लोकसभा चुनाव नज़दीक आते ही एक बार फिर यूनिवर्सल बेसिक इनकम चर्चा में है। वैसे भारत में सामाजिक-आर्थिक विषमता को देखते हुए, इसकी ज़रूरत शिद्दत से महसूस की जाती रही है। आइए विस्तार से उन वजहों पर विचार करते हैं कि क्यों भारत में एक बेसिक इनकम की ज़रूरत है और इस योजना के लागू करने में कौन-सी अड़चने हैं।
क़ायदे से अगर हम देंखे तो भारत में आय की असमानता साफ़ नज़र आएगी, इसकी वजह आज भी देश के कामगार वर्ग और युवाओं के पास पिछले पाँच सालों में लोगों की आय में कुछ सुधार के बाद भी एक निश्चित आय के साधन का न होना है। आज आज़ादी के 72 साल के बाद भी, क्या देश में सभी लोगों के लिए जीवन की न्यूनतम आवश्यकताएँ पूरी हो पाई हैं? आज भी सभी के पास पीने को स्वच्छ जल नहीं है, सभी को रहने को घर और खाने को भोजन भी सुनिश्चित नहीं हो पाया है। ग़रीबों के बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा व्यवस्था भी नहीं दिखती।
देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं कर पा रहा तो कारण यह है कि लोगों के पास नियमित आय के पर्याप्त साधन नहीं हैं कि वो अपनी मूलभूत ज़रूरतें भी पूरी कर पाएँ। तो क्यों न तमाम सामाजिक, आर्थिक मानकों और विसंगतियों का अध्ययन करते हुए सभी के लिये एक बेसिक इनकम की व्यवस्था कर दी जाए। जिससे वो अपनी साधारण ज़रूरतें पूरी कर पाएँ।
एक लोकतान्त्रिक समाज से हम ऐसी अपेक्षाएँ पाल सकते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को जीवन यापन के लिये कम से कम न्यूनतम आय की गारंटी मिलनी चाहिए।
भारत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम पर ध्यान तब और आकर्षित हुआ जब 2016-17 के भारत के आर्थिक सर्वेक्षण में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) को एक अध्याय के रूप में शामिल कर इसके विविध पक्षों पर चर्चा की गई। ग़ौरतलब यह भी है कि आर्थिक सर्वेक्षण में UBI योजना को ग़रीबी उन्मूलन के साधन के रूप में इसे एक संभावित उपाय बताया गया था।
आख़िर क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम
यूनिवर्सल बेसिक इनकम देश के हर ज़रूरतमंद नागरिक को, एक नियमित अंतराल पर, बिना शर्त दिया जाने वाला नगद ट्रांसफ़र है। आमतौर पर इसके लिये व्यक्ति की सामाजिक या आर्थिक स्थिति पर विचार नहीं किया जाता है। अर्थात, अगर वो इस स्थिति में नहीं है कि अपना जीवनयापन कर सके, तो उसे सरकार एक तय राशि देगी। इसकी जड़ में ग़रीबी हो सकती है, किसी का बेरोज़गार होना हो सकता है, या दो नौकरियों के बीच एक वो दौर जब कोई बिना नौकरी के रह रहा/रही हो।
UBI पर आर्थिक सर्वेक्षण की राय
आर्थिक सर्वेक्षण ग़रीबी कम करने के प्रयास में विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं के विकल्प के रूप में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) की वकालत करता है। यह बताता है कि ग़रीबों की मदद करने का एक अधिक कुशल तरीका उन्हें UBI के माध्यम से सीधे नगद प्रदान करना होगा। यह मौजूदा अनेक कल्याणकारी योजनाओं और विभिन्न प्रकार के सब्सिडी का एक बेहतर विकल्प होगा। यह JAM (जनधन-आधार-मोबाइल) प्लेटफॉर्म के माध्यम से सीधे नगद हस्तांतरण के रूप में प्रशासनिक दक्षता भी लाएगा।
भारत के लिये क्यों ज़रूरी है बेसिक न्यूनतम आय
इस बात की सुगबुगाहट पहले से है कि चुनाव से पहले मोदी सरकार द्वारा देश में ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ (Universal Basic Income-UBI) योजना लागू करने की घोषणा की जा सकती है। उससे पहले राहुल गाँधी ने ‘ग़रीबी हटाओ’ के नारे की तरह चुनावी एजेंडे के रूप में इसे फिर से हवा दे दी। उन्होंने तो यूनिवर्सल बेसिक इनकम लागू करने का लगभग आश्वासन ही दे दिया, पर हमेशा की तरह यह कैसे संभव होगा इस पर कुछ नहीं कहा।
कुछ दिन पहले सिक्किम ने भी दावा किया कि वह इस योजना को लागू करने वाला पहला राज्य होगा और उसने बिना शर्त डायरेक्ट कैश ट्रांसफर योजना लाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। मीडिया रिपोर्ट के आधार पर, सिक्किम की सत्तारूढ़ पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (SDF), 2019 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले, अपने घोषणा-पत्र में UBI को शामिल करने का फ़ैसला कर चुकी है और उनका उद्देश्य 2022 तक राज्य में योजना को लागू करना है।
क्या सिक्किम UBI का बोझ उठाने में सक्षम है
सिक्किम के प्रस्तावित UBI के पक्ष में सबसे आम तर्क यह है कि यह सामाजिक न्याय को बढ़ावा देगा क्योंकि यह अन्य सभी कल्याणकारी योजनाओं और सब्सिडी को ख़त्म कर देगा जिससे ग़रीबों हेतु लक्षित अप्रभावी सरकारी परियोजनाओं पर फ़ालतू ख़र्च भी समाप्त हो जाएगा। सिक्किम सरकार का कहना है कि उसने इस योजना के वित्तीय प्रक्रिया पर पहले ही विचार कर लिया है।
सिक्किम ने अपने स्रोतों का ख़ुलासा करते हुए बताया कि राज्य द्वारा कई जलविद्युत परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन से राज्य को विद्युत अधिशेष प्राप्त हुआ है। राज्य में 2200 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है और अगले कुछ वर्षों में यह आँकड़ा बढ़कर 3000 मेगावाट हो जाएगा। राज्य की आवश्यकता केवल 200-300 मेगावाट है और बाकी की बिजली ट्रेडिंग कंपनियों को बेच दी जाती है जिससे राजस्व में वृद्धि होती है। इसका उपयोग UBI में किया जा सकता है।
इसके अलावा, सिक्किम टूरिज्म से पर्याप्त राजस्व प्राप्त करता है। बता दें कि, सिक्किम की प्रति व्यक्ति GDP 2004-05 से दोहरे अंकों में बढ़ रही है। सिक्किम में 2011-12 में ग़रीबी का अनुपात 22% अर्थात् 51,000 (8.2%) तक घटा है जो 2004-05 में 1.7 लाख (30.9%) था। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार कम आबादी वाला यह राज्य जीवन स्तर के मामले में भारत के बेहतर राज्यों में गिना जाता है।
सिक्किम में ग़रीबी का स्तर (Poverty Level) 8 से 9% है, जो राष्ट्रीय औसत से काफ़ी नीचे है। बता दें कि प्रति व्यक्ति सकल आय के मामले में सिक्किम का सभी भारतीय राज्यों में तीसरा स्थान होने से इसके पास पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं। सिक्किम महिलाओं के लिये भी सबसे सुरक्षित और प्रगतिशील राज्यों में से एक है। जहाँ कार्यस्थल पर औसत से अधिक उपस्थिति है तथा महिलाओं के विरुद्ध अपराध के आँकड़े बहुत कम हैं। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, राज्य की साक्षरता दर 2001 के 68.8% से बढ़कर 2011 में 82.2% हो गई है।
शिवराज सरकार ने मध्य प्रदेश में चलाया था पायलट प्रोजेक्ट
UBI का सुझाव लंदन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर गाय स्टैंडिंग ने दिया था जिनकी अगुवाई में शिवराज सिंह चौहान सरकार ने मध्य प्रदेश के इंदौर के पास 8 गाँवों में पाँच साल के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट चलाया। प्रायोगिक तौर पर इन गाँवों की 6,000 की आबादी के बीच 2010 से 2016 के बीच 500 रुपए वयस्कों के बैंक खाते में हर महीने ट्रांसफ़र किए गए। वहीं, बच्चों के खाते में 150 रुपए जमा कराए गए। उस समय भी प्रयोग के सफल होने के बाद प्रोफ़ेसर स्टैंडिंग ने दावा किया कि मोदी सरकार इस योजना को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है।
ग़ौरतलब है कि मध्य प्रदेश में अधिकांश ग्रामीणों ने उस पैसे का उपयोग शौचालय, दीवार, छत की मरम्मत में किया। अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के वंचित परिवारों में यह देखा गया कि बेहतर वित्तीय स्थिति में उन्होंने राशन की दुकानों की बजाय बाज़ार से सामान ख़रीद अपने पोषण स्तर में सुधार किया और स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति और प्रदर्शन दोनों बेहतर हुई। ऐसे आकड़ों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बेसिक इनकम का यह विचार एक उत्तम पहल है।
बेसिक इनकम को पायलट प्रोजेक्ट के ज़रिए बढ़ाना और धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक इसे अमल में लाना भारत में आदर्श प्रतीत हो रहा है क्योंकि इसके माध्यम से गाँवों में लोगों के रहन-सहन के स्तर को सुधारा जा सकता है। उन्हें पेयजल उपलब्ध कराया जा सकता है और बच्चों के पोषण में भी सुधार लाया जा सकता है। एक नियमित बेसिक इनकम से भूख और बीमारी से निपटने में मदद मिल सकती है।
बेसिक इनकम, बाल श्रम उन्मूलन में भी मददगार साबित हो सकती है। इससे उत्पादक कार्यों में वृद्धि करके गाँवों की सूरत बदली जा सकती है और यह सही मायने में सतत विकास की दिशा में एक सराहनीय प्रयास होगा। बेसिक इनकम की मदद से सामाजिक विषमता को भी कम किया जा सकता है। यदि एक वाक्य में कहें तो बेसिक इनकम का यह विचार आय की असमानता और इसके दुष्प्रभावों के श्राप से भारत को मुक्त कर 72 साल के पिछड़ेपन को दूर कर सकता है।