ला कबाना जेल, क्यूबा। 14 साल का एक बच्चा कराहते हुए लाया जा रहा था। सैनिकों ने उसे पकड़ के जेल में ठूँस दिया। उसकी ग़लती? उसने क्यूबा के सैनिकों द्वारा फायरिंग में मारे गए अपने पिता को बचाने की कोशिश की थी। थोड़ी देर बाद वहाँ एक व्यक्ति आता है। उसके सामने लड़के को लाया गया। उसने उसे घुटनों पर झुकने का आदेश दिया। इसके बाद उसकी गर्दन पर बंदूक है और लड़के की लाश वहाँ लुढ़क गई। इसी व्यक्ति का नाम था- चे ग्वेरा। क्यूबा का चे ग्वेरा।
अर्जेंटीना में जन्मे वामपंथी चे ग्वेरा को आज भी मार्क्सवादी एक नायक की तरह पेश करते हैं। उसे क्रांति का अग्रदूत कहने से लेकर भारतीय क्रांतिकारियों तक से उसकी तुलना करने तक, वामपंथी उसकी तारीफ में कसीदें पढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते। चे ग्वेरा को क्यूबा में हुई क्रांति का सबसे बड़ा चेहरा बताया जाता है। कहा जाता है कि क्यूबा में अमेरिका के कठपुलती शासक को हटाने के लिए उसने फिदेल कास्त्रो के साथ मिल कर संघर्ष किया था।
ग्वेरा को अधिकतर लोगों ने मिलिट्री यूनिफॉर्म में देखा है और वो लम्बे बूट पहना करता था। जून 1959 में वो भारत यात्रा पर आया था। इस दौरान उसकी मुलाक़ात भारत के तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू से हुई, जिन्हें उसने फिदेल कास्त्रो की तरफ से सिगार का डब्बा उपहार स्वरूप दिया था। अपनी भारत यात्रा के दौरान जब किसी ने उसे कम्युनिस्ट कहा तो उसने कहा कि वो सोशलिस्ट हैं। उसने योग पर चर्चा किया, शीर्षासन भी किया।
ये तो था चे ग्वेरा का परिचय और उसके भारत यात्रा की बात। वही भारत यात्रा, जिसके क्रम में वो कोलकाता भी गया था और रास्ते में उसने कई गायों के फोटो खींचे थे। लेकिन, क्या वो सच में उतना बड़ा क्रन्तिकारी, महानायक या फिर ग़रीबों का मसीहा था- जिस तरह से वामपंथी उसे पेश करते आए हैं? इसका सीधा जवाब है- नहीं। उसे बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया। दूसरे देशों के ग़रीबों को दिवास्वप्न दिखाने के लिए उसका इस्तेमाल किया गया।
उसे एक तरह से कास्त्रो का एक्सेकशनेर-इन-चीफ कहा जाता है, जो लोगों को मारने में विश्वास रखता था। संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली में भी उसने स्वीकार किया था कि हाँ, वो सज़ा-ए-मौत देता है और क्रांति के दुश्मनों के लिए ये ज़रूरी भी है। उस समय जब वह अमेरिका गया था तो लोग उसके विरोध में खड़े थे। एक महिला तो चाकू लेकर ‘हत्यारा’ चिल्लाते हुए उसकी तरफ़ दौड़ी भी थी, जिसे पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था।
दरअसल, ग्वेरा के मास्क के पीछे एक हत्यारा ही छिपा था। बोलिवियन जंगल में उसकी मौत होने के 4 दशक बाद ठीक से उसके कारनामों की परत खुली। वो विरोधियों को ‘देशद्रोही’ कहता था, उन्हें ‘कीड़ा’ कहा करता था, फिदेल कास्त्रो को सत्ता देने में और फिर उसे गतिमान रखने में उसके कितनी हत्याएँ की, इसकी कोई गिनती नहीं है। ‘The Hidden Face of Che’ के लेखक जैकबो मशोबर कहते हैं कि उसे एक ऐसा नायक बना दिया गया, जिसे कोई छू भी नहीं सकता और उसके बचाव के लिए पूरी फ़ौज आज भी तैयार रहती है।
2004 में उस पर बनी फिल्म ‘द मोटरसाइकिल डायरीज’ में उसके पीछे के जीवन का महिमामंडन किया गया था, जब वह मेडिकल स्टूडेंट था। इसके बाद उसके चाहने वालों की संख्या और बढ़ गई। टीशर्ट से लेकर बिकनी तक पर उसकी तस्वीरें उकेर कर उसे एक आइकॉन की तरह पेश किया गया। ग्वेरा अपनी डायरी लिखने के लिए जाना जाता था लेकिन उसने अपनी हत्याओं पर शायद ही कहीं ईमानदारी से कुछ लिखा हो।
50 yrs ago today the Bolivian Army executed Cuban revolutionary & frequent executioner Che Guevara, who’d turned ordinary T-shirts into political statements. https://t.co/ro7bGO1xtS pic.twitter.com/LFKw1yNKiH
— Andrew Malcolm (@AHMalcolm) October 9, 2019
एक किसान और मिलिट्री नेता एउटैमिओ ग्वेरा को उसने कैसे मारा, ये उसने लिख रखा है। उसकी भाषा देखिए, जो किसी ऐसे साइको की लगती है, जिसे हत्या से प्यार था। वो लिखता है, “मैंने अपने पॉइंट 32 कैलिबर बन्दूक से उसके दिमाग के दाहिने हिस्से पर गोली मारी, जो सीधे उसके दिमाग के बाएँ हिस्से से बाहर निकली। वो कुछ देर कराहता रहा, फिर उसकी मौत हो गई।” ऐसे-ऐसे कितने ही ‘देशद्रोहियों’ को उसने ‘न्याय’ दिया है। यही तरीका था उसका।
कोर्ट, सुनवाई, जाँच- ये सब क्या होता है? एक अन्य किसान अरिस्टीडीओ के बारे में तो वो लिखता है कि उसे मारने से पहले उसने थोड़ी देर जाँच-पड़ताल की और फिर उसकी हत्या कर दी। बकौल ग्वेरा, देशद्रोह तो दूर की बात, गद्दारी का संदेह या आरोप भी बर्दाश्त के लायक नहीं है। क्यूबन सेन्ट्रल बैंक का चेयरमैन ग्वेरा सिगार के शौक के लिए जाना जाता था और बैंक के नोटों पर अपना हस्ताक्षर करता था।
वह जेल में एक बार में कई क़ैदियों को मार डाला करता था या मरवा देता था। उसकी ही टीम का एक सैनिक कहता है कि ग्वेरा अपने हाथ में सिगार लेकर एक दीवार के ऊपर चढ़ जाया करता था, फिर वहीं से सज़ा-ए-मौत की प्रकिया को मजे लेते हुए देखा करता था। एक समय तो उसने कास्त्रो काल के 6 महीने के भीतर 180 कैदियों को मौत के घाट उतार दिया था। एक वकील ने बताया था कि ग्वेरा सुनवाई की बातों को नकारते हुए कहता था कि चीजों को लम्बा मत खींचों क्योंकि हम ‘हत्यारों और अपराधियों’ को सुन रहे हैं, ये क्रांति है।
That time when Obama went to Cuba and posed in front of a giant mural of Che Guevara, Fidel Castro’s chief executioner. #FlashbackFriday pic.twitter.com/TNMXI7fFmJ
— ForAmerica 🇺🇸 (@ForAmerica) October 20, 2017
तभी तो अमेरिका द्वारा ट्रेंड किए गए बोलिवियन सेना के जवानों ने जब उसे खदेड़ा था तो उसने गोली न चलाने की गुहार लगाते हुए कहा था कि वो चे ग्वेरा है और उसे मारने की बजाए ज़िंदा पकड़ने में फायदा है। ज़िंदगी भर हत्या का साम्राज्य चलाने वाले ग्वेरा के पैर में गोली क्या लगी, वो जीवन की गुहार लगाने लगा। अमेरिका तो उसे ज़िंदा ही चाहता था लेकिन बोलिविया को लगता था कि सुनवाई होगी तो उसे और सहानुभूति मिलेगी।
मिट्टी से लथपथ ग्वेरा को वहीं मार गिराया गया। जब वामपंथी आज उसका महिमामंडन करते हैं तो उसके द्वारा अपने ही देश के लोगों के बहाए गए ख़ून के बारे में बात क्यों नहीं करते? ग्वेरा कहता था कि पकड़े गए दुश्मन को हमेशा महसूस होना चाहिए कि उसकी औकात एक जानवर से ज्यादा कुछ नहीं है और उसे मार डाला जाना चाहिए, बिना देर किए। ला कबाना जेल में तो जेलर, जज और जूरी- सब वही था।
सही आँकड़े तो इतिहास के पन्नों में दब से गए लेकिन अकेले उस जेल में उसने 500 को मौत के घाट उतारा था। वो कहता था कि बन्दूक की बारूद और ख़ून की गंध से उसके नाक में चंचल सी मच जाती है। स्पष्ट है, हत्या उसके लिए मनोरंजन था, मज़बूरी नहीं। क्या पत्रकार, क्या व्यापारी और क्या किसान, जो उससे सहमत नहीं होते वो सभी मारे जाते। और हाँ, वो उतना बड़ा गुरिल्ला वॉरियर भी नहीं था क्योंकि क्यूबा के बाद हर जगह उसके दाँव फेल ही हुए।