अपने आप को हर विषय का ज्ञाता समझने वाले दि प्रिंट के संपादक शेखर गुप्ता ने इस बार बताने की कोशिश की है कि देश में कोरोना की दूसरी लहर के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है। दि प्रिंट के 50WordEdit वाले शीर्षक के जरिए शेखर गुप्ता ने दावा किया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने कोरोना प्रबंधों में भारत को अखंड मानकर गलती की।
उनका कहना ये भी है कि मोदी सरकार ने शुरू में सबके लिए एक तरह का रास्ता अपनाते हुए हर राज्य को उनका फरमान मानने के लिए मजबूर किया और उनसे (राज्यों से) वो अधिकार भी छीन लिए कि वह महामारी के समय में अपने राज्य की वास्तविकता और जरूरत के हिसाब से फैसले ले सकें।
Our #50WordEdit on how India dropped the ball on the Covid 2nd wave pic.twitter.com/QN3xUvGp9r
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) April 16, 2021
अब देखिए, इस 50wordedit का सबसे बड़ा फायदा ये है कि दि प्रिंट अपने फर्जी के दावे, बिना किसी सबूत के पब्लिश कर सकता है जैसा कि उन्होंने इस हालिया पोस्ट में किया। यहाँ उन्होंने बिना कोई बात विस्तार से समझाए बस भारत सरकार की गलती बता दी, जबकि, सच ये है कि कोरोना महामारी की शुरुआत में भले ही भारत सरकार ने पूरे देश में एक साथ हर राज्य में लॉकडाउन लगाया, मगर कुछ ही समय में सरकार ने हर राज्य को अपने हिसाब से फैसले लेने का अधिकार भी दे दिया।
लॉकडाउन खुलते ही गृह मंत्रालय ने हर राज्य को उनकी जरूरतों के हिसाब से एक्शन लेने के अधिकार दिए और राज्य सरकारों ने भी उसी हिसाब से ये फैसला लिया कि वह प्रदेश में क्या करेंगे और क्या नहीं। राज्य सरकार के फैसलों का ही नतीजा था कि हर राज्य में अलग-अलग समय पर स्कूल कॉलेज खुले और अलग-अलग पाबंदियाँ लगीं।
जानकारी के लिए बता दें कि स्वास्थ्य संबंधी हर मामला राज्य सरकार का होता है, केंद्र का नहीं। राज्य सरकारें ही हर प्रकार के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होती है। केंद्र, बस इस मामले में राज्य की बाहरी तौर पर मदद करती है। कोरोना काल में भी यही हुआ। राज्य सरकारें अपना फैसला ले सकती थीं। मरीजों के लिए नई सुविधाओं का इंतजाम कर सकती थीं। मोदी सरकार का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं था। लेकिन फिर भी दि प्रिंट का ऐसा विश्लेषण! वाकई समझ से बाहर है।
राज्य के पास टेस्टिंग से लेकर लोगों को क्वारंटाइन करवाने के लिए अपनी पॉलिसी शुरू से थी। इसी के चलते जगह जगह नई सुविधाएँ निर्मित की गई और जरूरत पड़ने पर राज्य ने उनका इस्तेमाल किया। कई जगहों पर अस्थायी अस्पताल तक बने और कई स्थानों कोविड-केयर संस्थान बनाया गया… फिर आखिर दि प्रिंट कौन से फरमान की बात कर रहा है जिसे मोदी सरकार ने सब पर मढ़ा।
दि प्रिंट के दावे के उलट हकीकत ये है कि केंद्र सरकार, लगातार सभी राज्यों से संपर्क करती रही। दर्जनों बैठकें तो स्वयं पीएम मोदी ने मुख्यमंत्रियों के साथ ही की है। हालिया बैठक की बात करें तो ये 8 अप्रैल को हुई थी, जिसमें महाराष्ट्र सीएम उद्धव ठाकरे और दिल्ली सीएम केजरीवाल अपने ही ख्यालों में डूबे नजर आ रहे थे, जबकि ममता बनर्जी ने तो बैठक में भाग लेना ही अनिवार्य नहीं समझा।
इसके बाद यदि याद हो तो केंद्र सरकार ने पिछले एक साल में कोरोना के कारण राज्यों की तमाम माँगे स्वीकारी। सबके पहले केंद्र सरकार ने संक्रमण को रोकने के लिए आवाजाही पर रोक लगाई थी, लेकिन उद्धव सरकार और केजरीवाल सरकार ने इस पर तमाम सवाल उठाए, बाद में केंद्र सरकार ने इस पर सुनवाई करते हुए स्पेशल ट्रेन चलवाई ताकि प्रवासी मजदूर अपने गृह राज्य चले जाएँ। नतीजा आज हमारे सामने है, स्थिति और बदतर हो रही है।
कोरोनाकाल के दौरान ऐसा कोई सबूत नहीं है कि मोदी सरकार ने राज्य सरकारों को उनके प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएँ देने से रोका। इसलिए शेखर गुप्ता का ये 50 वर्ड एडिट और कुछ नहीं बल्कि सिर्फ एक प्रयास है ताकि महाराष्ट्र सरकार की नाकामयाबियों पर पर्दा डालें। पूरे देश में एक्टिव केसों में 45 प्रतिशत केस केवल महाराष्ट्र से हैं और ये सब सिर्फ ठाकरे सरकार की लापरवाहियों के कारण। मगर, वामपंथियों को तथ्यों से क्या? वह फिर भी वामपंथी अपने बेस्ट सीएम को सराहने से बाज नहीं आ रहे और सारी स्थिति का ठीकरा मोदी सरकार पर फोड़ना चाहते हैं।