अप्रैल का महीना अपने कई खूबियों के कारण जाना जाता है। इनमे से एक है अप्रैल के महीने में अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को फूल (उल्लू) बनाना और दूसरी विषेशता है अप्रैल के महीने से मौसम का गर्म होना। अप्रैल के महीने में रामनवमी के अवसर पर अप्रैलकूल के नाम से एक कैम्पेन की शुरुआत की गई है। जिसका मुख्य उद्देश्य अप्रैल के गर्म होते महीने को कूल बनाना है जिससे हमारा वातावरण और हमारी धरती कूल रह सके। जब हमारी धरती कूल रहेगी तभी इसपे रहने वाले जीव भी कूल रह सकेंगे।
रामनवमी के अवसर पर शुरू किए गए इस अप्रैलकूल कैम्पेन के तहत लोगों से अपील है एक पौधा लगाने की और सोशल मीडिया (फेसबुक, व्हाट्सप्प, इंस्टाग्राम) पर अपने लगाए पौधे कि तस्वीर के साथ aprilcool टैग लाइन लगाकर अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों से शेयर करना की, ठीक वैसे ही जैसे आप होली दिवाली या अन्य त्योहारों पर तस्वीरें शेयर करके करते हैं।
अप्रैलकूल कैम्पेन का महत्व इस मायने में भी बढ़ जाता है कि आज हमारा वातावरण इतना प्रदूषित हो गया है कि हम खुल कर साँस भी नहीं ले पाते, ऐसा लगता है कि हमारे घरों में विषैली गैसों की एक चादर फैली है जिसमे हम सभी जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। हम इंसानो का पूरा जीवन पूरी तरह से प्रकृति पर आश्रित है लेकिन हमें जीवन देने वाले वातावरण से हम सौतेला व्यवहार करते है जिसका परिणाम अब लगातार घातक साबित होता जा रहा है।
ऐसे माहौल में बागवानी फाउंडेशन की यह मुहीम राहत की खबर है। खासतौर से बड़े शहरों में जहाँ पेड़ लगाने की उतनी सहूलियत नहीं है। वहाँ यह सवाल लाज़मी है कि इतनी गर्मी में हम पौधे कैसे लगा सकते हैं वह तो गर्मी में मर जाएँगे। इस सन्दर्भ में बागवानी फाउंडेशन ने जवाब दिया है कि हम अभी इंडोर प्लांट्स लगा सकते हैं जो घर के अंदर रखे जाते हैं। ये पौधे बेस्ट एयर प्यूरीफायर भी होते हैं। इंडोर लगाने के लिए कुछ बेस्ट प्लांट्स हैं- मनी प्लांट, पीस लिली, स्नेक प्लांट, बम्बू पाम, स्पाइडर प्लांट्स इत्यादि। ये पौधे न सिर्फ हवा को स्वच्छ करने में अन्य पौधों से ज्यादा सक्षम है, बल्कि यह हमारे घर की सुन्दरता को भी बढ़ाते हैं।
कहते हैं कि सम्भावनाओ से भरी ज़िन्दगी की डोर आती-जाती साँसों पर टिकी होती है और इन सांसों का आधार है, हरा-भरा वातावरण यानि पर्यावरण। साँसों के माध्यम से हम जो कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं वो पौधे ग्रहण कर लेते हैं और उसके बदले में वो हमें देते हैं बेशकीमती ऑक्सीज़न।
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एक अनुमान के अनुसार एक स्वस्थ पेड़ से 260 पौंड ऑक्सीज़न हर साल हमें मिलता है। इस तरह के दो पेड़ दो से तीन लोगों की ऑक्सीज़न की जरूरतों को पूरा करते हैं। यानी जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है वैसे-वैसे हमारे लिए पौधे और बेहतर पर्यावरण की आवश्यकता भी बढ़ गयी है। हम सब पर्यावरण को अपने-अपने ढंग से जानते और समझते हैं। पर्यावरण यानि जो प्राकृतिक रूप से हमारे चारों तरफ है और पृथ्वी पर हमारे रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करता है।
हवा, जिसमें हम हर पल साँस लेते हैं। पानी, जिसे हम अपनी दिनचर्या में इस्तेमाल करते हैं। पौधे, जानवर और सभी जीवित चीजें सब पर्यावरण पर ही आश्रित हैं। स्वस्थ वातावरण प्रकृतिक संतुलन बनाए रखता है और साथ ही साथ पृथ्वी पर सभी जीवित चीजों को बढ़ने और विकसित होने में मदद करता है।
पर्यावरण मुख्य रूप से वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल और जीवमण्डल से मिलकर बना है। पर्यावरण हमारे लिए कई तरह से उपयोगी है। इससे हमें उद्योगों के लिए कच्चा माल मिलता है, नई दवाइयों के निर्माण और मेडिकल रिसर्च के लिए कई प्रकार की उपयोगी चीजें मिलती हैं। सौंदर्य और मनोरंजन जैसे जरूरतों को भी पूरा करने के लिए पर्यावरण कई स्तरों पर हमारे लिए सहायक है। पर्यावरण हमारी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विकास में भी अहम् है। गौरवशाली परम्परा और अनूठी संस्कृति के देश भारत में पर्यावरण को विशेष महत्व दिया गया है।
प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में पर्यावरण के अनेक घटकों जैसे वृक्षों को पूज्य मानकर उन्हें पूजा जाता है। जल, वायु ,अग्नि को भी पवित्र मानकर उनकी पूजा की जाती है। समुद्र और नदी को भी आराधना योग्य माना गया है। धरती को भी माँ का अमूल्य स्थान दिया गया है।
लम्बे समय से ही भारत में पर्यावरण के अलग अलग रूपों को उनके विशेष गुणों के कारण खास स्थान दिया गया है। समय के साथ पर्यावरण का संतुलन गड़बड़ा सा गया है। पर्यावरण के इस बिगड़ते स्वरुप के पीछे ढेर सारे कारण है। आधुनिक होते समाज में पर्यावरण की समस्या विकासशील राष्ट्रों की ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की समस्या बन गयी है। सभी ऋतुएँ अपने अस्तित्व को खोती नज़र आ रही है। समय पर ठण्ड नहीं पड़ना, गर्मी में बहुत ज्यादा गर्मी, वर्षा का समय पर न आना या कहीं-कहीं बेमौसम अधिक वर्षा होना, कहीं अकाल की स्थिति पैदा होना। ये सब पर्यावरण में बदलाव का ही नतीजा है। पर्यावरणीय समस्याओं से मनुष्य और दूसरे जीवधारियों को अपना सामान्य जीवन जीने में कठिनाई होने लगती है और कई बार जीवन-मरण का सवाल पैदा हो जाता है।
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प्रदूषण भी एक पर्यावरणीय समस्या है जो आज एक विश्व-व्यापी समस्या बन गयी है। पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और इंसान सब उसकी चपेट में हैं। कारखानों बिजली घरों और मोटर वाहनों में खनिज ईंधनों का अंधाधुंध प्रयोग होता है, इनके जलने पर कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड आदि खतरनाक गैसें निकलती हैं जिससे धरती का तापमान बढ़ रहा है और मौसम में असामान्य बदलाव हो रहा है।
पिछले सौ सालों में वायुमंडल का तापमान 3 से 6 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। लगातार बढ़ते तापमान से दोनों ध्रुवों पर बर्फ गलने लगेगी जिससे कई देशों की डूबने की सम्भावना बढ़ गयी है। इसके आलावा कुछ क्षेत्रों में सुखा पड़ेगा तो कई जगहों पर तूफ़ान आएगा और कहीं भरी वर्षा हो सकती है।
उद्योगों से निकलने वाली विषैली गैसों से वायु प्रदूषण कई गुना बढ़ गया है जिससे पर्यावरण और जीव-जंतुओं को भारी नुकसान पहुँच रहा है। एक अध्यन के अनुसार वायु प्रदुषण से केवल 36 शहरों में प्रतिवर्ष 52,7739 लोगों की अकाल मृत्यु हो जाती है। कोलकता , कानपुर तथा हैदराबाद में वायु प्रदूषण से होने वाली मृत्यु पिछले 3-4 सालों में दुगुनी हो गई है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में प्रदूषण के कारण हर दिन करीब 150 लोग मरते हैं और सैकड़ों लोगों को फेफड़े और हृदय की जानलेवा बीमारी हो जाती है।
आपको जानकर आश्चर्य होगा की हवाई जहाज से सबसे अधिक प्रदुषण होता है। 46 हजार हेक्टेयर में फैले जंगल से जितना ऑक्सीजन निकलता है उतना एक दिन में एक हवाई जहाज द्वारा कार्बन-डाइऑक्साइड का उत्सर्जन वायुमंडल में हो जाता है। कोयला डीजल, पेट्रोल के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में दिनों-दिन वृद्धि हो रही है जिसके कारण रोज़ एक प्रजाति लुप्त हो रही है।
औद्योगिकीकरण और शहरीकरण से जुडी एक और समस्या है जल-प्रदूषण। भारत में ऐसी कई नदियाँ हैं जिनका जल अब अशुद्ध हो गया है। दूषित पानी पिने से ब्लड कैंसर, त्वचा कैंसर, हड्डी रोग , हृदय एवं गुर्दों की तकलीफें और पेट की अनेक बीमारियाँ हो रही हैं जिनसे हमारे देश में हजारों लोग हर साल मर रहे हैं। एक और पर्यावरणीय समस्या है वनों की कटाई। पूरे विश्व में प्रतिवर्ष 1.1 करोड़ हेक्टेयर वन काटा जा रहा है। अकेले भारत में प्रतिवर्ष 10 लाख हेक्टेयर वन कटा जा रहा है। वनों के विनाश के कारण वन्य जीव लुप्त हो रहे हैं।
पर्यावरण के बिगड़ते स्वरुप के पीछे एक और अहम् कारण हैं, रासायनिक उर्वरकों का जरुरत से ज्यादा प्रयोग। इसके लगातार प्रयोग से भूमि की उर्वरा-शक्ति लगातार घट रही है वहीं कई बार तो ये भी देखा गया है कि इनके लगातार प्रयोग से भूमि बंजर भी हो जाती है। धरती सीमित है और जब भूमि ही अपनी उर्वरा शक्ति खो देगी तब भला हम हरे-भरे वातावरण की कल्पना कैसे कर सकते हैं। पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया हुआ है।
इस समस्या से उबरने के लिए पूरी दुनिया को एक होने की जरुरत है, हम सब को अपने अपने स्तर पर कोशिश करते रहने की जरुरत है। हर वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने के पीछे भी यही मकसद है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जा सके। लेकिन साल के किसी एक दिन को इस तरह की दिवस मनाकर हम इस विकराल समस्या को नही सुलझा सकते, इसके लिए पूरे वर्ष सतत प्रयास करते रहने की जरूरत है।
इसी को ध्यान में रखते हुए टीम बागवानी के डेडिकेटेड टीम ने अप्रैल में अप्रैल कूल से शुरुआत कर 5 जून तक लोगों में पेड़ लगाने के प्रति जागरूकता फ़ैलाने की मुहीम को तेज करने का निर्णय लिया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रौढ़ शिक्षा विभाग के प्रांगण में इस टीम ने कई पौधे एक साथ लगाए और इनको एक खूबसूरत स्वरूप देने की पहल की। कुमार राम और विशाल कुमार गुप्ता नाम के इन दो युवकों ने इससे पहले भी कई दफा ऐसे पौधारोपण कार्यक्रम करके कई शिक्षकों और दूसरे युवाओं को प्रेरित करने का काम किया है। ऐसी सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर युवाओं को सतत ऐसे कार्य करते रहने के लिए हम सभी को इन्हें प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
कुछ उपायों को अमल में लाकर हम पर्यावरण के स्वरुप को बिगड़ने से बचा सकते हैं। युवा वर्ग आगे आकर सकारात्मक योगदान दे सकते हैं। सही मायनो में गो-ग्रीन कहने के लिए ही नही बल्कि करने में भी आसान है। आज के समय में पर्यावरण का ध्यान रखना हर किसी की जिम्मेदारी और अधिकार होना चाहिए और खासकर आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण का संरक्षण बहुत जरुरी है तो आइए एक शपथ लें की हम सब अपने अपने स्तर से पर्यावरण को बचाने की पूरी कोशिश करेंगे जिससे बनेगा हरा भरा वातावरण और खुशहाल पर्यावरण।
इस रामनवमी के अवसर पर फिलहाल अप्रैलकूल कैंपेन से जुड़े और अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को भी जोड़ें क्योंकि कोई अकेला हमारे पर्यावरण को स्वच्छ एवं स्वस्थ नहीं कर सकता। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सभी का योगदान अनिवार्य है।
“धरती हो रही गर्म,
सासें होने लगी कम
आओ पेड़ लगाए हम……”