि जीत पक्की है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस पर वजुभाई वला 1985 के विधानसभा चुनावों से जीतते आ रहे थे। वजुभाई वला ने नरेंद्र मोदी को उपचुनाव लड़ने के लिए अपनी यह सीट छोड़ दी। ये वही वजुभाई वला हैं, जो वर्तमान में कर्नाटक के राज्यपाल हैं।

फरवरी 2002 में, गुजरात में तीन सीटों पर उपचुनाव होना था – राजकोट (पश्चिम), महुआ और सजयजीगंज। तीनों सीटों पर BJP काबिज थी। 24 फरवरी 2002 को जब परिणाम घोषित किए गए तो कॉन्ग्रेस महुआ और सजयजीगंज की सीट पर विजयी हो चुकी थी, जबकि मोदी ने राजकोट (पश्चिम) को 14728 वोटों से जीता था।

14728 वोट से अपने जीवन का पहला चुनाव जीतने वाले मोदी इसके बाद मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात में तीन चुनाव जीते और अंततः भारत के प्रधानमंत्री बने। इसके बाद का राजनीतिक इतिहास तो TikTok जेनरेशन तक को भी पता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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