न्यू यॉर्क में भारत के कॉन्सुल जनरल हैं संदीप चक्रवर्ती। अभी खबरों में हैं। वो इसलिए क्योंकि उन्होंने कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास पर कुछ कह दिया। इससे बहुतों को मिर्ची लग गई। जबकि कॉन्सुल जनरल चक्रवर्ती ने सिर्फ इतना कहा कि इस्लामिक हिंसा के कारण मजबूरी में घाटी छोड़ने वाले कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए भारत भी इज़राइली मॉडल अपना सकता है।
एक निजी कार्यक्रम में बोलते हुए कॉन्सुल जनरल संदीप चक्रवर्ती ने कहा कि कश्मीरी पंडित जल्द ही घाटी लौट सकते हैं क्योंकि “अगर इज़रायल के लोग ऐसा कर सकते हैं, तो हम भी कर सकते हैं।” यहाँ उनका तात्पर्य इससे था कि जिस तरह से इजरायल ने अपने नागरिकों के हितों के लिए रास्ते अपनाए, वैसा ही भारत भी कर सकता है। लेकिन उनके इस बयान से बवाल मच गया।
संदीप चक्रवर्ती ने इज़रायली मॉडल को स्पष्ट करते हुए संदर्भ में कहा,
“मेरा मानना है कि जम्मू और कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति में सुधार होगा। यह शरणार्थियों को वापस जाने की अनुमति देगा और अपने जीवनकाल में, आप वापस जाने में सक्षम होंगे… आप अपने घर वापस जा पाएँगे और आपको सुरक्षा मिलेगी, क्योंकि दुनिया में हमारे पास पहले से ही एक मॉडल है।”
ख़बर के अनुसार, भारतीय राजनयिक ने टिप्पणी करते हुए कहा, “मुझे नहीं पता कि हम इसका पालन क्यों नहीं कर रहे हैं। ऐसा पूर्व में हुआ है। आपको देखना होगा कि अगर इज़रायल ऐसा कर सकता है, तो हम भी कर सकते हैं।” राजनयिक की इस टिप्पणी को रिकॉर्ड किया गया और फिर सोशल मीडिया पर अपलोड भी किया गया। एक घंटे के लंबे फेसबुक लाइव को आप नीचे सुन सकते हैं। यहाँ कॉन्सुल जेनरल संदीप चक्रवर्ती को 50वें मिनट से 56वें मिनट तक सुना जा सकता है। इन 6 मिनट में वो कश्मीरी संस्कृति, हिंदू संस्कृति के साथ-साथ कश्मीरी पंडितों के दर्द और उन्हें उनके घरों तक वापस जाने की बात करते हैं।
वीडियो देखने से सन्दर्भ का पता चल जाता है की राजनयिक ने कहीं भी कोई नकारात्मक बात नहीं की है, न ही उन्होंने किसी तरह की हिंसा की तरफ इशारा किया है। वीडियो में जो कहा गया है उसका मतलब बस इतना है कि अगर एक देश, इजराइल में, यहूदियों की पूरी आबादी अपनी भाषा, संस्कृति और ज़मीन के साथ 2000 साल के बाद भी अपनी पुरातन भूमि पर लौट सकती है, तो कश्मीरी पंडित भी वापस जा सकते हैं।
इसके लिए सरकार नीतियाँ बनाए, लोगों को जागरूक करे, कश्मीरी पंडितों की वापसी के साथ-साथ वैसा माहौल दे कि वो वहाँ अपना भविष्य देख सकें। इसके लिए किसी नरसंहार की आवश्यकता नहीं है, न ही कॉन्सुल जनरल ने ऐसा कहीं भी कहा है। मीडिया में इसे ऐसे दिखाया जा रहा है जैसे एक सरकारी अफसर ने किसी सामूहिक नरसंहार की ओर इशारा किया है। इस तरह की बातें फैलाना विशुद्ध प्रपंच है, और कुछ भी नहीं।
इज़रायल ने 1967 में वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम पर क़ब्ज़े के बाद से लगभग 140 बस्तियों का निर्माण किया है। अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत बस्तियों को कथित तौर पर अवैध माना जाता है। लेकिन अमेरिका ने हाल ही में कहा कि वह अब नहीं मानता कि इज़रायल की बस्तियाँ अवैध हैं। और भले ही दुनिया इसे अवैध माने, इजरायल ने अपने नागरिकों के लिए जो किया, वो वैध है। और शायद इसी तर्क पर चक्रवर्ती ने अपनी बात रखी।
कश्मीरी पंडितों के साथ बैठक के दौरान अपनी टिप्पणी में, संदीप चक्रवर्ती ने यह भी कहा कि लोग कश्मीरी संस्कृति के बारे में बात कर रहे हैं। इससे आगे इज़रायल के मुद्दे और यहूदी मुद्दे पर एक अतिथि द्वारा की गई टिप्पणी का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा,
“उन्होंने अपनी संस्कृति को 2000 वर्षों तक जीवित रखा और वे वापस चले गए। मुझे लगता है कि हम सभी को कश्मीरी संस्कृति को जीवित रखना होगा। कश्मीर संस्कृति भारतीय संस्कृति है, यह हिन्दू संस्कृति है।”
उन्होंने कहा, “हममें से कोई भी कश्मीर के बिना भारत की कल्पना नहीं कर सकता है। हमारे पास हमारी ज़मीन होगी, हमारे लोगों को कुछ समय के लिए वापस जाना होगा, सरकार ने जो किया है, वह क्या किया है।”
उनकी टिप्पणी से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अपनी कश्मीर नीति को लेकर भारत सरकार पर निशाना साधा। इमरान ख़ान ने कहा कि भारत सरकार की आरएसएस की विचारधारा की फासीवादी मानसिकता को दर्शाता है, जिसने 100 दिनों से अधिक समय तक जम्मू और कश्मीर की घेराबंदी जारी रखी, कश्मीरियों को काफ़ी-कुछ बर्दाश्त करना पड़ा, क्योंकि शक्तिशाली देश अपने व्यापारिक हितों के कारण चुप रहते हैं।
इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए, संदीप चक्रवर्ती ने बुधवार (27 नवंबर) को ट्वीट किया, “सोशल मीडिया पर मेरे पोस्ट पर कुछ लोगों ने टिप्पणी की है। मेरे विचारों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है। जिससे उसका अलग मतलब निकल रहा है।”
I have seen some social media comments on my recent remarks. My remarks are being taken out of context.
— Sandeep Chakravorty (@CHAKRAVIEW1971) November 27, 2019
ग़ौरतलब है कि 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर की विशेष दर्जे को ख़त्म कर उसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद-370 के प्रावधानों को रद्द कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर, लद्दाख) में विभाजित कर दिया गया।
पाकिस्तान तब से लेकर अब तक भारत के अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के फ़ैसले पर रोता आ रहा है और संयुक्त राष्ट्र सहित कई अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्मों पर इस मुद्दे को बार-बार फेल होने के बावजूद उठाता आ रहा है।