Monday, November 18, 2024
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हंदवाड़ा मुठभेड़ के बलिदानियों का TheWire ने उड़ाया मजाक, आतंकियों के आगे लिखा- ‘कथित’

द वायर हंदवाड़ा मुठभेड़ में बलिदान हुए जवानों और अफसरों की बहादुरी और उनके साहस के बारे में पाठकों को बताने की जगह, आतंकियों के लिए अपनी खबर चला रहा है। ऐसा इसलिए ताकि एक बार फिर उन्हें पढ़ने वाला बुद्धिजीवी वर्ग खड़ा हो, और सवाल पूछे कि कैसे मालूम हुआ कि जवानों को मारने वाले आतंकी ही थे?

द वायर की अजेंडायुक्त पत्रकारिता ने इस बार देश के लिए वीरगति को प्राप्त हुए सेना के जवानों के बलिदान का खुलेआम मखौल उड़ाया है। अपनी रिपोर्ट में द वायर ने हंदवाड़ा में सुरक्षाकर्मियों को मारने वाले आतंकियों को ‘कथित आतंकवादी’ बताया है। सबसे घृणा की बात ये है कि ये काम द वायर ने न्यूज एजेंसी पीटीआई की आड़ में किया है। उन्होंने पीटीआई की रिपोर्ट को, जिसे आमतौर पर मीडिया हाउस जस का तस अपने पोर्टल आदि के लिए इस्तेमाल करते हैं, उसी में अपना प्रोपगेंडा परोसकर ये घिनौना खेल खेला है।

पीटीआई की रिपोर्ट को यदि हम ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’, ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ जैसे नामी पोर्टल्स पर देखें, तो मालूम चलता है कि पीटीआई ने अपनी खबर में आतंकी शब्द का ही प्रयोग किया था। मगर, एस वरदराजन के ‘द लायर’ ने इसमें अपने अनुसार बदलाव कर लिया और आतंकियों के आगे ‘कथित’ लिख कर उनके आतंकी होने पर संदेह पैदा किया।

बस फिर क्या? इस हरकत को देखकर लोगों ने ‘द वायर’ को एक बार फिर लताड़ लगाई और आरोप लगाया कि ये संस्थान हंदवाड़ा को भी बाटला हाउस जैसा केस बनाना चाहता है, इसलिए जरूरी है कि केंद्र सरकार अब इनके ख़िलाफ़ सख्त एक्शन ले।

इस समय सोशल मीडिया पर द वायर की इस हरकत के लिए उनकी बहुत थू-थू हो रही है। हालाँकि, उन्होंने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया है। लेकिन, फिर भी यूजर उसका स्क्रीनशॉट लेकर उन्हें शब्दों के बीच का फर्क़ बता रहे हैं।

जी हाँ, इस समय देश की आम जनता ‘कथित वरिष्ठ पत्रकारों’ के एक संस्थान को आड़े हाथों लेते हुए ये समझा रही है कि जिन्होंने उत्तर कश्मीर में सेना के जवानों पर हमला किया उन्हें ‘कथित आतंकवादी’ नहीं कहा जाएगा बल्कि ‘100% आतंकवादी’ ही कहा जाएगा। इसके अलावा जो हमारे 5 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए, उन्हें बलिदानी कहा जाएगा न कि ‘मारे गए’।

गौरतलब हो कि इस समय ट्विटर पर कई सक्रिय यूजर्स की यही माँग है कि पीटीआई को अपनी स्टोरी के साथ इस तरह की छेड़छाड़ के लिए द वायर पर एक्शन लेना चाहिए। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि द वायर पाक आधारित चैनल है, जो वक्त आने पर इस तरह हमारे जवानों के बलिदान का मजाक उड़ा रहा है।

बता दें कि शब्दों के हेर-फेर से देश के युवाओं और अपने पाठकों को बरगलाने का काम द वायर बहुत लंबे समय से करता आ रहा है। अब तो सब जान चुके हैं कि उनकी पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य क्या है। कभी-कभी पड़ोसी मुल्क से आए आतंकियों को बचाने के लिए इनकी प्रतिबद्धता देखकर लोग संदेह जताते हैं कि शायद इसके लिए इन्हें बाकायदा फंडिंग भी उधर से ही होती हो।

या कुछ लोगों ऐसा भी लगता है कि प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए अस्तित्व में आया द वायर अब धीरे-धीरे आतंकी संस्थानों का मुखपत्र बनता जा रहा है। जिनके पास सूचना के लिए पीटीआई जैसे पर्याप्त स्रोत है, मगर फिर भी वे आतंकियों को कथित आतंकी बताकर कश्मीर में घटी घटना का सामान्यकरण करना चाहता है और आतंकियों के लिए सहानुभूति बटोरना चाहता है। मुमकिन है आज ये पोर्टल जो आतंकियों को कथित आतंकी बोल रहा है, कल को देश का सम्मानित नागरिक बताने लगे।

बता दें कि कल 3 मई को उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा में स्थित हंदवाड़ा में आतंकियों के साथ एनकाउंटर के दौरान एक मेजर और एक कर्नल समेत 5 भारतीय जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। इन सभी वीर सपूतों ने एक इमारत में छिपे आतंकियों से लोहा लेने के लिए बाहर से हमला करने के बजाय अंदर जाकर कार्यवाई करना मुनासिब समझा था, ताकि नागरिकों की जानमाल की क्षति न हो। लेकिन बावजूद, इस तथ्य के द वायर उनकी बहादुरी और उनके साहस के बारे में पाठकों को बताने की जगह, आतंकियों के लिए अपनी खबर चला रहा है। ताकि एक बार फिर उन्हें पढ़ने वाला बुद्धिजीवी वर्ग खड़ा हो, और सवाल पूछे कि कैसे मालूम कि जवानों को मारने वाले आतंकी ही थे?

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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