शनिवार को राजस्थान के पर्यटन मंत्री और कॉन्ग्रेस नेता विश्वेन्द्र सिंह ने ट्विटर पर दावा किया कि एक गर्भवती मुस्लिम स्त्री को भरतपुर के डॉक्टर मुनीत वालिया ने अस्पताल में भर्ती करने से मना कर दिया क्योंकि औरत मुस्लिम थी। मंत्री ने यह भी दावा किया कि मुस्लिम होने के कारण उस औरत को जयपुर जाकर सारे टेस्ट्स करवाने को कहा गया।
Pregnant Muslim Woman was refused medical attention at the Zenana Hospital in #Bharatpur & was told to go to Jaipur given her religion. Local Bharatpur MLA is State Health Minister & this is the condition of the hospital in Bharatpur City. Shameful. pic.twitter.com/Rd2i4UZGk3
— Vishvendra Singh Bharatpur (@vishvendrabtp) April 4, 2020
मंत्री के इस दावे पर कई सोशल मीडिया यूजर्स ने आश्चर्य जताया कि बिना किसी जाँच कमिटी से जाँच करवाए कैसे मंत्री जी डॉक्टर पर आरोप लगाने बैठ गए। हालाँकि डॉक्टर द्वारा मरीज को दी गई ट्रांसफर स्लिप जल्दी ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जो अलग ही कहानी कहती है।
जर्नलिस्ट सौम्यदीप्त ने मुस्लिम औरत को दी गई रेफरल स्लिप साझा की, जिससे पता चलता है कि 7वीं बार गर्भवती इस मरीज में खून की बेहद कमी थी, जिसके कारण यह केस बेहद जटिल हो गया था।
Here’s the complete story (the circled term G6P7, APH)👇🏾
— Soumyadipta (@Soumyadipta) April 5, 2020
This is a case of Antepartum Haemorrhage (APH) or bleeding prior to delivery.
The patient was anaemic & undergoing her seventh pregnancy.
Hence her case was deemed complicated.
She was rightly referred to a better hospital. https://t.co/QnSsmJSDcT pic.twitter.com/vjvtaXjxD6
रेफरल स्लिप के अनुसार रोगी Antepartum Haemorrhage (APH) एन्टिपार्टम हैमरेज नामक रोग से ग्रस्त है, जिसमें प्रसव के पहले रक्तस्राव होता है। वह एनेमिक थी और 7वीं बार गर्भ से थी। मरीज के केस की जटिलताओं को देखते हुए उसे जयपुर के बड़े अस्पताल के लिए रेफर किया गया क्योंकि मरीज की स्थितियों को देखते हुए उसके लिए जरूरी इलाज क्लीनिक में उपलब्ध नहीं था।
Note: The patient was referred to a better hospital to save the 7th pregnancy as the attending doctor clearly didn’t have the means to attend the medical case. In such small government hospitals, there is only one attending junior doctor and doesn’t perform complicated procedures
— Soumyadipta (@Soumyadipta) April 5, 2020
एक दूसरे सोशल मीडिया यूजर और खुद एक डॉक्टर, डॉ अमित थडानी ने भी इस रेफरल स्लिप पर लिखे वाक्य “कोई जाँच मौजूद नहीं” को समझाते हुए लिखा कि इस वाक्य का मतलब हुआ कि इस महिला की ये 7वीं गर्भावस्था है और अब तक के प्रसवों का कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है।
Note the words “no investigations available”. No ANC papers, unregistered seventh pregnancy, uninvestigated, with severe anemia and APH – this patient would be very high risk even in a tertiary hospital. https://t.co/jgUu803wTt
— Amit Thadhani (@amitsurg) April 5, 2020
OpIndia से बात करते हुए एक डॉक्टर ने कहा कि ये औरत 26-28 हफ्ते की प्रेग्नेंट थी और सामान्यतः प्रेग्नेंसी 38-40 हफ्तों की रहती है। वह एक जटिल प्रेग्नेंसी थी जिसमें माँ और बच्चे दोनों का जीवन खतरे में पड़ सकता था। हिंदुस्तान टाइम्स के ब्यूरो चीफ राकेश अवस्थी ने भी इस मरीज के साथ मौजूद रही स्त्री की बाईट ट्विटर पर शेयर की, जिसने स्पष्ट किया कि उन्हें मुस्लिम होने के कारण जयपुर अस्पताल रेफर नहीं किया गया।
Aise to na kahi ki tum musalmaan ho (they didn’t say you are Muslim): This testimony is equally important as the one by the man claiming his wife was turned away from Bharatpur hospital for being a Muslim. #Rajasthan @vishvendrabtp @Soumyadipta pic.twitter.com/wbpJILlZSg
— Rakesh Goswami (@DrRakeshGoswami) April 5, 2020
यह औरत साफ़-साफ़ कहती दिखती है कि डॉक्टर ने उन्हें तुरंत वहाँ से चले जाने को कहा क्योंकि मरीज की स्थिति गंभीर थी और देरी होने पर मरीज को नुकसान हो सकता था। इस घटना के बाद लोग हतप्रभ हैं कि क्या राज्य सरकार ने लिबरल धड़े की नजर में कुछ क्रेडिट पॉइंट्स कमाने के चक्कर में डॉक्टर को बदनाम कर उनके करियर को रिस्क में डाल दिया। सत्य क्या है, यह केवल एक निष्पक्ष पारदर्शी जाँच से ही पता चल सकेगा।