राष्ट्रपति चुनाव में NDA की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) की भारी जीत हुई है और वे देश का अगला राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। वहीं, विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) को जितनी उम्मीद थी, उससे कम वोट मिले। इसका प्रमुख कारण क्रॉस वोटिंग रहा।
विपक्षी दल NDA, खासकर भाजपा के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाने की कोशिश लगातार कई वर्षों से कर रहे हैं, लेकिन वे इसमें सफल होते नहीं दिख रहे हैं। कभी कॉन्ग्रेस की सोनिया गाँधी, कभी NCP के शरद पवार तो कभी TMC की ममता बनर्जी ये प्रयास करती दिखीं। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, RJD के तेजस्वी यादव, TRS के के चंद्रशेखर राव की समय-समय पर अलग-अलग राहें दिखीं।
हालाँकि, जब राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी दलों ने एक प्रयास और किया। इस दौरान संयुक्त उम्मीदवार उतारकर अधिकांश एक मंच पर दिखे। इनमें कॉन्ग्रेस, TMC, NCP, तब की शिवसेना, BJD आदि प्रमुख दल थे और यशवंत का नाम उम्मीदवार के तौर पर घोषित करने के दौरान उपस्थित रहे। हालाँकि, जब वोट डालने की बारी आई तो यह एकता नहीं दिखी।
यशवंत सिन्हा भले ही संयुक्त विपक्ष के साझा उम्मीदवार थे, लेकिन द्रौपदी मुर्मू का नाम उम्मीदवार के तौर पर सामने आते ही BJD, JMM, YSR कॉन्ग्रेस, शिव सेना के उद्धव गुट ने यशवंत सिन्हा से किनारा कर लिया। हालाँकि, यशवंत सिन्हा भले ही कहें कि उम्मीदवार बनने का उनका उद्देश्य विपक्षी दलों को एक मंच पर लाना था, फिर भी उनका यह उद्देश्य पूरा नहीं हुआ।
राष्ट्रपति चुनाव में खूब क्रॉस वोटिंग हुई। मुर्मू के पक्ष में 13 राज्यों के 119 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग किया। इसके अलावा, 17 सांसदों ने भी क्रॉस वोटिंग की। कयास लगाए जा रहे हैं कि क्रॉस वोटिंग करने वालों में सबसे अधिक कॉन्ग्रेस के नेता हैं।
इस बार राष्ट्रपति चुनाव में सांसदों और विधायकों के कुल 4,809 वोट थे और इनका कुल मूल्य 10,86,431 था। हालाँकि, 18 जुलाई को हुए मतदान में सिर्फ 4,754 ही वोट डाले, जिनका कुल मूल्य 10,72,377 था।
दोनों सदन के सांसदों के कुल 776 वोट थे, जिनका का कुल मूल्य 5,43,200 था। इनमें से 763 सांसदों ने मतदान में अपने मत का प्रयोग किया, जिनका कुल मूल्य 5,34,100 है। वहीं, 14 सांसदों ने इस चुनाव में मतदान नहीं किया।
अगर विधानसभा की बात करें तो सभी राज्यों के विधायकों की कुल संख्या 4,033 है और इनके वोटों का कुल मूल्य 5,38,277 था। इस चुनाव में 3,991 विधायकों ने मतदान किया, जबकि 42 विधायक मतदान से अनुपस्थित रहे।
द्रौपदी मुर्मू को 540 सांसदों के वोट मिले, जिनका कुल मूल्य 3,78,000 था। वहीं, देश भर के 2,284 विधायकों ने वोट दिया, जिनके वोटों का कुल मूल्य 2,98,803 था। दूसरी तरफ यशवंत सिन्हा को 206 सांसदों के वोट मिले, जिनका कुल मूल्य 1,45,600 था। इसके अलावा उन्हें 1,669 विधायकों ने वोट दिया, जिनका कुल मूल्य 2,34,577 था।
इस बार के मतदान में 15 सांसदों के वोट रद्द हो गए, जिनका कुल मूल्य 10,500 था। इसके अलावा, 38 विधायकों के वोटों भी रद्द हो गए। इस तरह द्रौपदी मुर्मू को कुल 6,76,803 मूल्य के वोट मिले, जबकि यशवंत सिन्हा को 3,80,177 मूल्य के वोट मिले। यानी कुल वोट का 64.04 प्रतिशत द्रौपदी मुर्मू को और 35.97 प्रतिशत यशवंत सिन्हा को मिले।
यशवंत सिन्हा ने मतदान के दिन सांसदों और विधायकों से आग्रह किया था कि वे अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनें और उन्हें वोट करें, लेकिन उनकी अपील का कोई खास असर नहीं हुआ। उन्हें आंध्र प्रदेश, नगालैंड और सिक्किम से एक भी वोट नहीं मिला। वहीं, केरल में NDA का एक भी वोट नहीं था, फिर भी द्रौपदी मुर्मू को एक विधायक का वोट मिला।
कल राष्ट्रपति चुनाव से पहले वोट डालने जा रहे सभी सदस्यों से मेरी अपील:
— Yashwant Sinha (@YashwantSinha) July 17, 2022
अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनें और मुझे वोट दें। pic.twitter.com/FawIxf1vas
जिन राज्यों में सबसे अधिक क्रॉस वोटिंग हुई, उनमें सबसे ऊपर असम है। यहाँ के 22 विधायकों ने द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया। असम में कॉन्ग्रेस के 25 विधायकों सहित विपक्ष में 39 विधायक हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश के 19 विधायकों और महाराष्ट्र के 16 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की।
मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस सहित विपक्ष के 100 विधायक हैं। बता दें कि असम और मध्य प्रदेश में आदिवासियों की बड़ी संख्या है। असम की कुल आबादी का लगभग 6 प्रतिशत आदिवासी हैं। वहीं मध्य प्रदेश विधानसभा में आदिवासियों के लिए 47 सीटें रिजर्व हैं। द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान का एक बड़ा कारण उनका आदिवासी समाज से होना भी हो सकता है।
इसके बाद उत्तर प्रदेश के 12, गुजरात के 10, झारखंड के 10, मेघालय के 7, छत्तीसगढ़ के 6, बिहार के 6, राजस्थान के 5, गोवा के 4, हरियाणा एवं अरुणाचल प्रदेश के एक-एक विधायकों ने क्रॉस वोटिंग करते हुए द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान किया। इनमें से कई राज्यों में कॉन्ग्रेस या तो सत्ता में है या फिर विपक्ष की भूमिका में है।
इस तरह यशवंत सिन्हा विपक्ष के साझा उम्मीदवार होकर भी विपक्ष का वोट नहीं ले पाए। हालाँकि, राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद यशवंत सिन्हा ने भावी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को बधाई देते हुए दावा कि ये जानते हुए भी कि हार तय है, वे दो लक्ष्य के लिए लड़े। इनमें से प्रमुख था अधिकांश विपक्षी दलों को एक साथ लाना, लेकिन नतीजे बता रहे हैं कि उनका यह लक्ष्य भी पूरा नहीं हुआ।
राष्ट्रपति चुनाव 2022 में विजयी होने पर मैं श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को बधाई देता हूँ।
— Yashwant Sinha (@YashwantSinha) July 21, 2022
देशवासियों को उम्मीद है कि 15वें राष्ट्रपति के रूप में वो बिना किसी भय या पक्षपात के संविधान की संरक्षक के रूप में जिम्मेदारी निभाएंगी। pic.twitter.com/tphTZe2QoM
कहा जा रहा है कि जिन नेताओं ने क्रॉस वोटिंग की है, उनमें अधिकांश कॉन्ग्रेस के नेता हैं। यहाँ यह भी बताना आवश्यक है कि यशवंत सिन्हा तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) के नेता रहे हैं और पिछले साल उन्होंने ममता बनर्जी की पार्टी ज्वॉइन की थी। ये अलग बात है कि उम्मीदवार घोषित होने के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था।
राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में यशवंत सिन्हा का नाम भी ममता बनर्जी ने ही आगे बढ़ाया था। यशवंत सिन्हा के नाम पर कॉन्ग्रेस के नेता पूरी तरह सहमत नहीं थे, लेकिन NDA से लड़ने के नाम पर वे एक मंच पर दिखने की कोशिश जरूर किए थे।
दरअसल, गोवा विधानसभा चुनावों के दौरान से ही ममता बनर्जी विपक्ष का चेहरा बनने की कोशिश करती रही हैं। वह विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने का प्रयास करती दिखीं, लेकिन कॉन्ग्रेस नेताओं ने ममता के नेतृत्व में विपक्षी मोर्चे को मानने से इनकार कर दिया था।
कॉन्ग्रेस के नेताओं का तर्क था कि विपक्षी दलों के किसी भी गठबंधन या मोर्चे का स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता कॉन्ग्रेस और सोनिया गाँधी ही हैं। कॉन्ग्रेस ने इसके पीछे तर्क दिया था कि कॉन्ग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है, जबकि TMC क्षेत्रीय।
यहाँ पर अप्रैल 2022 में तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) नेता रिपुन बोरा के बयान के याद करना भी आवश्यक हो जाता है। बोरा ने कहा था कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 2024 के लोकसभा चुनावों में विपक्षी मोर्चे का नेतृत्व करने के लिए सबसे उपयुक्त नेता हैं। उन्होंने कॉन्ग्रेस पर सवाल उठाए थे।
अगर राष्ट्रपति चुनावों में यशवंत सिन्हा विपक्षी दलों का पूरा वोट पाने में सफल हो जाते तो इससे ममता बनर्जी का भी कद बढ़ जाता। कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनावों में विपक्षी दलों का नेतृत्व ममता के हाथों में आ जाता।