Wednesday, April 23, 2025
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जिस घर को बनाना था ‘विरासत स्थल’, उसे बांग्लादेश के कट्टरपंथियों ने किया ध्वस्त: यहीं पले-बढ़े थे ऋत्विक घटक, सिनेमा में दिखती थी भारत विभाजन की विभीषिका

ऋत्विक घटक का घर 6 अगस्त को ध्वस्त कर दिया गया था, जिस दिन बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना देश छोड़कर भागी थी।

बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामिक हिंसा के बीच बंगाली और आर्ट सिनेमा के महान फिल्मकारों में से एक ऋत्विक घटक के पुश्तैनी घर को बलवाइयों ने ध्वस्त कर दिया है। उनका ये पुश्तैनी घर बांग्लादेश के राजशाही जिले में था, जहाँ उनके पिता जिला मजिस्ट्रेट थे। ऋत्विक का जन्म तो ढाका में हुआ था, लेकिन अपना किशोरा और युवा वस्था उन्होंने राजशाही में बिताया था।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक, ऋत्विक घटक का ये घर राजशाही जिले के मियाँपारा में था। उनके भवन के अगले हिस्से में राजशाही होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज था, जबकि पिछले हिस्से में उनका परिवार रहा करता था। ये घर 6 अगस्त को ध्वस्त कर दिया गया था, जिस दिन बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना देश छोड़कर भागी थी।

साल 2017 में इस घर को विरासत स्थल घोषित करने का प्रस्ताव दिया गया था। राजशाही की ऋत्विक घटक फिल्म सोसायटी ने इसका प्रस्ताव दिया था। प्रस्ताव में इस घर को ऋत्विक सेंटर के तौर पर विकसित करने की माँग की गई थी, जहाँ फिल्मों को दिखाया जा सके। ये बड़ा घर करीब 5 बीघा जमीन में बना हुआ था। इस घर पर रवींद्रनाथ टैगोर, उस्ताद अली अकबर खान और उस्ताद बहादुन खान जैसे मशहूर लोग आ चुके थे। फिल्म रिसर्चर संजय मुखोपाध्याय ने इसे ‘इतिहास का टुकड़ा’ खोने सरीखा बताया है।

ऋत्विक घटक कौन थे?

ऋत्विक घटक एक बेहतरीन निर्माता निर्देशक तो थे ही इसके साथ ही वह मंझे हुए कलाकार और पटकथा लेखन में भी माहिर थे। ऋत्विक घटक का जन्म 4 नवंबर साल 1925 में अविभाविजत भारत के ढाका में हुआ था। उन्होंने अपना युवावस्था राजशाही में बिताया था। ऋत्विक घटक ने सिनेमा में अपने करियर की शुरुआत 1957 में ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में बनी फिल्म ‘मुसाफिर’ से की थी। इसकी स्क्रिप्ट भी उन्होंने लिखी थी।

ऋत्विक घटक ने भारतीय सिनेमा को बेहतरीन फिल्में दी थीं। उनकी प्रसिद्ध फिल्मों में ‘मेघे ढाका तारा'(1960), कोमल गंधार ई फ्लैट (1961), और ‘सुवर्णरिखा’ (1962) मुख्य थीं। 6 फरवरी 1976 को सिनेमा के इस बहुमूल्य रत्न ने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके काम में विभाजन की विभीषिका साफ दिखती रही है। वो देश के विभाजन के समय कोलकाता चले आए थे। साल 1976 में कोलकाता में उनका देहांत हो गया था। उन्होंने पुणे के FTTI में भी पढ़ाया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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