कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया में कोहराम मचा हुआ है। अब तक इसके 3 लाख से भी अधिक मामले आ चुके हैं और 19,600 से भी अधिक लोगों की जान जा चुकी है। इस सवाल का उठना जायज है कि आख़िर चीन ने शुरुआत में इसे कवर-अप क्यों किया? यहाँ तक कि ‘वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन’ की आँखों में भी धूल झोंका गया, जिसके बाद उसने भी इसे बड़ा ख़तरा नहीं माना। यहाँ हम इन्हीं चीजों पर बात करेंगे और जानेंगे कि कैसे चीन ने शुरुआती दिनों में इस वायरस के ख़तरों से दुनिया को अनजान रखा। एक अध्ययन के अनुसार, अगर चीन ने 3 सप्ताह पहले भी एक्शन लिया होता तो इस ख़तरे को 95% कम किया जा सकता था।
कब क्या हुआ? चीन के कवर-अप की टाइमलाइन
दिसंबर 10, 2019 को ही चीन में कोरोना का पहला मरीज बीमार पड़ने लगा था। इसके एक दिन बाद वुहान के अधिकारियों को बताया गया कि एक नया कोरोना वायरस आया है, जो लोगों को बीमार कर दे रहा है। वुहान सेन्ट्रल हॉस्पिटल के डायरेक्टर ने 30 दिसंबर को इस वायरस के बारे में वीचैट पर सूचना दी। उन्हें जम कर फटकार लगाई गई और आदेश दिया गया कि वो इस वायरस के बारे में किसी को कुछ भी सूचना न दें। इसी तरह डॉक्टर ली वेलिआंग ने भी इस बारे में सोशल मीडिया पर विचार साझा किए। उन्हें भी फटकार लगाई गई और बुला कर पूछताछ की गई। इसी दिन वुहान हेल्थ कमीशन ने एक ‘अजीब प्रकार के न्यूमोनिया’ के होने की जानकारी दी और ऐसे किसी भी मामले को सूचित करने को कहा।
इसके बाद 2020 के शुरूआती हफ्ते में 2 जनवरी को ही चीन के सूत्रों और वैज्ञानिकों ने इस कोरोना वायरस के जेनेटिक इनफार्मेशन के बारे में सब कुछ पता कर लिया था लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया। एक सप्ताह तक इसे यूँ ही अटका कर रखा गया। जनवरी 11-17 तक वुहान में हेल्थ सेक्टर के अधिकारियों की बैठकें चलती रहीं। जनवरी 18 को नए साल के जश्न के दौरान हज़ारों-लाखों लोगों ने जुट कर सेलिब्रेट किया। इसके एक दिन बाद बीजिंग से विशेषज्ञों को वुहान भेजा गया। जनवरी 20 को दक्षिण कोरिया में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया और उसी दिन चीन ने घोषणा की कि ये ह्यूमन टू ह्यूमन ट्रांसफर होने वाला वायरस है।
जनवरी 21 को चीन के सरकारी अख़बार ने इस बीमारी को लेकर राष्ट्रपति शी जिनपिंग के एक्शन प्लान के बारे में बताया। इसके 2 दिन बाद वुहान के कुछ शहरों में लॉकडाउन की घोषणा की गई। लेकिन, इन सबके बावजूद 24-30 जनवरी तक चीन में नए साल का जश्न मनाया गया, लोगों ने अपने सम्बन्धियों के यहाँ यात्राएँ की और सारे सेलिब्रेशन ऐसे ही चलते रहे। इसी बीच चीन लॉकडाउन का क्षेत्र भी बढ़ाता रहा और वुहान में इस वायरस से लड़ने के लिए एक नया अस्पताल तैयार किया गया। अब वही चीन ये दावे कर रहा है कि उसने इस आपदा को नियंत्रित कर के एक उदाहरण पेश किया है। वही चीन जो महीनों तक दुनिया की आँखों में धूल झोंकता रहा।
A Wuhan lab that identified COVID-19 as a highly contagious virus in late December was ordered by local officials to stop tests & destroy samples. China is now scrambling to censor the story.
— Michael Coudrey (@MichaelCoudrey) March 18, 2020
It would be a shame if this went viral.#ChinaLiedPeopleDied https://t.co/VLrhTuGZUY
चीन की इस करनी से न सिर्फ़ उसे नुकसान हुआ बल्कि आज 100 से ज्यादा देश हलकान हैं। सेलिब्रेशनों की अनुमति देकर और जश्न पर रोक न लगा कर उसने लोगों की आवाजाही जारी रखी, जिससे इस वायरस के फैलने की रफ़्तार बढ़ गई। अगर सही समय पर इस पर लगाम लगाया गया होता तो आज पूरी दुनिया में तबाही का ये आलम नहीं देख रहे होते हम। इसके बावजूद कुछ लोग इस बात पर आपत्ति जता रहे हैं कि इसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ‘चाइनीज वायरस’ क्यों कहते हैं? ये वुहान से ऑरिजिनेट हुआ लेकिन WHO जानबूझ कर इसके नामकरण में वुहान या चीन जैसे शब्द नहीं लाया।
चीन का पुराना इतिहास: हमेशा से चीजों को ढकने में माहिर
चीन का ये सब करने का पुराना इतिहास रहा है। उसने 2003 में SARS वायरस (Severe acute respiratory syndrome) के सामने आने के बाद भी कुछ ऐसा ही किया था। अबकी कोरोना वायरस के सामने आने के बाद भी चीन ने एक्शन लिए लेकिन वायरस को रोकने के लिए नहीं बल्कि इसकी सूचना सार्वजनिक करने वालों के ख़िलाफ़। वायरस के सामने आने के 7 सप्ताह बाद कुछ शहरों को लॉकडाउन करना और इस वायरस को लेकर चीन द्वारा ऐसा जताना कि ये कोई छोटी-मोटी चीज है, दुनिया को भारी पड़ा। ख़ुद चीन के प्रशासन ने स्वीकार किया है कि लॉकडाउन से पहले ही क़रीब 50 लाख लोग वुहान छोड़ चुके थे।
2019 में लिखे एक लेख में ‘चाइनीज एक्सप्रेस’ ने SARS या फिर MERS की तरह कोई खतरनाक वायरस के सामने आने की शंका जताई थी और कहा था कि इसकी वजह चमगादड़ ही होंगे लेकिन बावजूद इसके लगातार लापरवाही बरती गई। उस लेख में ये भी कहा गया था कि ये वायरस चीन से ही आएगा। 2019 तो छोड़िए, 2007 में ही एक जर्नल में प्रकाशित हुए आर्टिकल में बताया गया था कि साउथ चीन में चमगादड़ जैसे जानवरों को खाने का प्रचलन सही नहीं है क्योंकि उनके अंदर खतरनाक किस्म के वायरस होते हैं। उस लेख में इस आदत को ‘टाइम बम’ की संज्ञा दी गई थी। चीन में जनता बड़े स्तर पर इससे प्रभावित हुई है लेकिन दोष वहाँ की सरकार व प्रशासन का है।
एक तो चीन ने इस वायरस के प्रसार को नहीं रोका और बाद में ‘उलटा चोर कोतवाल को डाँटे’ की तर्ज पर अमेरिका और इटली को दोष देने में भी देरी नहीं की। चीन के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कई ऐसे लेख वायरल हुए, जिनमें दावा किया गया कि ये वायरस चीन नहीं बल्कि इटली से आया। इसके बाद तब हद हो गई जब चीन ने अमेरिकी सेना पर आरोप मढ़ दिया कि अमेरिका ही इस वायरस को चीन तक लाया है। एक तरह से एक प्रोपेगंडा कैम्पेन चलाया गया, ताकि किसी और को दोष दिया जा सके। चीनी मीडिया ने इटली के एक डॉक्टर का इंटरव्यू खूब चलाया और उसके आधार पर ही इटली को दोष देना तेज कर दिया।
उस डॉक्टर के बयान के आधार पर दावे किए गए कि इटली में बुजुर्गों में न्यूमोनिया की तरह कुछ फ़ैल रहा था, जो बताता है कि ये वायरस वुहान में पहली बार नहीं आया। इस लेख को चीनी सोशल मीडिया पर 50 करोड़ लोगों ने देखा और इसे ‘एक्सपर्ट की राय’ कह कर पेश किया गया। यानी चीन पूरी तरह उस थ्योरी पर चल रहा है कि किसी भी चीज को लेकर इतने अफवाह फैला दो कि लोगों को सच्चाई पता ही न चले। हज़ार ‘कांस्पीरेसी थ्योरी’ फैला कर एक सच्चाई को ढक दो। वुहान और इटली के बीच कई फ्लाइट्स चलते हैं, जिससे चीनी वायरस तेजी से यूरोप में फैला। आज स्थिति ये है कि इटली में 6000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं।
Where did the Chinese virus originate? China
— Andrew Pollack (@AndrewPollackFL) March 20, 2020
Who silenced whistleblowers? China
Who tried to cover it up? China
Who lied to to world about the outbreak? China
Who refused help to contain the virus? China
Who infected the world? China#ChineseVirus
ट्रम्प द्वारा इसे ‘चाइनीज वायरस’ कहने से बौखलाए चीनी अधिकारियों ने इसे अमेरिकी सेना की साजिश करार दिया और कहा कि अमेरिका में इसे स्टोर कर के रखा गया था ताकि समय आने पर चीन को तबाह किया जा सके। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजान ने इसे अमरीका की साजिश करार दिया और पूछा कि अमेरिका में इससे कितने लोग प्रभावित हैं, वो डेटा सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा रहा है? उन्होंने उलटा अमेरिका से ही कहा कि वो चीन को सब कुछ एक्सप्लेन करे।
जिसने भी आवाज़ उठाई, उसे चुप करा दिया गया
चीन में 5-6 लोग ऐसे हैं जो कोरोना वायरस के बारे में सूचना सार्वजनिक करने या सवाल उठाने के बाद गायब हो गए या कर दिए गए। चीन के प्रोफेसर झु झिंग्रन ने इस बारे में बहुत कुछ बताया था। कुछ दिनों बाद उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और सारे सोशल मीडिया वेबसाइट्स से उनके एकाउंट्स गायब हो गए। ऐसे ही एक वीडियो ब्लॉगर का कुछ अता-पता नहीं चला। इन सभी को कोरोना वायरस के बारे में सवाल पूछना या सूचना देने की सज़ा मिली। डॉक्टर ली वेलिआंग ने जब स्थानीय पुलिस को कोरोना के बारे में बताया, उलटा उन्हें ही चुप करा दिया गया। कोरोना वायरस के कारण ही उनकी मौत हो गई।
चीन में ख़बरों का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है, सब कुछ सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है। जब भी कोई ऐसी परिस्थिति आती है, चीन सभी सोशल मीडिया साइट्स और मीडिया की ख़बरों को खँगालने में तेज़ी कर देता है, ताकि कहीं कुछ ऐसा सार्वजनिक न हो जाए जो वहाँ की सरकार छिपाना चाहती हो। ‘ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स’ ने आँकड़ा गिनाते हुए बताया कि चीन के विभिन्न शहरों में 350 ऐसे लोग हैं, जिन्हें कोरोना के बारे में कुछ भी बोलने की सज़ा दी गई। एक युट्यूबर फांग ने कुछ लाशों के बारे में वीडियो बनाया था और उसे सार्वजनिक किया था, जिसके बाद उन्हें गायब कर दिया गया। उसके परिवार वाले कहते हैं कि ये सब कम्युनिस्ट पार्टी की करनी है।
कुल मिला कर बात ये है कि इसे चीनी वायरस कहना कोई रेसिज्म नहीं है। इसका अर्थ हुआ कि जिस जगह से ये वायरस पहली बार निकल कर आया, उस स्थान पर इसका नामकरण हो। ऊपर से जब चीन ने इसे ढकने की गलती करके दुनिया भर को परेशानी में डाला है तो फिर इसमें उन्हें क्यों दोष दिया जा रहा, जो इस वायरस के ऑरिजिनेट होने के स्थान के नाम पर इसे सम्बोधित कर रहे हैं? भारत-चीन की सीमा लगती है, भारत में कई लोग चीनी की तरह दिखते भी हैं और चीन से आवाजाही भी कम नहीं रही है। इसे ‘चीनी वायरस’ या ‘वुहान वायरस’ कहना ग़लत कैसे है, इसका किसी के पास कोई जवाब नहीं।