प्रोपेगेंडा पोर्टल ‘द वायर’ के एक लेख में राजनीतिक विश्लेषक बद्री रैना ने अजीबोगरीब दावा किया है। ये तो सभी को ज्ञात है कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग और बुद्धिजीवियों का एक पूरा का पूरा समूह लगातार ये साबित करने में लगा हुआ है कि मुस्लिमों पर अत्याचार किया जा रहा है और वो पीड़ित हैं। लेकिन, ‘द वायर’ में बद्री रैना ने इस बार अपने समूह के सारे बुद्धिजीवियों को पीछे छोड़ते हुए अपना दिमागी दिवालियापन दिखाया है।
‘द वायर’ के इस लेख में बद्री रैना ने दावा किया है कि उन्होंने एक ऐसे ड्राइवर से मुलाकात की, जिसका शक्ल अमेरिका के दिवंगत राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन से मिलती-जुलती थी। उन्होंने उत्तर प्रदेश के एक ट्रिप के दौरान उससे मिलने की बात कही। उस ड्राइवर के हवाले से बद्री रैना ने ‘द वायर’ में इतना अजीब दावा किया है कि ये आराम से कहा जा सकता है कि ये उनकी ही दिमाग की उपज है।
लिबरल गुट इससे पहले भी इस तरह की कलाकारियाँ करता रहा है, इसीलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। बद्री रैना को पता था कि वो खुद अगर ऐसा कहता है तो इस पर हंगामा होगा, इसीलिए उसने अपने लेख में एक नया किरदार डाल दिया और जो खुद कहना चाहता था, वो उसके मुँह से कहलवाया दिया। ‘द वायर’ के इस लेख को वास्तविकता से जोड़ने के लिए फिक्शन का सहारा लिया गया।
इस पूरे लेख का सार ये है कि समुदाय विशेष के लोगों और ईसाइयों का भारत पर ज्यादा अधिकार है, क्योंकि वो अपने मृतकों को जलाते नहीं हैं, बल्कि उन्हें जमीन में दफन करते हैं। लेख की मानें तो उक्त ड्राइवर ने कहा :
“डॉक्टर साहेब? क्या आपने कभी इस वास्तविकता के बारे में सोचा है कि जब आपकी मृत्यु होगी तो आपको जलाया जाएगा। इसके बाद आपकी अस्थियों को गंगा में बहाया जाएगा। या फिर किसी अन्य पवित्र नदी वगैरह में बहा दिया जाएगा। ये अस्थियाँ कहाँ जाएँगी? पानी इन्हें बहाते हुए समुद्र में लेकर चल जाएगा। ये भारत की जमीन से बाहर चल जाएगा। लेकिन, जब मैं मरूँगा तो मुझे दफन किया जाएगा। मैं सदा के लिए अपनी मातृभूमि की गोद में दफन रहूँगा। अब मेरा सवाल ये है कि हमारी मातृभूमि पर पहला हक किसका है?”
इस अजीबोगरीब बयान में बद्री रैना को एक तरह से पूरी दुनिया मिल गई। उन्होंने आगे लिखा है कि ये बात सुनते ही उन्हें एक प्रकार की वास्तविकता का भान हुआ और अपनी ही भूमि पर वो बाहरी की तरह महसूस करने लगे। उन्हें खुद के एक किराएदार होने की बात पता चली। उन्होंने दावा किया है कि सैकड़ों सालों से जो दावे किए जा रहे थे, उन्हें ड्राइवर की इस दलील के बाद वो सब फीके नजर आने लगे।
उन्होंने कहा कि वो सोचने लगे कि उनके माँस व हड्डियों से उनकी मातृभूमि को उर्वरा नहीं मिल पाएगी। लेकिन, उस ड्राइवर अब्दुल रशीद को ये सौभाग्य मिल जाएगा। हालाँकि, ये अजीब दावा भले ही किसी के पल्ले न पड़े लेकिन बद्री रैना के दावों को मानें तो किसानों को सारे कब्रिस्तान सौंप दिया जाना चाहिए, क्योंकि कब्रिस्तानों में ही सारी उर्वरता भरी पड़ी है। वहाँ फसलें अच्छी तरह से लहलहाएगी।
इस लेख का उद्देश्य था कि समुदाय विशेष के लोगों द्वारा ‘वंदे मातरम’ गाए जाने से इनकार करने का बचाव करना। शशि थरूर को ये विचार रास आ गया। उन्होंने भी ट्विटर पर इस लेख को शेयर करते हुए सवाल दाग दिया कि जिन लोगों के शरीर से हमारे देश की मिट्टी उर्वर बनती है, क्या उनका हमारे देश पर ज्यादा हक नहीं है? हालाँकि, थरूर का ये दावा कॉन्ग्रेस की सोच को दिखाती है, क्योंकि मनमोहन सिंह ने पीएम रहते कहा था कि समुदाय विशेष का इस देश की संपत्ति पर पहला हक है।