मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल होने के बाद से कमलनाथ के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस सरकार संकट में है। 22 विधायकों के इस्तीफे से सरकार संकट में है। कुछ इसी तरह के हालात राजस्थान में भी बनते जा रहे हैं। सिंधिया की तरह यहॉं भी उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट अपनी उपेक्षा से आहत बताएए जाते हैं। पार्टी विधायक अपनी ही सरकार में बात नहीं सुनने का आरोप मंत्रियों पर लगा रहे हैं तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर मनमर्जी से सरकार और संगठन चलाने के आरोप लग रहे हैं।
अब राजस्थान में राज्यसभा चुनाव के उम्मीदवारी को लेकर विरोध हो गया। गहलोत के एक करीबी को टिकट मिलने पर पार्टी के कई नेताओं ने आपत्ति जताई है। कॉन्ग्रेस ने राजस्थान से राज्यसभा के लिए केसी वेणुगोपाल और नीरज डांगी को उम्मीदवार बनाया है। दोनों ने नामांकन दाखिल भी कर दिया है। नामांकन दाखिल करने के समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे, सह प्रभारी विवेक बंसल समेत कई मंत्री व कई विधायक मौजूद थे।
बताया जा रहा है कि डांगी के नाम को लेकर कॉन्ग्रेस में एक राय नहीं है। उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट भी उनके नाम पर सहमत नहीं थे। लेकिन आखिरकार आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद वे मान गए। डांगी तीन बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन वे हर बार हारे हैं। एक बार देसुरी से और दो बार रेओदर से। दलित समुदाय से आने वाले डांगी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेहद करीबी माने जाते हैं।
राजस्थान के कॉन्ग्रेस विधायक वेद प्रकाश सोलंकी का कहना है, “विधानसभा में इस बात की चर्चा है कि क्या वह अकेले अनुसूचित जाति के उम्मीदवार हैं? वह तीन चुनाव हार चुके हैं इसके बावजूद पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया।” इसके अलावा कॉन्ग्रेस के अन्य नेताओं ने नीरज डांगी की उम्मीदवारी पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि क्या किसी ताकतवर व्यक्ति का करीबी होने से कॉन्ग्रेस में टिकट पाया जा सकता है। हम अपने कैडर को ये क्या संदेश दे रहे हैं? कॉन्ग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया है कि डांगी का पार्टी में कोई खास योगदान भी नहीं है।
राजस्थान से राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव होना है। आँकड़ों के हिसाब से कॉन्ग्रेस के दो और भाजपा का एक उम्मीदवार चुना जाना तय माना जा रहा था। भाजपा के ओंकार सिंह लाखावत को मैदान में उतारने से मुकाबला रोचक हो गया है। नामांकन से नाम वापसी की आखिर तारीख 18 है। अगर 18 मार्च तक लाखावत नाम वापस नहीं लेते हैं तो चुनाव होना तय है। लाखावत को चुनाव मैदान में उतारने का फैसला भाजपा की विधायक दल की बैठक में किया गया था। लाखावत पहले भी राज्यसभा सांसद रह चुके हैं।