Thursday, October 10, 2024
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चीनी माल जैसा चीन की कोरोना वैक्सीन का असर? मीडिया के सहारे साख बचाने का खतरनाक खेल

ब्राजील ने सिनोवेक वैक्सीन के लास्ट स्टेज ट्रॉयल में पाया कि चीनी वैक्सीन का प्रभाव 50.38% है न कि 78%। यानी उनके हिसाब से वास्तविक प्रभावी क्षमता अब भी स्पष्ट नहीं है।

चीन अपनी कोरोना वैक्सीन को लेकर इतना भी आश्वस्त नहीं है कि उस पर सही जानकारी दे। ऐसे में यदि कोई उसकी आलोचना कर दे तो एक पूरा तंत्र उस व्यक्ति को झुठलाने पर लग जाता है। मगर न चीनी कंपनी और न वहाँ की मीडिया, अपने वैक्सीन की विश्वसनीयता साबित करने का कोई प्रयास करती है और न ही उसके प्रभावकारी डेटा के बारे में कोई जानकारी देती है। बस दूसरों की बुराई करके तथ्यों से बरगलाने की कोशिश चलती रहती है।

सीएनन की रिपोर्ट के अनुसार, हाल में चीन को अपनी वैक्सीन विकासशील देशों को मुहैया करवाने के लिए काफी तारीफ मिली थी। कहा गया था कि चीनी कंपनी सिनोवेक (Sinovac ) और सिनोफर्म (Sinopharm) द्वारा निर्मित वैक्सीन को अन्य पश्चिमी देशों की वैक्सीन की तरह कोल्ड स्टोरेज में रखने की आवश्यकता नहीं है, जबकि अन्य कंपनियों द्वारा निर्मित वैक्सीन सिर्फ़ ठंडे तापमान में ही रह सकती है।

ये सारी बातें ऐसी थीं जो हर हाल में चीनी वैक्सीन को ज्यादा बेहतर दिखा रहीं थी। लेकिन, धीरे धीरे इन दावों की पोल-पट्टी खुलनी शुरू हो गई है। एक समय तक चीन की दोनों कंपनियाँ अपनी वैक्सीन के 78% प्रभावी होने का दावा ठोक रही थीं, जो WHO के तय किए गए मानक (50%)  से काफी अधिक था। 

इसके अलावा यह प्रतिशत ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एस्ट्राजेनेका (AstraZeneca) वैक्सीन और अमेरिका में विकसित एमआरएनए-आधारित टीकों (mRNA-based vaccines) से भी अधिक प्रभावी था। मगर, अलग-अलग क्षेत्रों से आने वाले ताजा आँकड़े चीन के इस दावे को खारिज करते हैं।

वैक्सीन को लेकर अपर्याप्त डेटा और बेमेल रिपोर्ट्स

रिपोर्ट के अनुसार, ब्राजील ने सिनोवेक वैक्सीन के लास्ट स्टेज ट्रॉयल में पाया कि चीनी वैक्सीन का प्रभाव 50.38% है न कि 78%। यानी उनके हिसाब से वास्तविक प्रभावी क्षमता अब भी स्पष्ट नहीं है। इसी तरह तुर्की ने इसकी प्रभावी क्षमता को 91.25% रखा और इंडोनेशिया ने इसके प्रभावी दर को 65.3% रखा। इसके बाद ब्राजील ने अपने हालिया बयानों में कहा कि कुछ केसों में दूसरों की तुलना में इसकी प्रभावकारिता का स्तर अधिक है।

अब इस तरह भिन्न-भिन्न आँकड़े आने के बाद कुछ देशों ने चीन की इन वैक्सीन को समीक्षा में रखा है और कुछ ने इसे रोल आउट करने का निर्णय लेकर कंपनी से सही जानकारी देने का अनुरोध किया है।

ऐसे में ग्लोबल टाइम्स के संपादक हू-शिजिन (Hu Xijin ) ने अपने देश की साख बचाने के लिए अपने लेख में दावा किया है कि अमेरिका समेत कुछ पश्चिमी देश चीन द्वारा निर्मित वैक्सीन को लेकर नकारात्मक सूचना प्रकाशित कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, “चीन की वैक्सीन की छवि धूमिल करने के लिए प्रेस बाहर आ गया है। उन्हें लग रहा है कि पूरा विश्व फाइजर और अन्य अमेरिकन व पश्चिमी देशों का इंतजार करेगा कि वो अतिरिक्त वैक्सीन तैयार करें और उनका टीकाकरण हो।”

ध्यान देने वाली बात है ग्लोबल टाइम्स यहाँ भी वैक्सीन के प्रभाव पर जानकारी नहीं दे रहा, बल्कि चीनी कंपनी की साख बचाने के लिए दूसरी कंपनियों पर तंज कस रहा है। अपने हालिया संपादकीय में ग्लोबल टाइम्स के संपादक पश्चिमी मीडिया को कोसते हैं। वह कहते हैं, “ऐसे प्रमुख पश्चिमी मीडिया चीनी टीकों के बारे में किसी भी उलटी जानकारी को तुरंत प्रचारित करेंगे और लोगों की मानसिकता को उससे प्रभावित करने का प्रयास करेंगे।”

चीन का प्रभाव और मीडिया का खेल

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स पिछले दिनों कोरोना वैक्सीन से होते दुष्प्रभावों के बारे में प्रकाशित की गई थी। लेकिन नैतिकता के आधार पर यदि देखें तो मीडिया चाहें कहीं की भी हो, महामारी से होती मौतों को हड़बड़ी में वैक्सीन से जोड़ना समझदारी नहीं है। जो रिपोर्ट्स वैक्सीन से हो रही एलर्जी की चर्चा कर रहे हैं उन्हें समझना चाहिए कि वैक्सीन से कुछ रिएक्शन हो सकते हैं, लेकिन बिना प्रमाण उन्हें मौतों से जोड़ना गलत है।

बरगलाने वाले शीर्षकों को देने से भी मीडिया को इस समय बचने की जरूरत है। पाठक कई बार हेडलाइन पढ़कर अंदर पूरी खबर नहीं पढ़ना चाहते और उनके मन में भ्रम उठ जाता है कि कोरोना वैक्सीन सुरक्षित नहीं है। भारतीय मीडिया का उदाहरण लें तो अभी तक ढाई लाख लोगों को टीका लगा है और बहुत कम केस एलर्जी या मृत्यु के आए हैं। लेकिन मीडिया हाउस सीधे वैक्सीन से हुई मृत्यु पर बात करने लगे, जबकि इस बात के कोई सबूत ही नहीं है कि मृत्यु का कारण टीका लेना था।

18 जनवरी को कई एजेंसियों ने दावा किया कि यूपी में वैक्सीन लेने के बाद 48 साल के वार्ड बॉय की मृत्यु हो गई जबकि सच्चाई ये थी कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी रिपोर्ट में साफ कहा था कि इसका टीके से कोई संबंध नहीं है। उसकी मृत्यु का कारण कोई और बीमारी थी।

कॉन्ग्रेस समर्थक साकेत गोखले ने भी ऐसे फर्जी दावे सनसनीखेज बनाकर पेश किए और कहा कि गर्भवती महिलाओं को ये वैक्सीन लेने से बचना चाहिए, क्योंकि इसके बारे में जानकारी सार्वजनिक नहीं है। सोचिए, ये हाल तब है जब स्वास्थ्य मंत्री कह चुके हैं कि टीके से जुड़ी सारी जानकारी जमीनी स्तर पर उपलब्ध है और 15 जनवरी को शेयर ट्वीट में बता चुके हैं कि किसे वैक्सीन लेने से बचना है।

चीन इस महामारी के समय में भी भारतीय मीडिया को प्रभावित कर रहा है। पिछले सालों में उस पर आरोप रहे हैं कि वो विदेशी पत्रकार को उनके समर्थन में रिपोर्ट लिखने के लिए उकसाता है। वहीं मुख्यधारा का मीडिया इसी प्रोपगेंडे को आगे बढ़ाते हुए चीनी सरकार को अच्छा दिखाने में जुट जाता है और उसी समय भारत के फैसलों को नीचा दिखाता है। हाल में प्रकाशित तमाम वैक्सीन विरोधी लेख यह प्रश्न उठाते हैं कि चीन अपनी साख बचाने के लिए अन्य देश के मीडिया को प्रभावित कर रहा है और अपनी वैक्सीन पर सही तथ्यों को देने से बच रहा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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