Monday, September 16, 2024
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अबकी बार भी हाथ काटो, लेकिन छिप-छिपा के: एक आँख-एक पैर वाले तालिबान के संस्थापक का फरमान, ‘कुरान के कानून’ का हवाला

"हमें कोई नहीं बता सकता कि हमारे कानून कैसे हों। हम इस्लाम का अनुसरण करेंगे और अपने नियम-कानून कुरान के हिसाब से बनाएँगे।"

तालिबान के संस्थापक मुल्ला नूरुद्दीन तराबी ने धमकी दी है कि अफगानिस्तान में उसके संगठन का शासन आने के बाद से चोरों के लिए अंग-भंग की सज़ा फिर से वापस लाई जा सकती है। एक आँख और एक पाँव वाले तालिबान के संस्थापक ने कहा कि चोरों का हाथ काटने की सज़ा वापस आएगी, लेकिन हो सकता है कि ऐसी कार्रवाई अब सार्वजनिक रूप से नहीं की जाए। साथ ही उसने तालिबान द्वारा मचाए गए कत्लेआम का भी बचाव किया।

बता दें कि तालिबान अक्सर महिलाओं को कोड़े मारने से लेकर कथित अपराधियों पर पत्थरबाजी तक, इस तरह की कार्रवाइयों को सार्वजनिक रूप से लोगों के सामने अंजाम देता रहा है। यहाँ तक कि मौत की सज़ा भी लोगों के सामने ही दी जाती है। मुल्ला नूरुद्दीन तराबी ने दुनिया को तालिबान के कार्यों में हस्तक्षेप करने पर भुगतने की भी धमकी दी। पिछली बार जब तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता पाई थी, तब नूरुद्दीन ही उस सरकार का सर्वेसर्वा था।

उसने कहा, “स्टेडियम में सज़ा देने के लिए सभी ने हमारी आलोचना की। लेकिन, हम तो दुनिया के इन देशों के कानूनों और सज़ाओं पर कोई टिप्पणी नहीं करते। हमें कोई नहीं बता सकता कि हमारे कानून कैसे हों। हम इस्लाम का अनुसरण करेंगे और अपने नियम-कानून कुरान के हिसाब से बनाएँगे।” बता दें कि काबुल में तालिबान का शासन आने के बाद 90 के दशक में हुई क्रूरता फिर से दोहराई जा रही है।

पिछली बार जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन आया था, तब मुल्ला नूरुद्दीन तराबी उस सरकार में न्याय मंत्री हुआ करता था। उस समय वो अपने जीवन के सातवें दशक में था। उस समय काबुल के स्पोर्ट्स स्टेडियम से लेकर ईदगाह मैदान तक सामूहिक सज़ा दी गई थी, जिसकी दुनिया ने निंदा की थी। ‘पीड़ितों’ के परिवार को बंदूक दी जाती थी, जिसके बाद वो आरोपित के सिर में एक गोली दाग कर उसका काम तमाम कर देते थे।

जो चोरी करने में पकड़े जाते थे, उनके हाथ काट डाले जाते थे। जो लोग डकैती में दोषी पाए जाते थे, उनके हाथ-पाँव दोनों काट कर सज़ा दी जाती थी। सुनवाई से लेकर सज़ा सुनाने वाली चीजें सार्वजनिक नहीं होती थीं और मुल्ला-मौलवी इसका निर्णय लेते थे। बस सज़ा लोगों के बीच दी जाती थी। उसने कहा कि सुरक्षा के लिए हाथ काटना ज़रूरी है। अफगानिस्तान में चोरों-डकैतों के हाथ-पाँव काट कर उनका परेड भी निकाला जाता था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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