Friday, November 15, 2024
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CAA के ख़िलाफ राजस्थान विधानसभा में प्रस्ताव पारित: केरल, पंजाब के बाद ऐसा करने वाला तीसरा राज्य

"हमारा संविधान किसी भी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाता है। देश के इतिहास में पहली बार कोई ऐसा कानून बनाया गया है जो धार्मिक आधार पर लोगों के साथ भेदभाव करता है। यह हमारे संविधान के पंथनिरपेक्ष सिद्धांतों और हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।"

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ राजस्थान विधानसभा ने प्रस्ताव पारित किया है। ऐसा करने वाला वह तीसरा राज्य है। दो अन्य राज्य पंजाब और केरल हैं। पंजाब और राजस्थान में कॉन्ग्रेस की सरकार है, जबकि केरल में वामपंथी दल सत्ता में हैं।

शनिवार को राज्य विधानसभा में सीएए के खिलाफ पारित प्रस्ताव का जिक्र करते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट किया, “राज्य विधानसभा ने सीएए के खिलाफ संकल्प प्रस्ताव आज पारित किया। हम केंद्र सरकार से आग्रह करते हैं कि वह इस कानून को निरस्त करे, क्योंकि यह धार्मिक आधार पर लोगों से भेदभाव करता है जो हमारे संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है।”

उन्होंने कहा, “हमारा संविधान किसी भी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाता है। देश के इतिहास में पहली बार कोई ऐसा कानून बनाया गया है जो धार्मिक आधार पर लोगों के साथ भेदभाव करता है। यह हमारे संविधान के पंथनिरपेक्ष सिद्धांतों और हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।” गहलोत ने कहा कि संविधान की मूल भावना के खिलाफ होने के कारण देशभर में सीएए का विरोध हो रहा है। इसलिए इसे निरस्त किया जाना चाहिए।

हालॉंकि राज्य विधानसभाओं से सीएए के खिलाफ पारित प्रस्ताव मायने नहीं रखता। कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल भी कह चुके हैं कि यदि सुप्रीम कोर्ट ने दखल नहीं दिया तो राज्य कानून लागू करने से इनकार नहीं कर सकते। ऐसा करना असंवैधानिक होगा।

गहलोत ने बताया कि प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित किया गया। इस दौरान बीजेपी के नेताओं ने सदन के अंदर और फिर बाहर आकर प्रस्ताव पर सवाल खड़े किए। साथ ही सीएए लागू करो के नारे भी लगाए। नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद सीएए पहले ही कानून बन चुका है, ऐसे में इस तरह विधानसभा में संकल्प पत्र पेश करने का कोई औचित्य नहीं है।

गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन बिल को पिछले महीने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने 9 दिसंबर को लोकसभा से और 11 दिसंबर को राज्यसभा से पास कराया था। इसके तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए छह धर्मों के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है। इसके तहत कहा गया कि नागरिकता केवल उन्हीं को दी जाएगी, जोकि धार्मिक प्रताड़ना के चलते भारत आए। साथ ही 31 दिसंबर, 2014 के पहले ही भारत आए लोगों को नागरिकता देने का नियम तय किया गया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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