इतिहास- हमने वही पढ़ा, जो हमें बताया गया। इतिहास को तोड़-मरोड़ कर इस तरह पेश किया गया, जिसमे दिल्ली के नागरिकों को मार कर नरमुंडों का पहाड़ बनाने वाला अकबर महान निकला और मेवाड़ की आज़ादी के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले महाराणा प्रताप के बारे में विस्तार से नहीं बताया गया। इतिहास की पुस्तकों में इंदिरा गाँधी लोकतंत्र की देवी कहलाई जबकि अडवाणी की रथ-यात्रा रोक कर उन्हें गिरफ़्तार कराने वाले लालू यादव पोस्टर बॉय बन कर उभरे। देशद्रोह के तहत गिरफ्तारियाँ यूपीए सरकार में हुई लेकिन तानाशाह नरेंद्र मोदी को कहा गया। इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर नैरेटिव उसी हिसाब से तैयार किया गया, जैसा वामपंथी गैंग चाहता था।
Indira didn’t. Laxman had to leave the country. He returned only after elections were announced. As far as Modi is concerned his supporters say he enjoys his cartoons but I have noticed editors are too afraid to carry them.
— MANJUL (@MANJULtoons) March 5, 2019
अब समय आ गया है, जब ऐसे कुटिल प्रयासों के पोल खुलते जा रहे हैं। अब सोशल मीडिया का ज़माना है। पुराने दस्तावेज से लेकर अख़बार तक- सभी डिजिटल हो चुके हैं और हमसे एक क्लिक की दूरी पर ही रहते हैं। आज पत्रकारों और लिबरल्स का वो गिरोह काफ़ी असहाय महसूस कर रहा है, जिसके वैचारिक पूर्वजों ने इतनी मेहनत से इस प्रकार का नैरेटिव तैयार किया था। उन्हें अपने पूर्वजों के प्रोपगैंडा-परस्ती की विरासत को आगे लेकर जाना है। आपातकाल को लोकतंत्र का महापर्व साबित करना है और कार्यकर्ताओं व कैडर आधारित पार्टी को अलोकतांत्रिक बताना है। लेकिन, इस क्रम में धीरे-धीरे उनकी पोल खुलती जा रही है।
‘वागले की दुनिया’ और परियों की कहानी
निखिल वागले जाने-माने पत्रकार हैं। कई प्रमुख मीडिया संस्थानों में अहम पद संभाल चुके हैं। उनका इतिहास काफ़ी ख़राब रहा है। एक बार उन्होंने शिवसेना पर उन पर हमला करने का आरोप लगाया था। जब उनसे पूछा गया कि उन्हें कैसे पता कि वे शिवसेना के लोग थे, तो उन्होंने कहा था कि उनके द्वारा लगाए जा रहे नारों से उन्हें यह पता चला। वो अलग बात है कि अदालत में वो एफआईआर में कही गई अधिकतर बातों से मुकर गए। पहले ख़ुद पर जानलेवा हमला होने का दावा करने वाले वागले ने अदालत में कहा कि उनके साथ कोई बुरा व्यवहार नहीं किया गया था। ख़ैर, वागले की दुनिया में इधर एक और हलचल हुई।
Yes. And he he has also written what happened after that. Disappointed Laxman left the country and was thinking of changing profession. It is in his book.
— MANJUL (@MANJULtoons) March 5, 2019
वागले की दुनिया में एक प्रधानमंत्री थी, जिसे कार्टून बहुत पसंद था। इतना पसंद था कि उनके कारण देश के सबसे बड़े कार्टूनिस्ट को देश छोड़ कर जाना पड़ा था। वागले की दुनिया मनोरंजक है, काल्पनिक है, रोचक है, वास्तविकता से उनका कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन वागले वास्तविक हैं, अतः उन्होंने अपनी कल्पना को वास्तविकता में बदल पर प्रोपगैंडा वाली फसल बोने की सोची। फसल अभी अंकुरित भी नहीं हुआ था, तभी एक अन्य कार्टूनिस्ट ने उसे रौंद डाला। तो पूरे घटनाक्रम को ‘वागले की बेइज्जती’ नाम देकर इसका विवरण शुरू करते हैं।
वागले ने अपने ट्वीट में लिखा- “आज की परिस्थितियों पर मैं रोज काफ़ी अच्छे कार्टून देखता हूँ। इंदिरा गाँधी को आरके लक्ष्मण के कार्टून्स काफ़ी पसंद थे। उन्होंने आपातकाल के दौरान लक्ष्मण के कार्टून्स से सेंसरशिप हटा दिया था। क्या कोई मुझे यह बता सकता है कि मोदी का कार्टून्स के प्रति क्या प्रतिक्रया रहती है?” हालाँकि, अगर वागले सच में पत्रकार होते तो शायद उन्हें याद होता कि दिसंबर 2018 में पीएम मोदी ने आरके लक्ष्मण पर ‘टाइमलेस लक्ष्मण’ नामक कॉफी टेबल बुक के लॉन्चिंग प्रोग्राम के दौरान क्या कहा था?
Here is an interview of Laxman by Moneylife…See what he said…Rest is propaganda…Here is the link https://t.co/yDTb8iaRBl pic.twitter.com/cgUdvwwrYU
— MANJUL (@MANJULtoons) March 5, 2019
उस मौके पर नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र के किसी विश्वविद्यालय को कार्टून्स के द्वारा पिछले चार-पाँच दशकों के राजनीतिक परिदृश्य का अध्ययन करने की सलाह दी थी। उन्होंने लक्ष्मण के कार्टून को ‘सामाजिक विज्ञान’ पढ़ाने का सबसे आसान तरीका बताया था। बकौल मोदी, कार्टूनिस्ट्स भगवान के काफ़ी नज़दीक होते हैं क्योंकि वे विभिन्न इंसानों के चरित्रों को बारीकी से देख सकते हैं। मोदी के अनुसार, लक्ष्मण के कार्टून्स ने उन पर गहरी छाप छोड़ी। इसके अलावा मोदी ट्विटर पर भी अक्सर किसी के बनाए हुए कार्टून्स की प्रशंसा करते दिख जाते हैं। लेकिन, वागले की दुनिया में वास्तविकता के लिए कोई जगह नहीं है।
इसके बाद कार्टूनिस्ट मंजुल ने वागले को जवाब देते हुए कहा- “नहीं, इंदिरा ने ऐसा नहीं किया। लक्ष्मण को देश छोड़ना पड़ा था। वे तभी लौट पाए जब चुनाव की घोषणा हुई। जहाँ तक मोदी का सवाल है, उनके समर्थकों का मानना है कि वे अपने पर बने कार्टून्स को काफ़ी एन्जॉय करते हैं लेकिन कई संपादक ऐसे कार्टून्स को प्रकाशित करने से बचते हैं।” इसके बाद वागले ने इंदिरा गाँधी के बारे में मंजुल द्वारा कही गई बातों को झूठ करार देते हुए बताया कि इंदिरा ने लक्ष्मण से कहा था- “आपका जैसे मन करे वैसे कार्टून्स बनाओ।” बकौल वागले, लक्ष्मण ने ख़ुद ऐसा कहा था।
आरके लक्ष्मण और इंदिरा गाँधी
वागले को वापस वास्तविकता का एहसास दिलाते हुए मंजुल ने आरके लक्ष्मण द्वारा लिखी गई पुस्तक का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि कि लक्ष्मण काफ़ी हताश थे और यहाँ तक कि अपना प्रोफेशन बदलने की भी सोच रहे थे। इसके बाद मंजुल ने आरके लक्ष्मण के एक इंटरव्यू का हवाला देकर वागले की बोलती बंद कर दी। चर्चा में झूठा साबित होने के बाद वागले ने वही किया, जो गिरोह विशेष के पत्रकारों का धंधा ही है। उन्होंने इसे ‘मंजुल वर्जन की कहानी’ बता कर जनता से इस बाबत राय माँगनी शुरू कर दी। फिर मंजुल ने उन्हें चुप कराते हुए कहा कि ये उनका वर्जन नहीं है बल्कि सत्य है, जिसे कोई भी चेक कर सकता है।
Not my version, sir. It is the TRUTH. It is in Laxman’s book too. You can check yourself.
— MANJUL (@MANJULtoons) March 5, 2019
निखिल वागले के पास जब कोई चारा नहीं बचा तो उन्होंने ख़ुद को इंदिरा गाँधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का आलोचक बता कर इतिश्री कर ली। आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं कि मनीलाइफ को दिए गए इंटरव्यू में स्वयं आरके लक्ष्मण ने क्या कहा था? उन्होंने उस इंटरव्यू में बताया था कि आपातकाल के दौरान उनके और इंदिरा गाँधी के बीच समस्याएँ थी। जब उनसे पूछा गया कि आख़िर हुआ क्या था तो उन्होंने बताया कि उन्होंने डीके बरुआ पर एक कार्टून बनाया था, जिस से इंदिरा नाराज हो गई थीं। बरुआ ने ही कहा था- “इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया”। इंदिरा ने उस कार्टून को ‘बहुत अपमानजनक’ बताया था।
आरके लक्ष्मण ने इंदिरा गाँधी को कहा कि कार्टून्स उपहास और अपमान करने की ही कला है। इस बार पर इंदिरा ने उन्हें चेतावनी दी कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। अप्रैल 2010 में प्रकाशित इस इंटरव्यू में आरके लक्ष्मण ने बताया था कि वे इंदिरा के पास निवेदन लेकर पहुँचे थे कि उन्हें कार्टून बनाने से न रोका जाए लेकिन इंदिरा ने सबके लिए सामान क़ानून की बात कह उनके निवेदन को ठुकरा दिया था। इसके बाद हताश लक्ष्मण मारीशस चले गए। वे तभी लौटे जब लोकसभा चुनाव की घोषणा हो गई और उन्हें पता चला कि इंदिरा गाँधी की राजनीतिक स्थिति अच्छी नहीं है। इंदिरा गाँधी के चुनाव हारते ही लक्ष्मण अपने काम पर लग गए।
I am not disputing ‘your ‘version. And I am critic of Indira’s emergency.
— nikhil wagle (@waglenikhil) March 5, 2019
आरके लक्ष्मण ने इस इंटरव्यू में यहाँ तक कहा कि उसके बाद उन्होंने पूरे आपातकाल के दौरान कोई कार्टून नहीं बनाया। अगर वागले आरके लक्ष्मण के इस इंटरव्यू और मोदी द्वारा कही गई बातों को पढ़ लेते तो शायद उनकी बेइज्जती नहीं होती। लेकिन अफ़सोस, बिना अध्ययन के अपने नायक व नायिकाओं को सही साबित करने के चक्कर में अक्सर पत्रकारों के इस गिरोह विशेष को लताड़ लगती रहती है। उनके लिए यह सब नया नहीं है। आज सोशल मीडिया के इस युग में परत दर परत उनके कुटिल कारनामों की सूची का पर्दाफाश होता जा रहा है और आम जनों को इनकी सच्चाई पता चल रही है। तो यही थी, वागले की दुनिया- वास्तविकता से परे, परियों की दुनिया।