Tuesday, April 23, 2024
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यूट्यूब ‘बेरोजगार’ अजीत अंजुम को बुजुर्ग की पटखनी: महँगाई, कश्मीर, बेरोजगारी… सब पर सिखाया सबक, अब उड़ाने लगे मजाक

महँगाई दर 2009 में 12.31% थी और आज 2021 में 5% से भी कम है। क्या अजीत अंजुम आँकड़ों में विश्वास नहीं रखते? वीडियो तो पहले भी बनते थे। आज फिर क्यों बना रहे अजीत अंजुम?

भारत के ‘इलीट वर्ग के’ पत्रकार अब देश की आम जनता को ही बेवकूफ समझने लगे हैं। अनुच्छेद-370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने को लेकर भारत की आम जनता क्या सोचे और क्या नहीं, अब अजीत अंजुम सरीखे पत्रकार चाहते हैं कि ये भी मीडिया का गिरोह ही तय करे। कौन से मुद्दे से जनता को तकलीफ हो रही है और कौन से मुद्दे से वो खुश हैं वो खुश हैं, ये भी जनता की जगह अब पत्रकार ही तय करने में लगे हुए हैं।

एक ताज़ा वीडियो को देखिए। इसमें अजीत अंजुम एक बुजुर्ग ग्रामीण से सवाल पूछते हैं। उक्त ग्रामीण ने कहा कि कश्मीर को पहले पाकिस्तान अपना हिस्सा मानता था, लेकिन अनुच्छेद-370 के हटने के बाद वो वो पूरी तरह भारत का हिस्सा हो गया है। इस पर अजीत अंजुम ने आरोप लगा डाला कि उन्होंने व्हाट्सएप्प पर ये सब पढ़ा है। यानी, एक बुजुर्ग अपनी मन की बात नहीं कह सकता उनकी नजर में, ज़रूर उसे किसी ने ‘सिखाया’ है।

इसके बाद अजीत अंजुम बेरोजगारी के मुद्दे पर आ गए। रोजगार के सवाल पर बुजुर्ग ग्रामीण ने स्पष्ट कहा कि लोगों को रोजगार मिल रहा है और खेती में भी रोजगार बढ़ा है। इस पर अजीत अंजुम कहने लगे कि क्या पहले खेती नहीं होती थी? उलटा सवाल दागने लगे कि क्या पहले ईंट की ढुलाई और मिल का काम नहीं होता था? फिर बुजुर्ग का मजाक बनाने लगे कि वो क्या बोल रहे हैं। जब व्हाट्सएप्प का नाम लेकर बात नहीं बना तो उन्होंने पूछा डाला कि कौन सा चैनल देखते हो?

जब बुजुर्ग ने ‘जी न्यूज़’ बताया तो फिर अजीत अंजुम कहने लगे कि इस तरह के चैनल देखने पर यही सब होता है। इसके बाद फिर से वो बुजुर्ग ग्रामीण ‘त्यागी जी’ का मजाक बनाने लगे। ऑक्सीजन छिपाने को लेकर भी बुजुर्ग ने अपनी बात रखी। फिर जबरन अजीत अंजुम तेल के मुद्दे पर आ गए। बुजुर्ग ने कहा कि इससे उन्हें कोई दिक्कत नहीं। अंत में अजीत अंजुम उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘कट्टर समर्थक’ बता कर निकल लिए।

इतना ही नहीं, उन्होंने सोशल मीडिया में भी बुजुर्ग ग्रामीण का मजाक बनाया। उन्हें ‘मोदी समर्थक’ और ‘जी न्यूज का दर्शक’ जैसे विशेषणों से सम्बोधित करते हुए लिखा कि इन्हें महँगाई भी कबूल है। भाजपा नेता मनीष पांडेय ने अजीत अंजुम पर निशाना हुए लिखा कि अनुच्छेद-370 हटने से पहले कश्मीर नाममात्र का भारत का हिस्सा था – ये बात एक बुजुर्ग ग्रामीण त्यागी जी समझते हैं, लेकिन अजीत अंजुम जैसे पत्रकार नहीं।

सुधीर चौधरी ने भी अजीत अंजुम पर कटाक्ष करते हुए लिखा, पत्रकार की वेश में ये जो भी आदमी है, इसने एक वृद्ध ग्रामीण के मुँह में अपने शब्द डालने की पूरी कोशिश की। जब नहीं हुआ तो उसका मज़ाक़ उड़ाया। आख़िर में झुंझला गया। ये लोग गाँव वालों को अनपढ़ और बेवक़ूफ़ समझते हैं जबकि है इसका उल्टा। ये बेरोज़गार पत्रकार ईर्ष्या की आग में जल रहे हैं।” उनकी बात बहुत हद तक सही भी है।

उन्होंने बुजुर्ग से पूछा कि तेल के दाम बढ़ गए, खेती पहले भी होती थी। जब सब पहले होता था तो क्या महँगाई पहले नहीं थी? महँगाई दर 2009 में 12.31% थी और आज 2021 में 5% से भी कम है। क्या अजीत अंजुम आँकड़ों में विश्वास नहीं रखते? वीडियो तो पहले भी बनते थे। आज फिर क्यों बना रहे अजीत अंजुम? 2014 से पहले घर-घर में रोजगार था क्या? मोदी सरकार में तो तमाम योजनाओं के जरिए लोगों को रोजगार ही नहीं मिला है, बल्कि कइयों ने अपना कारोबार भी शुरू किया।

वो बुजुर्ग ग्रामीण ‘त्यागी’ था, इसीलिए अजीत अंजुम खुल कर उनका मजाक बना पाए। अगर उनकी जगह कोई मुस्लिम होता या फिर कोई सामान्य वर्ग का व्यक्ति नहीं होता तो अजीत अंजुम कभी उसका मजाक बनाने की हिम्मत नहीं करते। 2014 के बाद बेरोजगार हुए पत्रकारों की फेहरिस्त में शामिल अजीत अंजुम अब यूट्यूब व्यूज के लिए मारे-मारे फिरते हैं तो उन्हें लगता है कि पूरी दुनिया ही बेरोजगार हो गई है।

जबकि सच्चाई ये है कि सुदूर गाँव का एक निरक्षर व्यक्ति भी इन इलीट पत्रकारों से ज्यादा जानता है और देशहित के बारे में सोचता है। कभी शहर का मुँह भी नहीं देखने वाले व्यक्ति के घर भी आज बिजली है, इसीलिए वो कश्मीर व लद्दाख के बारे में इन पत्रकारों से ज्यादा जानता है, जो दिन-रात एसी गाड़ियों में घूमते रहते हैं। अजीत अंजुम जी, बुजुर्ग ग्रामीण ‘त्यागी जी’ का विवेक आपसे ज्यादा व्यापक है, उनकी समझ आपसे कई गुना ऊपर हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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