Friday, March 29, 2024
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टोटल 7 हैं भाई, पर भौकाल ऐसा जैसे यही IIMC हों: क्यों हो रहा दीपक चौरसिया का विरोध?

दीपक चौरसिया या उनके जैसे किसी भी पत्रकार से व्यक्तिगत असहमति बिल्कुल जायज़ है। आप टीवी पर उनको न देखें, न सुनें, यह आपकी इच्छा है। पर अपनी व्यक्तिगत असहमति दर्ज कराते हुए जब आप "मैं एक आईआईएमसी के ज़िम्मेदार छात्र होने के नाते" लिखते हैं, तब आप एक पूरे संस्थान का प्रतिनिधित्व करने लगते हैं और समस्या तब खड़ी होती है।

भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) का 2020-2021 शैक्षणिक सत्र आरंभ हुए अभी महीना भर भी नहीं हुआ है और पत्रकारिता सीखने आए कुछ छात्र-छात्राओं ने संस्थान को ही पत्रकारिता के ‘सही मूल्यों’ का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया है। हफ़्ते भर चले इंट्रोडक्टरी सेशन्स, जिसमें विद्यार्थियों को आईआईएमसी के प्रत्येक कैंपस से जुड़े अध्यापक-अध्यापिकाओं को जानने का मौका मिला, के बाद अब ओरिएंटेशन सेशन्स की बारी है। ओरिएंटेशन सेशन्स में देश-विदेश से कई प्रख्यात वक्ता आमंत्रित किए गए हैं। यह सत्र गत सोमवार को शुरू हुआ था, जिसका अंतिम दिन आज (शुक्रवार, 27 नवंबर 2020) को है।

मामला विवादों में तब आया या कहें लाया गया, जब सत्रारंभ की जानकारी देते हुए इंगलिश जर्नलिज्म की कोर्स डायरेक्टर प्रोफेसर सुरभि दहिया ने ट्वीट किया और उस पर कुछ विद्यार्थियों ने प्रतिक्रिया देनी शुरू की। कुछ छात्र-छात्राओं ने 27 नवंबर के सत्र में पत्रकार दीपक चौरसिया को बुलाए जाने को लेकर पर प्रोफेसर दहिया के ट्वीट पर कमेंट करते हुए आपत्ति दर्ज कराई। समर्थन में आह जी-वाह जी करने को कुछ इक्के-दुक्के पूर्व छात्र भी पहुँचे। बावजूद विरोध करने वालों की कुल संख्या 7 रही।

आईआईएमसी के वर्तमान सत्र की छात्रा पल्लवी गुप्ता लिखती हैं, “आदरणीय मैडम, हम सभी सत्र के उद्घाटन को लेकर बहुत उत्साहित हैं। हम जानते हैं कि इस समय कोई बदलाव करना संभव नहीं है। यहाँ मैं दीपक चौरसिया को उद्बोधन समारोह में बुलाने से चिंतित हूँ। मैं पत्रकारिता की छात्रा के रूप में उनके जैसे घृणा फैलाने वाले को नहीं सुनना चाहती।”

पल्लवी गुप्ता से सहमति जताते हुए अनामिका यादव लिखती हैं, “मैं इसपर बिल्कुल सहमत हूँ। हम आपके कोशिशों की तारीफ करते हैं, लेकिन दीपक चौरसिया को सुनना ठीक नहीं लगता है। वह उनमें से एक हैं जिन्हें पत्रकारिता में सिर्फ बुरे बदलाव के लिए जाना जाता है।”

पूर्व छात्र ऋषिकेश शर्मा ने लिखा है, “आप के प्रतिरोध से पता चलता है कि आईआईएमसी अब भी ज़िंदा है। हमेशा गलत मूल्यों और उन्हें मंच देने वालों के खिलाफ खड़े रहें। मुझे आप के सीनियर होने पर गर्व महसूस हो रहा है।” अन्य ट्वीट में ऋषिकेश शर्मा कहते हैं, “मंत्री, ऑर्गेनाइजर के संपादक और दीपक चौरसिया जैसे लोग आपको पत्रकारिता सिखाने आ रहे हैं, यह संस्थान और पत्रकारिता के मूल्यों के लिए शर्म की बात है। जब-जब संस्थान इस तरह की चीजों को लागू करने की कोशिश करे, आप सभी इनके खिलाफ खड़े हों। यह उन सभी मूल्यों के बारे में है जिन पर आप विश्वास करते हैं।”

एक अन्य छात्र साजिद कहते हैं, “ज़रा दीपक चौरसिया का ट्विटर अकाउंट खोलकर देखो, हर दिन की शुरुआत ज़हर से होती है। मैं एक आईआईएमसी के ज़िम्मेदार छात्र होने के नाते अपना विरोध दर्ज करता हूँ। एक ऐसे व्यक्ति को जो दिन-रात समाज में नफ़रत फैलाने का काम करता हो उसको आमंत्रित करना एक गैर जिम्मेदाराना कार्य है।”

साजिद के ट्वीट पर एक पूर्व छात्रा अवंतिका तिवारी लिखती हैं, “अभी से ही इस नए बैच पर इतना गर्व है। हम आपके साथ हैं। बस सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करते रहें।”

विष्णु प्रताप ने लिखते हैं, “मैं दीपक चौरसिया जैसे नफरती लोगों को समारोह में आमंत्रित करने के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कर रहा हूँ। हम अपने संस्थान से अधिक उम्मीद करते हैं। साथ ही, जिस प्रोफेसर ने गाँधी को पाकिस्तान का पिता कहा था, वह हमारी संस्था और हमारे देश के लिए शर्मनाक है।”

मुहम्मद सैफ अली खान लिखते हैं, “यह साफ हो जाए कि कोई भी चौरसिया जैसा नहीं बनना चाहता और उन जैसे किसी को किसी भी शैक्षणिक संस्थान में नहीं बुलाया जाना चाहिए… इनके जैसे पत्रकार भारतीय पत्रकारिता के लिए कलंक हैं।”

कुल 7 लोगों द्वारा चलाए जा रहे इस ‘भारी विरोध’ को देखकर मन में प्रश्न अब यह उठता है कि पत्रकारिता के सही मूल्यों की दुहाई देने वाले यह कैसे भूल गए कि पत्रकारों को पहला पाठ ही यह पढ़ाया जाता है कि हर पक्ष को सुनना और जनता के सामने रखना ज़रूरी है, फिर कौन सही है और कौन ग़लत ये जनता खुद तय करेगी। पर यहाँ तो उल्टी धार बहाते हुए भावी पत्रकारों ने पक्षों को सुनने से पहले ही बॉयकॉट कर दिया। बिना सुने ही असहमति दर्ज करा दी। ख़ैर, स्थिति गलत भले हो पर अजीब तो नहीं है। कक्षा आरंभ होने तक रुकते, तब न पहला पाठ समझते…

मानो एक्टिविज़्म और जर्नलिज़्म के बीच कन्फ्यूज़्ड युवा, किसी एनजीओ की जगह आईआईएमसी पहुँच गए हों। दिक्कत तब आती है जब गिने-चुने कुछ अति उत्साही लोगों के कारण पूरा संस्थान और इससे जुड़े सभी विद्यार्थी लपेट लिए जाते हैं। संदर्भ के लिए बता दें, 26 नवंबर को न्यूजलॉन्ड्री पर पब्लिश एक रिपोर्ट का शीर्षक है, “आईआईएमसी के छात्र क्यों कर रहे हैं दीपक चौरसिया का विरोध?” इसे पढ़ कर ऐसा लगता है जैसे संस्थान के सभी छात्र विरोध में उतर आए हों।

दीपक चौरसिया को पूर्वाग्रह से ग्रसित बताकर विरोध करने वालों ने क्या खुद पूर्वाग्रह नहीं पाल रखे हैं? क्या विरोध का कारण यह नहीं है कि दीपक चौरसिया उनके विचारों के अनुरूप नहीं बोलते? क्या बिना सुने ही किसी को सिरे से नकार देना सही है? जो हमारी विचारधारा से सहमत नहीं, उन्हें बोलने का ही अधिकार नहीं है? ये कुछ प्रश्न प्रत्येक भावी पत्रकार को खुद से पूछना चाहिए।

दीपक चौरसिया या उनके जैसे किसी भी पत्रकार से व्यक्तिगत असहमति बिल्कुल जायज़ है। आप टीवी पर उनको न देखें, न सुनें, यह आपकी इच्छा है। पर अपनी व्यक्तिगत असहमति दर्ज कराते हुए जब आप “मैं एक आईआईएमसी के ज़िम्मेदार छात्र होने के नाते” लिखते हैं, तब आप एक पूरे संस्थान का प्रतिनिधित्व करने लगते हैं और समस्या तब खड़ी होती है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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