Tuesday, March 19, 2024
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मौत बिहारियों को गाली देने का मौका नहीं: सुशांत सिंह के बहनोई ने जहरीली पत्रकारिता करने वालों को दिया जवाब

विशाल ने कहा है कि एफ़आईआर को महिला विरोधी पहलू देकर मुद्दे की दिशा बदली नहीं जा सकती है। मैं न तो किसी पर आपराधिक आरोप लगा रहा हूँ और न ही सुशांत के पिता की तरफ से बात कर रहा हूँ।

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में शेखर गुप्ता की वेबसाइट ‘द प्रिंट’ ने एक लेख प्रकाशित किया। इस लेख का शीर्षक और इसकी तमाम बातें ऐसी हैं जिनका न तो कोई आधार है और न अर्थ। लेख की शैली से स्पष्ट था कि इसका उद्देश्य एक क्षेत्र और समूह के लोगों को निशाना बनाना है। सुशांत सिंह के बहनोई विशाल कीर्ति ने इसका जवाब दिया है।

विशाल ने लिखा है कि वह इस लेख का जवाब नहीं देना चाहते थे। लेकिन जब उन्हें लगा कि इसका प्रभाव उनके नज़दीकी लोगों पर पड़ रहा है तो उन्होंने जवाब देने का फैसला किया।

प्रिंट के लेख में कहा गया था कि जिस तरह सुशांत सिंह के परिवार ने प्रतिक्रिया दी है उससे यह स्पष्ट है कि बिहारी परिवार में बेटा होना किसी बोझ से कम नहीं है। लेख में यह भी आरोप लगाया गया है कि बिहारी परिवार के लोगों का रवैया अपने बेटों के लिए बुरा होता है।

विशाल कीर्ति ने लिखा है कि इस मसले पर वे पूर्व में बरखा दत्त को जवाब दे चुके हैं। सुशांत सिंह की मौत मनोवैज्ञानिक मुद्दों पर बात करने का माध्यम नहीं हैं। सुसैन जो सुशांत के बाईपोलर होने का दावा कर रही थीं, उसका आधार क्या था? जानकार मनोविज्ञान से जुड़े ऐसे दावे करने में सालों खर्च करते हैं और सुसैन तो सुशांत से कुछ महीने पहले मिली थीं। अगर अदालत में यह साबित हो जाता है कि सुशांत अवसाद से जूझ रहे थे तो मैं सम्मान के साथ इसे सबसे पहले स्वीकार करूॅंगा।

विशाल ने लिखा है कि वे खुद एक बिहारी परिवार से हैं। उनके परिवार की भावना उनकी पत्नी को लेकर बिलकुल वैसी नहीं है जिस तरह के दावे फिलहाल किए जा रहे हैं। उन्होंने लिखा है कि बिहार में ऐसे लाखों शिक्षित और मध्यम वर्गीय परिवार हैं, जिनका रवैया अपने बेटे और उनकी पत्नी या गर्लफ़्रेंड के लिए बेहद सरल और सहज है। लेकिन कुछ परिवारों को देख कर इतना बड़ा दावा कर देना टॉक्सिक जर्नलिज्म (विषाक्त पत्रकारिता) से कम नहीं है। बिहार के परिवारों को लेकर इस तरह के पूर्वाग्रह और रुढ़िवादी मानसिकता खुद में घिनौना है।   ’

विशाल ने कहा है कि एफ़आईआर को महिला विरोधी पहलू देकर मुद्दे की दिशा बदली नहीं जा सकती है। मैं न तो किसी पर आपराधिक आरोप लगा रहा हूँ और न ही सुशांत के पिता की तरफ से बात कर रहा हूँ।   

उन्होंने कहा है, “मैंने पिछले कुछ समय में सुशांत की मृत्यु पर हुई पत्रकारिता और विमर्श को बहुत करीब से देखा है। मेरे और सुशांत के रिश्ते बहुत अच्छे थे। हम जब भी मिलते किताबों और फिल्मों पर बात करते थे। मैं उसे और उसकी बहन को 1997 से जानता हूँ। हम एक ही स्कूल में पढ़ते थे। सुशांत उन दिनों बहुत प्यारा और शर्मीला था। उसे ज़्यादातर लोग उसकी बहन की वजह से पहचानते थे। लोग हमें ‘जीजा-साला’ कह कर चिढ़ाते थे। मैं 2006 में अमेरिका चला गया था लेकिन सुशांत का स्वभाव ऐसा था कि 2019 तक उसके संपर्क में था।”  

विशाल ने लिखा है कि रिया द्वारा सुशांत को दवाओं का ओवरडोज़ देने की खबरें आ रही है। इससे पता चलता है कि उसका नुकसान ऐसे इंसान ने किया जिससे उसे बहुत ज्यादा लगाव था। जब तक यह बात साबित नहीं होती कि सुशांत ने मा​नसिक बीमारी के प्रभाव में आत्महत्या की है, तब तक मनोविज्ञान से जुड़े मुद्दे पर जागरूकता फैलाना किसी मूर्खता से कम नहीं है।  

सुशांत सिंह के बहनोई का पूरा जवाब इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है।           

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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