Saturday, May 11, 2024
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श्रमिक ट्रेनों के टिकट के पैसे कौन दे रहा? क्या सच में प्रवासी मजदूरों से वसूला जा रहा किराया?

जिन राज्यों ने श्रमिक ट्रेन के लिए यात्रियों को चार्ज किया, उनमें महाराष्ट्र, केरल और राजस्थान थे। इनमें महाराष्ट्र में शिवसेना, कॉन्ग्रेस और एनसीपी की सरकार है। केरल में कम्युनिस्टों की है। राजस्थान में कॉन्ग्रेस की सरकार है।

कोरोना वायरस के कहर के बीच अलग-अलग राज्यों में फँसे प्रवासी मजदूरों के घर लौटने को लेकर बीते दिनों बहुत बवाल हुआ। देश में कई जगह प्रदर्शन किए गए कि केंद्र सरकार इन मजदूरों को उनके घर भेजने के लिए बस-ट्रेन का इंतजाम करे। हालाँकि लॉकडाउन के पहले चरण में कोरोना के हालात परखते हुए उन्हें सरकार ने रोके रखा। लेकिन तीसरा चरण शुरू होते ही सरकार ने इन मजदूरों को घर भेजने का इंतजाम किया और श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलवाई। लेकिन विरोधियों ने इस पर भी सवाल खड़े किए और पूछा कि इस ट्रेन के लिए टिकट के पैसे कौन देगा?

कॉन्ग्रेस जैसी कुछ पार्टियों ने ये भ्रम भी फैलाया कि बेरोजगार और लॉकडाउन में फँसे मजदूरों से केंद्र सरकार रेल टिकट के लिए पैसे वसूल कर रही है। मीडिया गिरोह ने बिना सच्चाई जाने धड़ल्ले से इसे फैलाया। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने ये ऐलान कर दिया कि अगर सरकार श्रमिकों के टिकट के पैसे नहीं देना चाहती, तो वे उनके लिए भाड़े का पैसा देंगीं।

ऐसे में उन तथ्यों पर बात करने की जरूरत है जिन्हें लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और जिनसे विवाद बढ़ा है।

रेलवे ने यात्रियों से भुगतान करने को क्यों कहा?

श्रमिक ट्रेन विशेष आग्रह पर शुरू की गई स्पेशल ट्रेन है। इन्हें प्रवासी मजदूरों को उनके घरों/ राज्यों तक भेजने के लिए स्टार्ट किया गया है। इन ट्रेनों को केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की माँग और मजदूरों के प्रदर्शन को देखकर चालू करवाने का फैसला किया है। इन ट्रेनों की यही खासियत है कोरोना के समय में चालू की गई ये ट्रेनें सार्वजनिक रूप से सबको सेवा देने के लिए नहीं है। ये राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वे अपने राज्य में पंजीकृत मजदूरों को चिह्नित करें, उनकी स्क्रीनिंग कर उन्हें ट्रेन से गृहराज्य भेजें।

सबसे जरूरी बात। इस ट्रेन में सफर करने वालें यात्रियों को अपनी ओर से कोई टिकट नहीं खरीदनी है। इसका जिम्मा सिर्फ़ राज्य सरकार पर है कि वे आपस में कॉर्डिनेट करें और टिकट के पैसों का भुगतान करें। अब चूँकि, ये ट्रेन रेगुलर नहीं है और इन्हें केवल राज्य सरकार के आग्रह पर शुरू किया गया है। इसलिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि मजदूर उन ट्रेनों के लिए टिकट खरीदें। राज्य सरकारें भारतीय रेलवे द्वारा शुल्क के रूप में भुगतान करके ट्रेनों की बुकिंग करेंगी, और यात्रियों को कुछ भी नहीं देना होगा।

केंद्र सरकार इस ट्रेन को चलाने के लिए प्रति यात्री 85% लागत का भुगतान कर रही है और लागत का 15% राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाना है। इसलिए अगर राज्य प्रवासी श्रमिकों को चार्ज करने का फैसला करता है, तो इसके लिए जिम्मेदार राज्य सरकार है, न कि केंद्र सरकार। केंद्र सरकार खुद यात्रियों से टिकट नहीं ले रही है और न ही उन्हें टिकट बेच रही है।

क्या ऐसे राज्य हैं जो श्रमिकों से टिकट का भुगतान करवा रहे हैं?

कई मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, जिन राज्यों ने श्रमिक ट्रेन के लिए यात्रियों को चार्ज किया, उनमें महाराष्ट्र, केरल और राजस्थान थे। इनमें महाराष्ट्र में शिवसेना, कॉन्ग्रेस और एनसीपी की सरकार है। केरल में कम्युनिस्टों की है। राजस्थान में कॉन्ग्रेस की सरकार है।

रेलवे ने श्रमिक ट्रेनों को फ्री क्यों नहीं किया?

15% चार्ज जो राज्य सरकार पर लगाया गया है, उसका उद्देश्य ये सुनिश्चित करना है कि राज्य सरकार भी इस मामले पर गौर करें। अगर, यात्रा को रेलवे और केंद्र सरकार मुफ्त करवा देंगे तो प्रवासी मजदूरों के अलावा कई ऐसे लोगों की भीड़ इकट्ठा हो जाएगी जो एक राज्य से दूसरे राज्य में सफर करना चाहते हैं। बीते दिनों हमने ऐसे नजारे महाराष्ट्र में बांद्रा के एक मस्जिद के पास और दिल्ली में आनंद विहार में देखे। अगर 15 प्रतिशत से राज्य सरकार की भागीदारी श्रमिकों को भेजने में रहती है, तो वे इसकी जिम्मेदारी लेंगे और प्रवासी मजदूरों की स्क्रीनिंग के बाद उनकी लिस्ट के साथ सामने आएँगे। ताकि उन्हें टिकट मिल सके।

85% भुगतान केंद्र कर रहा वहन

आम ट्रेनों की टिकट को यदि कोई देखता है, तो उसे मालूम चलेगा कि उसमें ये साफ लिखा होता है कि उसे चार्ज की गई राशि यात्रा के लिए खर्च की गई लागत का केवल 57% है। मगर, श्रमिक ट्रेनों के लिए, यात्रा के दौरान सामाजिक दूरी सुनिश्चित करने के लिए केवल 2/3rd सीटें भरी जाएँगी। यानी दाई और बाई ओर की सीटें भरी जाएँगी, लेकिन बीच की सीट खाली रहेगी। इसी प्रकार टॉप और बॉटम बर्थ भी यात्रियों को दिए जाएँगे। मगर मिडिल बर्थ खाली रखा जाएगा। इनके कारण इनका शुल्क घटकर 38% हो जाएगा। ये विशेष ट्रेनें हैं और पूरी तरह से खाली होकर वापस होंगी, इसलिए यात्री की लागत को आधे से विभाजित किया गया है, जो कि 19% होगी। मगर बावजूद इसके भोजन और स्वच्छता जैसी यात्री सेवाओं को ध्यान में रखने के बाद, राज्य सरकारों को कुल लागत का 15% भुगतान करने के लिए कहा गया था, शेष 85% केंद्र सरकार द्वारा वहन किया गया था।

रेलवे ने PM CARES में पैसा क्यों दिया, इसे सब्सिडी पर खर्च क्यों नहीं किया?

बता दें इस दावे को लेकर राहुल गाँधी ने सर्वप्रथम ट्वीट किया और जानबूझकर भ्रम फैलाया। उन्होंने अपने ट्वीट से ऐसे दर्शाया कि पीएम केयर फंड में तो रेलवे ने 151 करोड़ रुपए दान दे दिए थे। मगर जब बात प्रवासी मजदूरों की आई तो वे उनके भुगतान करने के लिए कह रहा है। जबकि सच ये है कि रेलवे द्वारा पीएम राहत कोष में दिया गया फंड उनपर भार नहीं था, जो कहीं भी कैसे भी खर्च किया जाए। इसके अलावा पीएम फंड के लिए रेलवे के कर्मचारियों ने अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा दान किया था।

हवाई यात्रा के लिए भुगतान करने को नहीं कहा गया था?

बिलकुल गलत। ऐसा नहीं है कि उनसे भुगतान करने को नहीं कहा गया। उन्हें कहा गया था और जहाँ उन्हें भुगतान करने के लिए नहीं कहा गया, वहाँ सरकार एयर इंडिया या भारतीय वायु सेना के बिल का भुगतान करेंगे। हालाँकि, इस बीच कुछ विमान एयरलिफ्ट की तरह थे, जिनसे वुहान जैसी जगहों से लोगों को आपातकाल में निकाला गया। ।

सोनिया गाँधी अपने कहे अनुसार भुगतान करती हैं, तो उन्हें कितनी राशि रेलवे को देनी होगी?

सरकार श्रमिकों के लिए 34 ट्रेनें चालू करने जा रही है। इसलिए इन ट्रेनों को ऑपरेट करने में 24 करोड़ का खर्चा आएगा। यानी हर राज्य को 3.5 करोड़ रुपए देने होंगे। अगर हम मानते हैं कि रेलवे 100 ट्रेन प्रवासी मजदूरों के लिए चलाएगी तो सोनिया गाँधी को 706 करोड़ रुपए देने होंगे। इस राशि का भुगतान सीडब्ल्यूसी और सोनिया गांधी के निजी खजाने से किया जाएगा, न कि राज्य के सरकारी खजाने से। 

इसलिए यहाँ स्पष्ट होता है कि श्रमिक ट्रेनों को लेकर जो विवाद खड़ा किया जा रहा है वो केवल राजनीति से प्रेरित है। कॉन्ग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियाँ केवल इस स्थिति को और भयावह बनाना चाहती है, ताकि वे गरीब मजदूरों की भावनाओं से खेलकर अपनी राजनीति की रोटियाँ सेंक सकें।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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