Sunday, November 17, 2024
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कॉन्ग्रेस में PK की नो एंट्री, क्योंकि वो राहुल गाँधी के कुत्ते के साथ एक प्लेट में बिस्किट नहीं खा सकते: नेता विदेश में, चाटुकार मौज में

राहुल गाँधी को ऐसे ही लोग चाहिए। नेता ऐसा होना चाहिए, जो उनके हर ऐन मौकों पर विदेश जाने को चैनल-चैनल घूम कर बचाव करे। नेता ऐसा, जो उनके रिट्वीटस-लाइक्स गिना कर उन्हें उनकी उच्च श्रेणी की याद दिलाता रहे।

काफी दिनों से बन रही हवा मंगलवार (26 अप्रैल, 2022) को अचानक से ख़त्म हो गई। अब तक गाँधी परिवार के साथ प्रशांत किशोर की बैठकों की खबरें आ रही थीं, अब पता चला है कि PK की कॉन्ग्रेस में एंट्री नहीं होगी। कॉन्ग्रेस ऐसे ही चलती रहेगी, कुछ नया नहीं होगा। कई महीनों से चल रहे मोलभाव के बाद प्रशांत किशोर को कॉन्ग्रेस की ‘एम्पॉवर्ड एक्शन ग्रुप’ में शामिल होने का न्योता मिला, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया।

जैसा कि लोगों से छिपा नहीं है, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव गँवा चुकी कॉन्ग्रेस की अपने दम पर सत्ता फ़िलहाल छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ही बची है, जबकि 3 राज्यों (तमिलनाडु, झारखंड और महाराष्ट्र) में वो सरकार में गठबंधन साथी के रूप में साझीदार है। पार्टी का जनाधार किस कदर घटता जा रहा है, ये हमने हालिया 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में देखा। प्रियंका गाँधी का चेहरा और उनकी ‘दादी वाली नाक’ भी फेल हो चुकी है।

ऐसे में पार्टी को उम्मीद थी कि राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर इसमें नई जान फूँक देंगे और सब चंगा हो जाएगा। लेकिन, गाँधी परिवार को ये उम्मीद नहीं रही होगी कि पीके उनकी चाटुकारिता नहीं करेंगे। कभी कहा गया कि प्रशांत किशोर ने कॉन्ग्रेस को रास्ते पर लाने के लिए गाँधी परिवार की जगह किसी और को कमान देने का सुझाव दिया है, तो कभी उनके 85 पन्नों वाले प्रेजेंटेशन की बात गई की गई। कभी कहा गया कि उन्होंने जनता से जुड़ाव के लिए नई रणनीति बनाई है।

ये भी विडंबना ही है कि जब ये सारे विचार-विमर्श चल रहे थे, तब राहुल गाँधी विदेश में छुट्टियाँ मना रहे थे। पार्टी का पूर्व अध्यक्ष, जो भविष्य का अध्यक्ष भी बताया जाता है और अभी भी सारे निर्णय लेता है, उसके इस रवैये से आप समझ सकते हैं कि वो अपनी पार्टी को ऊपर उठाने के लिए कितना चिंतित है। 2024 से पहले ‘राजनीतिक चुनौतियों’ से निपटने के लिए राजस्थान के उदयपुर में 13-14 मई को ‘चिंतन शिविर’ भी आयोजित किया गया है।

प्रशांत किशोर पर वापस आएँ तो उनके पीछे हटने का कारण ये बताया जा रहा है कि उन्हें पार्टी उनकी योजनाओं को लागू करने के लिए खुली छूट नहीं दे रही है। पीके ने ट्वीट कर के बताया कि उन्होंने EAC में शामिल होने या फिर चुनाव की जिम्मेदारियाँ लेने का कॉन्ग्रेस का ऑफर ठुकरा दिया है। उन्होंने कहा कि उनके विचार में कॉन्ग्रेस को उनसे ज्यादा एक नेतृत्व की जरूरत है। उन्होंने स्पष्ट किया कि पार्टी को बदलाव वाले सुधार कर के अपनी जड़ों में पैठी संरचात्मक समस्याओं को ठीक करने के लिए सामूहिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।

वहीं कॉन्ग्रेस के महासचिव और पार्टी की वर्किंग कमिटी के सदस्य रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस ट्वीट के कुछ देर पहले ही बयान दिया था कि प्रशांत किशोर के प्रेजेंटेशन और उनके साथ हुई बैठकों के बाद ही अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने ‘EAC 2024’का गठन किया है। उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर ने कॉन्ग्रेस में शामिल होने का न्योता ठुकरा दिया है। उन्होंने कहा कि वो प्रशांत किशोर के सुझावों और उनके प्रयासों की प्रशंसा करते हैं।

वहीं ‘कॉन्ग्रेस के पत्रकार’ आदेश रावल की मानें तो प्रशांत किशोर और कॉन्ग्रेस के बीच बात बिगड़ने की पहली बड़ी वजह ‘Absolute Power (संपूर्ण शक्ति)’ है, और दूसरा कॉन्ग्रेस प्रशांत किशोर और IPAC को एक समझ रही थी, जबकि PK कंपनी और खुद को अलग बता रहे थे। बता दें कि ‘इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी (IPAC)’ प्रशांत किशोर द्वारा स्थापित कंपनी है, जो पार्टियों के लिए विभिन्न चुनावों की जिम्मेदारी लेती है।

कॉन्ग्रेस में अभी भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा हैं। गुजरात में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल लगातार याद दिला रहे हैं कि उनकी उपेक्षा हो रही है। हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा से कार्यकर्ताओं की नाराजगी के बावजूद उनके करीबी को प्रदेश अध्यक्ष का पद थमा दिया गया। महाराष्ट्र में गठबंधन में रहने के बावजूद पार्टी के मंत्री-विधायक लगातार MVA (महा विकास अघाड़ी) सरकार के खिलाफ आलाकमान से शिकायत करते रहते हैं।

प्रशांत किशोर के कॉन्ग्रेस में शामिल न होने की असली वजह तो ये है कि राहुल गाँधी को रणनीतिकार या नेता नहीं, बल्कि चाटुकार चाहिए। असम के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता हिमंता बिस्वा सरमा ने एक वाकया सुनाया था। जब वो कॉन्ग्रेस में हुआ करते थे और पार्टी से नाराज़ चल रहे थे, तब वो राहुल गाँधी से मिलने गए थे। इस दौरान वो अपने कुत्ते को बिस्किट खिलाते हुए हर बात पर ‘So What (तो क्या?)’ कहते रहे। सबसे बड़ी बात कि तरुण गोगोई जैसे बुजुर्ग नेता भी उसी प्लेट से बिस्किट उठा कर खाते रहे।

राहुल गाँधी को ऐसे ही लोग चाहिए। नेता ऐसा होना चाहिए, जो उनके हर ऐन मौकों पर विदेश जाने को चैनल-चैनल घूम कर बचाव करे। नेता ऐसा, जो उनके रिट्वीटस-लाइक्स गिना कर उन्हें उनकी उच्च श्रेणी की याद दिलाता रहे। नेता ऐसा, जो पंजाब के मुख्यमंत्री रहे चरणजीत सिंह चन्नी की तरह उनकी गाड़ी की ‘डिक्की’ में भी बैठ कर सफर कर सके। नेता ऐसा, जो उनके इस्तीफे के बाद फिर से अध्यक्ष बनाए जाने की माँग करे। जो एक ही प्लेट में उनके कुत्ते के साथ बिस्किट खा सके।

प्रशांत किशोर को इससे पहले भी चुनावी रणनीतिकार की जिम्मेदारियाँ 2014 में नरेंद्र मोदी के बाद से आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल, पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह, पश्चिम बंगाल और गोवा में तृणमूल कॉन्ग्रेस ने दी है। कॉन्ग्रेस ने भी यूपी में उनसे काम लिया। बिहार में जदयू के नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यमंत्री स्तर तक का दर्जा दे डाला था। लेकिन, गाँधी परिवार के साथ उनकी बात नहीं बनी। क्या वो ‘चाटुकार’ नहीं हैं, इसीलिए?

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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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