पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) के गिलगित-बाल्टिस्तान के चिलास इलाके में पाकिस्तानियों द्वारा 800 ईस्वी की बौद्ध शिलाओं और कलाकृतियों को नुकसान पहुँचाते हुए उन पर पाकिस्तान के झंडे उकेरे गए हैं। पत्थरों पर की गई ये नक्काशियाँ और कलाकृतियाँ पुरातत्व की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं।
स्थानीय लोग काफी लम्बे समय से इन कलाकृतियों के संरक्षण की माँग कर रहे हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार ये कलाकृतियाँ इन्हीं स्थानीय लोगों द्वारा ढूँढी भी गईं थीं। इन कलाकृतियों को नुकसान पहुँचाने के पीछे एक प्रमुख वजह चीन के खर्चे पर पाकिस्तान द्वारा तैयार किया जाने वाला दिआमेर-ब्हाशा बाँध बताया जा रहा है।
दरअसल, भारत के विरोध के बावजूद चीन POK के गिलगित-बाल्टिस्तान में दिआमेर-ब्हाशा (DiamerBhasha) बाँध बना रहा है। इस बाँध के निर्माण से इस क्षेत्र में पर्वतों पर उकेरी गईं बौद्ध धर्म की धरोहरें भी डूब जाएँगी।
भारत के विरोध के अलावा इस क्षेत्र में रहने वाले लोग भी इस बाँध का विरोध कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि इस क्षेत्र में पर्यटन क्षेत्र की काफी संभावनाएँ हैं, इसलिए इन कलाकृतियों के संरक्षण की आवश्यकता है।
तालिबान द्वारा भी तोड़ी गई थी बुद्ध प्रतिमाएँ
बौद्ध प्रतीकों को नष्ट करने की ऐसी घटना इससे पहले 2001 में सामने आई थी, जब बुद्ध की नक्काशीदार प्रतिमा को नष्ट कर दिया गया था। कई सालों तक किसी ने भी तालिबान के डर से इस प्रतिमा को दोबारा बनाने की कोशिश नहीं की। यह बलुआ पत्थर की प्राचीन प्रतिमा कभी विश्व में बुद्ध की सबसे ऊँची मूर्ति हुआ करती थी।
गत 13 मई को ही पाकिस्तान सरकार ने चीन की एक कंपनी के साथ बाँध निर्माण के लिए 442 बिलियन रुपए की डील साइन की। इसके बाद से इस मुद्दे को लेकर विवाद छाया हुआ है। बताया जा रहा है कि इस बाँध के निर्माण से यहाँ पर मौजूद 50 गाँव डूब जाएँगे।
14 मई को, भारत ने गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में बाँध बनाने के पाकिस्तान और चीन के फैसले का विरोध किया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा था कि गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है और पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया था।
भारत ने इस परियोजना पर चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ अपने विरोध और चिंताओं को साझा किया है। इससे पहले, भारत ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (Economic Corridor) के हिस्से के रूप में पीओके में परियोजनाओं का विरोध किया है।
कई स्थानीय मुस्लिम भी सोशल मीडिया पर इस बाँध के निर्माण का विरोध कर रहे हैं। इनका कहना है कि वे एक समृद्ध विरासत के नष्ट होने से दुखी हैं, क्योंकि बाँध बनने के साथ ही ‘इंडिक इतिहास’ की संपत्ति भी पानी में डूब जाएगी।