Saturday, April 27, 2024
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जेल में ‘टेनिस खेलती लड़की’ से जिन्हें हुआ प्यार, वो दिल्ली दंगों के आरोपित PFI-SDPI संग उतरे हैं बिहार ‘सुधारने’

AIMIM के बाद अब पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की सियासी विंग सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) बिहार के राजनीतिक मैदान में। इसे साथ दे रहे हैं कभी लालू के करीबी रहे पप्पू यादव।

बिहार की राजनीति में एक लंबे समय से अपराध और राजनीति एक सिक्के के दो पहलू माने जाते रहे हैं। शायद इसी वजह से नेता दबंगों और अपराधियों की ओट में वोट से अपनी झोली भरने को आतुर दिखते थे। वैसे बिहार में तो बाहुबलियों का शुरू से ही बोलबाला रहा है। चाहे सिवान का शहाबुद्दीन हो या मोकामा का अनंत सिंह। इनके जुर्म की कहानियाँ पूरे देश में कुख्यात हैं।

हालाँकि अब भी राजनीति में बाहुबलियों का बोलबाला है, मगर कई चीजें वक्त के साथ सीमित हुई हैं और बदलाव देखा जा सकता है। कई पुराने बाहुबली अब भी ठसक के साथ राजनीति में मौजूद हैं। लेकिन कई पुराने आरोपों से निकल कर पूरी तरह ‘जनता के सेवक’ बन चुके हैं। इन्हीं में से एक हैं- जन अधिकार पार्टी के मुखिया और पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव (Pappu Yadav)।

हत्या-अपहरण जैसे 31 संगीन केसों में आरोपित बाहुबली पप्पू यादव विधानसभा चुनाव में लोगों से अपराध मुक्त बिहार बनाने का वादा कर रहे हैं। तीन दशक पहले 1990 में मधेपुरा के सिंहेश्वर विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर अपनी सियासी पारी का आगाज करने वाले पप्पू यादव की गिनती बिहार के उस बाहुबली नेता के तौर पर होती है, जिसके नाम का खौफ एक जमाने में बिहार से लेकर दिल्ली तक नेता खाते थे। एक बार के विधायक और पाँच बार के सांसद पप्पू यादव इस बार विधानसभा चुनाव में मधेपुरा से चुनावी मैदा में उतर रहे हैं, वो भी मुख्यमंत्री के प्रत्याशी के तौर पर

लालू यादव के साथ ही बिहार की राजनीति में बाहुबली पप्पू यादव का भी सियासी उदय

साल 1990 का बिहार एक ओर लालू यादव के मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी का गवाह बन रहा था, तो दूसरी ओर अपराध की दुनिया के कई नामों के सियासी उदय होने का साक्षी भी बन रहा था। लालू यादव के साथ ही बिहार की राजनीति में बाहुबली पप्पू यादव का भी सियासी उदय होता है।

बिहार में अस्सी के दशक में जिस जातीय टकराव की शुरुआत होती है, वह नब्बे के दशक आते-आते अपने चरम पर पहुँच जाती है। जाति की राजनीति के लिए पहचाना जाने वाला बिहार अब जातीय संघर्ष की आग में जलने लगा था। भूमिहारों और यादवों की जंग की धमक बिहार ही नहीं पूरे देश में सुनाई देने लगी थी। बिहार की पावन धरती एक के बाद एक नरसंहार से लाल होती जा रही थी। जातीय संघर्ष की इस जंग में भूमिहारों का नेतृत्व रणवीर सेना कर रही थी तो उसको चुनौती देने का काम पिछड़ों के नेता पप्पू यादव कर रहे थे, जिन्होंने यादवों की अपनी अलग सेना का ही निर्माण कर डाला था।

पूर्णिया का रंगबाज

कोसी का बेल्ट, जहाँ हर बारिश में कोसी नदी अपने रौद्र रूप में तबाही मचाती थी वह इलाका अब पप्पू यादव और रणवीर सेना के टकराव में गोलियों से अक्सर गूँजता था। अगड़े और पिछड़े की जंग में पप्पू यादव ने कोसी बेल्ट में अपना वर्चस्व कायम किया और पिछड़ी जाति के युवा उनके साथ जुड़ते चले गए। 80 के दशक के अंत तक पूर्णिया, सहरसा, सुपौल, कटिहार ज़िलों में पप्पू यादव का अच्छा ख़ासा दबदबा बन चुका था।

1990 में देश में आरक्षण की आग लगी और मंडल-कमंडल की जंग सड़क पर आ चुकी थी। इसको लेकर बिहार में समाज बँट चुका था। ठाकुर, भूमिहार, अहीर, सबने एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। कोसी बेल्ट में आनंद मोहन ने अपनी प्राइवेट आर्मी बना ली थी और उसे चुनौती देने के लिए पप्पू यादव भी अपनी सेना को लेकर तैयार थे। आए दिन वारदातें होती रहती थीं। यह वो समय था, जब पप्पू यादव और आनंद मोहन को कोसी बेल्ट का टेरर ट्विन कहा जाने लगा था।

आनंद मोहन Vs पप्पू यादव: कोसी बेल्ट का टेरर ट्विन

बिहार में गंगा के उत्तर में भूमिहारों के खिलाफ पप्पू यादव ने मोर्चा खोल रखा था। एक गाँव में एक यादव की कथित तौर पर पिटाई हुई और पप्पू यादव 60 बसों में असलहों से लैस लड़कों को लेकर उस गाँव तक पहुँच गए, वहाँ फायरिंग भी की। कहते हैं कि पप्पू यादव और उनके समर्थकों ने गाँव को लूटने की कोशिश की, लेकिन गाँव वालों ने उनकी कार को आग के हवाले कर दिया और साथ में उनके हथियारों को भी छीन लिया था। ये सिर्फ भूमिहारों और यादवों की ही जंग नहीं थी, ये जंग दो बाहुबलियों की भी थी।

मोकामा से लेकर वैशाली तक 150 किलोमीटर के एरिया में भूमिहारों और यादवों की जंग गृह युद्ध का रूप ले चुकी थी। वैशाली के कुछ गाँवों ने तो अपनी सीमाएँ सील कर दी थीं और हथियार उठा लिए थे। पप्पू यादव और आनंद मोहन के बीच की इस जंग ने जातीय हिंसा फ़ैला दी थी।

जातीय संघर्ष के सहारे अपनी सियासी रोटियाँ सेंकने वाले पप्पू यादव लगातार राजनीति की सीढ़ियाँ भी चढ़ रहे थे। विधायक बनने के एक साल बाद ही 1991 में पूर्णिया लोकसभा सीट से बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान में वो उतरे और चुनाव जीतकर संसद भी पहुँच गए। इसके बाद 1996 के लोकसभा चुनाव में भी पप्पू यादव पूर्णिया से फिर रिकॉर्ड तीन लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज कर संसद पहुँचे।

डीएसपी को चलती कार के सामने धकेला

सांसद बनने के साथ ही पप्पू यादव खुलेआम कानून का मखौल उड़ाने लगे। खाकी के पहरेदार उनसे खौफ खाने लगे। यह वह दौर था, जब पप्पू यादव ने एक डीएसपी को चलती कार के सामने धकेल दिया और एक पुलिसकर्मी की मूँछ जबरन मुंड़वा दी थी। पप्पू यादव पर एक के बाद एक हत्या और अपहरण के मामले दर्ज होने लगे। सत्ता से नजदीकी होने के चलते पुलिस भी पप्पू यादव पर हाथ डालने से डरती थी। आखिरकार मुख्यमंत्री लालू यादव के आदेश पर पप्पू यादव को गिरफ्तार किया गया।

यह वह दौर था, जब पप्पू यादव के नाम से लोग खौफ खाते थे लेकिन वक्त बदलता है और 1998 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव पहली बार पूर्णिया से चुनाव हार जाते हैं। बाहुबली पप्पू यादव अपनी हार के लिए माकपा नेता अजीत सरकार को जिम्मेदार मानते हैं। अजीत सरकार पूर्णिया में काफी लोकप्रिय थे और चार बार विधायकी का चुनाव जीत चुके थे।

अजीत सरकार हत्याकांड में उम्रकैद

इसी बीच जून 1998 में दिनदहाड़े माकपा नेता अजीत सरकार के साथ-साथ उनके ड्राइवर और एक साथी को पूर्णिया में गोलियों से छलनी कर दिया जाता है। अजीत सरकार का जब पोस्टमॉर्टम किया जाता है, तो उनके शरीर से 107 गोलियाँ निकलती है। कहा जाता है कि अजीत सरकार और उनके सथियों पर एके-47 से गोलियाँ बरसाईं गई थीं।

अजीत सरकार की हत्या का आरोप पप्पू यादव पर लगता है और पप्पू यादव को गिरफ्तार कर लिया जाता है। पप्पू यादव जेल जाने से बचने के लिए हर बार की तरह अपने पुराने हथकंडे अपनाते हैं लेकिन वह सलाखों के पीछे पहुँच जाते हैं।

इस बीच 1999 में दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार गिर जाती है और फिर लोकसभा चुनाव होते हैं और पप्पू यादव एक बार फिर जेल में रहते हुए भी पूर्णिया लोकसभा सीट से चुनाव जीत कर संसद पहुँच जाते हैं। पप्पू यादव का नाम इतना बदनाम हो चुका था कि प्यार में नहीं बल्कि डर में जनता का वोट उनकी झोली में पड़ता था।

2004 का लोकसभा चुनाव पूर्णिया से हारने वाले पप्पू यादव जो उस वक्त लालू प्रसाद यादव के सबसे करीबी नेताओं में से एक माने जाते थे, उनकी किस्मत फिर बदलती है – साल 2004 में ही। होता यह है कि 2004 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव छपरा और मधेपुरा दो सीटों से लोकसभा चुनाव लड़ता है और दोनों से ही जीत दर्ज करता है। लालू बाद में मधेपुरा सीट छोड़ देता है और उपचुनाव में पप्पू यादव मधेपुरा से चुनाव जीतकर फिर संसद पहुँच जाते हैं।

अजीत सरकार हत्याकांड में जमानत पर बाहर चल रहे पप्पू यादव की जमानत सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो जाती है और पप्पू यादव को बेऊर जेल भेज दिया जाता है, लेकिन जेल में उनके ऐशोआराम में कोई कमी नहीं आती है। पप्पू यादव की बैरक पर छापा मारा जाता है और उनके जूते से मोबाइल फोन बरामद होता है। उसकी डिटेल में कई नेताओं के साथ बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव के निजी सचिव के नंबर पर भी बात होने की डिटेल सामने आती है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पप्पू यादव को दिल्ली की तिहाड़ जेल में शिफ्ट किया जाता है और जेल में पप्पू यादव पर अंकुश लगाने के लिए तिहाड़ में पहली बार मोबाइल जैमर लगाया जाता है।

अजीत सरकार हत्याकांड में 14 फरवरी 2008 को पप्पू यादव को पटना की सीबीआई कोर्ट में उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है लेकिन इस मामले में 2013 में हाईकोर्ट से पप्पू यादव को बरी कर दिया जाता है। हाईकोर्ट से बरी होने के बाद पप्पू यादव 2014 का लोकसभा चुनाव फिर मधेपुरा से आरजेडी के टिकट पर लड़ते हैं और राजनीति के दिग्गज शरद यादव को हराकर फिर संसद पहुँच जाते हैं।

2015 में लालू यादव से विवाद के बाद पप्पू यादव को आरजेडी से निकाल दिया जाता है और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पप्पू यादव अपनी खुद की पार्टी जन अधिकार पार्टी बनाते हैं। 2019 के चुनाव में मधेपुरा से चुनाव भी लड़ते हैं। हालाँकि इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस बार पप्पू यादव सिर्फ 8 फीसदी वोट ही हासिल कर पाए।

पूरा राजनीतिक सफर देखें तो पप्पू यादव ने आरजेडी के टिकट पर पहली बार 1991 में चुनाव जीता और फिर 1996, 1999 और 2004 में भी आरजेडी से वो चुनाव जीतने में सफल रहे। लेकिन 2019 में वो अपनी जमानत तक नहीं बचा सके।

1986-87 में लालू प्रसाद यादव की राजनीति ऊपर की ओर बढ़ रही थी। इस दौर में वह बिहार में विरोधी दल का नेता बनना चाहता था। कहते हैं कि लालू की राजनीति को जमाने में तब दलित-पिछड़ा समाजवादी नेताओं के साथ बाहुबलियों ने भी काफी मदद की। इन्हीं में से पप्पू यादव और मोहम्मद शहाबुद्दीन भी था। लालू की वजह से ही पप्पू यादव राजनीति में सक्रिय हुए थे और एक समय आरजेडी चीफ से उनकी इतनी करीबी थी कि लोग उन्हें लालू का उत्तराधिकारी भी कहने लगे थे और पप्पू यादव ने भी इसकी मंशा पाल रखी थी, लेकिन वो कामयाब नहीं हो सके और 2015 में उन्हें राजद से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

अपनी कुख्यात छवि के लिए लालू को ठहराया दोषी

एक इंटरव्यू में पप्पू यादव ने कहा था, “मैं तो एक सीधा-सादा छात्र था। लालू का प्रशंसक था। उनको अपना आदर्श मानता था, लेकिन लालू मेरे साथ बार-बार छल करते गए। मुझे बिना अपराध किए ही कुर्सी का नाजायज फायदा उठाते हुए कुख्यात और बाहुबली बना दिया। जब लालू विरोधी दल का नेता बनना चाहते थे, उस समय इस दौड़ में अनूप लाल यादव, मुंशी लाल और सूर्य नारायण भी शामिल थे। मैं अनूप लाल यादव के घर में ही रहता था।”

पप्पू यादव आगे बताते हैं, “इसके बावजूद मैं लालू का समर्थन कर रहा था। मैंने नवल किशोर से बात कर लालू के लिए जमीन तैयार किया। लालू के नेता विरोधी दल बनने के अगले ही दिन पटना के सभी अखबारों में एक खबर प्रकाशित हुई कि कॉन्ग्रेस नेता शिवचंद्र झा की हत्या करने के लिए पूर्णिया से एक कुख्यात अपराधी पप्पू यादव पटना पहुँचा है। मैं इन सब से बेखबर था। मेरे एक मित्र नवल किशोर मुझे पटना विश्वविद्यालय के पीजी हॉस्टल ले गए।”

पप्पू यादव याद करते हुए बताते हैं कि वहाँ जाकर उन्हें पता चला कि वह एक कुख्यात अपराधी बन चुके हैं। वह आगे बताते हैं, “मैं एक ऐसा कुख्यात अपराधी था, जिसके खिलाफ तब तक किसी थाने में कोई केस तक नहीं दर्ज था। मैं तीन दिनों तक अपने एक मित्र गोपाल के कमरे में रहा। वहाँ से कोलकाता गया। पुलिस मेरे पीछे पड़ गई। मेरे घर की कुर्की हो गई। माँ-बाप को सड़क पर रात गुजारनी पड़ी। मेरे पिता लालू से मिले, लेकिन उन्होंने मदद से इनकार कर दिया।”

इंस्पेक्टर की हत्या का आरोप

12 फरवरी 1999 को दिल्ली पुलिस ने एक कुख्यात अपराधी और श्री प्रकाश शुक्ला गैंग से ताल्लुक रखने वाले गैंगस्टर राजन तिवारी को गिरफ़्तार किया। उसने दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को पूछताछ में बताया कि उसे 15 लाख रुपयों में समाजवादी पार्टी के नेता डीपी यादव और सांसद पप्पू यादव ने हायर किया था और गाज़ियाबाद में तैनात यूपी पुलिस के इंस्पेक्टर प्रीतम सिंह की सुपारी दी थी, जिन्हें नवम्बर 1998 में राजन तिवारी और उसकी गैंग में शामिल मुन्ना शुक्ला, रितेश तिवारी और लल्लन सिंह ने मार दिया था।

राजन तिवारी ने ये भी बताया कि इसका प्लान पप्पू यादव के घर पर बना था और प्लान में डीपी यादव और पप्पू यादव के साथ राजपाल त्यागी भी शामिल था। दरअसल डीपी यादव को ख़बर मिली थी कि उसके भाई को मारने वाले अपराधी को इंस्पेक्टर प्रीतम सिंह ने ही जेल से बाहर निकाला था, इसीलिए डीपी यादव ने प्रीतम की हत्या कर अपना वर्चस्व कायम करने की कोशिश की थी। राजन तिवारी ने एक और खुलासा दिल्ली पुलिस के सामने किया कि पप्पू यादव, डीपी यादव और प्रताप मलिक ने नैनी जेल में बंद मुन्ना बजरंगी को भी मारने की सुपारी उसे दी थी लेकिन वो इसे पूरा नहीं कर सका।

दोस्त की बहन को दिल दे बैठे थे पप्पू यादव, सुसाइड की भी कोशिश की

पप्पू यादव का जेल जाना भी उनकी जिंदगी में एक अहम पड़ाव साबित हुआ। बांकीपुर जेल में बंद पप्पू यादव की मुलाकात विक्की से होती है और विक्की की बहन रंजीत को एक एलबम में टेनिस खेलते हुए देख पप्पू यादव उन्हें दिल दे बैठते हैं। जिस पप्पू यादव के नाम से पूरा बिहार थर्राता था, वह रंजीत के प्यार में ऐसा दीवाना हुआ कि नींद की गोलियाँ खाकर खुदकुशी की कोशिश भी की थी। आखिरकार कॉन्ग्रेस नेता एसएस अहलूवालिया के दखल के बाद पप्पू यादव और रंजीत 1990 में शादी के बंधन में बँध गए। पप्पू यादव ने खुद इस वाकये का जिक्र अपनी आत्मकथा ‘द्रोहकाल का पथिक’ में भी किया है। रंजीत रंजना कॉन्ग्रेस की नेता और पूर्व सांसद हैं।

खुद को भगवान भी बता चुके हैं पप्पू यादव

एक जनसंवाद रैली के दौरान उन्होंने खास परिस्थित में खुद को भगवान भी बता दिया था। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा था कि नीतीश, लालू और भालू ने मिलकर बिहार के हिंदू और दूसरे मजहब वालों के हाथों में पत्थर थमा दिया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जुमलेबाज तक करार दे दिया। पप्पू यादव ने तब यह भी कहा था कि अगर वो साउथ में होते तो आज की तारीख में भगवान होते। 

पूर्व सांसद ने कहा था, “अगर मैं दक्षिण भारत में पैदा होता तो 20 साल पहले मैं भगवान होता। अगर लालू यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान से पहले पैदा होता तो ये तीनों कभी नहीं पैदा होते। मेरे पास मगध का इतिहास है, जो दुनिया बदल सकती है।” 

बिहार में पप्पू यादव के साथ PFI और SDPI का गठबंधन

बिहार की सियासत में असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने अभी पैर जमाए भी नहीं थे कि दक्षिण भारत की दूसरी मजहबी पार्टी ने दस्तक दे दी। एआईएमआईएम के बाद अब पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की सियासी विंग सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) बिहार में किस्मत आजमाने के लिए मैदान में उतर रही है।

एसडीपीआई बिहार में जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पप्पू यादव के अगुवाई में बनने वाले प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक अलायंस (PDA) का हिस्सा है, जिसमें दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की पार्टी भीम आर्मी पार्टी भी शामिल है। पप्पू यादव ने तीन छोटी पार्टियों को एक साथ लाकर बिहार में दलित-मुस्लिम-यादव वोटों का समीकरण बनाने की कवायद की है। 

पप्पू यादव ने एक सभा के दौरान इसकी घोषणा करते हुए कहा था कि बिहार को बाढ़ और अपराध से मुक्ति दिलाने के लिए JAP ने पॉपुलर फ्रंट और एसडीपीआई के साथ मिलकर चलने का निर्णय लिया है। JAP, SDPI और PFI मिलकर बिहार की राजनीति में बदलाव लाएँगे और विकसित बिहार बनाएँगे। सीएए और एनआरसी के खिलाफ हुए प्रदर्शन में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का नाम तेजी से उभरा था। इन पर दंगा भड़काने और फंडिंग करने के आरोप लगे थे।

क्या है इस बार की तैयारी?

बिहार में होने वाले आगामी चुनाव में पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (JAP) ने 150 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। पार्टी के प्रमुख पप्पू यादव ने अगस्त में ही इसकी घोषणा की है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी जन अधिकार पार्टी ने 64 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। तब JAP, समाजवादी पार्टी, NCP, समरस समाज पार्टी, समाजवादी जनता दल और नेशनल पीपुल्स पार्टी ने मिलकर तीसरे मोर्चा का गठन किया था।

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