कंगना रनौत के ऑफिस में की गई तोड़फोड़ के ठीक अगली सुबह शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ अखबार की बड़ी खबर का शीर्षक है- ‘उखाड़ दिया।’ शिवसेना ने इस शीर्षक के साथ ही स्पष्ट कर दिया है कि कंगना रनौत के टि्वर पर शिवसेना को दी गई चुनौती का ही नतीजा था कि उसकी सरकार ने अभिनेत्री का ऑफिस तोड़ डाला।
अभिनेत्री कंगना रनौत के दफ्तर पर बीएमसी द्वारा बुलडोजर चलाने बाद बृहस्पतिवार (सितम्बर 10, 2020) को शिवसेना के मुखपत्र सामना ने ‘उखाड़ दिया’ के शीर्षक को अपने अखबार के पहले पन्ने पर छापा है।
कल ही बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने कंगना रनौत के बांद्रा स्थित बंगले में कथित ‘अवैध हिस्से’ को नष्ट कर दिया था। इसके बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस कार्रवाई को गलत इरादे से की गई कार्रवाई बताते हुए इस पर रोक लगाने का भी आदेश दिया लेकिन तब तक बीएमसी के जेसीबी अभिनेत्री के बंगले के अधिकांश भाग को ध्वस्त कर कीमती सम्पत्ति को नुकसान पहुँचा चुकी थी।
दरअसल, सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में एक के बाद एक खुलासे करने पर कंगना रनौत महाराष्ट्र की शिवसेना के निशाने पर आ गई थी। यहाँ तक कि शिवसेना नेता संजय राउत ने उन्हें ‘हरामखोर’ तक कह दिया और शिवसेना द्वारा कंगना को धमकियाँ भी दी गईं।
शिवसेना की ओर से दी गई धमकियों के बीच कंगना रनौत ने टि्वटर पर चुनौती दी थी कि वो 9 सितम्बर को मुंबई जाएँगी और कहा कि ‘उखाड़ सको तो उखाड़ लो’। अब कंगना रनौत का बंगला तोड़ने के बाद शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के शीर्षक में ‘उखाड़ लिया’ लिखकर अपनी द्वेषपूर्ण फासीवादी विचारधारा का परिचय दिया है ।
शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ का यह शीर्षक इस बात का संकेत है कि महाराष्ट्र में कोई भी व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति खुलकर नहीं रख सकता और यदि वह ऐसा करेगा तो उसके खिलाफ शिवसेना पूरी बेशर्मी के साथ किसी भी स्तर तक जाने को तैयार है।
दिलचस्प तो यह देखना है कि कंगना के खिलाफ इस खुली गुंडागर्दी के दौरान भी देश के वाम-उदारवादी वर्ग एकदम मौन हैं। सोचिए, महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार होती और JCB कंगना रनौत के बजाए बेफिटिंग रिप्लाय वाली तापसी पन्नू, सोनम कपूर या दीपिका पादुकोण के पास से गुजर भी गई होती तो अब तक कितने लोग भाजपा के कथित फासीवादी शासन के खिलाफ मैदान में उतर गए होते?
कोरोना काल से भी बहुत पहले से बेरोजगार चल रहे कितने ही कलाकार अब तक अपने अप्सरा पेन्सिल अवार्ड लौटाने के लिए आगे आ गए होते, वामपंथियों के स्केच बन रहे होते, कॉमरेड ढपलियाँ बजाते नजर आते और साहित्य का ‘काँजीवरम उद्योग’ अब तक किलोमीटर की लम्बाई से असहिष्णुता और फासिज्म पर निबंध लिख रहा होता।
अगर अभी भी किसी को लगता है कि कोई कथित वाम-उदारवादी वर्ग फासीवाद, पितृसत्ता, निजीकरण या ऐसे ही किसी नव-आधुनिक प्रगतिशील नजर आने वाले ‘लाहौर-लहसुन’ मसलों के खिलाफ लड़ रहा है तो वह वास्तव में ‘हरामखोर’ कहे जाने योग्य है।
और तो और, जब यह तोड़फोड़ की जा रही थी, तब वहाँ कंगना के समर्थन में और शिवसेना के खिलाफ नारेबाजी कर रहे लोगों के साथ भी मुंबई पुलिस द्वारा धक्का-मुक्की और लाठीचार्ज किया गया। यहाँ तक कि समाचार चैनल रिपब्लिक भारत के रिपोर्टर्स को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस तोड़फोड़ पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे गलत इरादे से की गई कार्रवाई बताया है। हाईकोर्ट ने कहा कि यदि इस तरह के काम किए गए तो यह शहर रहने लायक नहीं रह जाएगा। इसके बावजूद शिवसेना द्वारा द्वेषपूर्ण तरीके से संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग किया जाना और उस पर गर्व महसूस करना किसी भी तरह की गुंडागर्दी से कम नहीं कहा जा सकता है।
शायद यही वजह भी है कि कंगना रनौत ने बृहस्पतिवार की सुबह ही एक ट्वीट में शिवसेना को याद दिलाया है कि यह शिवसेना बाल ठाकरे की विचारधारा वाली शिवसेना से अब राजनीति के लिए सोनिया सेना में तब्दील हो चुकी है।
कंगना ने आज सुबह ही अपने एक ट्वीट में लिखा, “जिस विचारधारा पे श्री बाला साहेब ठाकरे ने शिव सेना का निर्माण किया था आज वो सत्ता के लिए उसी विचारधारा को बेच कर शिव सेना से सोनिया सेना बन चुके हैं। जिन गुंडों ने मेरे पीछे से मेरा घर तोड़ा उनको सिविक बॉडी मत बोलो, संविधान का इतना बड़ा अपमान मत करो।”