Thursday, March 28, 2024
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ब्रिटिश काल की हरकतें अनुचित, सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा लोगों के अधिकारों का हनन: शाहीनबाग पर SC का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पब्लिक प्लेस पर अनिश्चितकाल के लिए कब्जा नही किया जा सकता। अदालत ने कहा कि धरना-प्रदर्शन का अधिकार अपनी जगह है लेकिन अंग्रेजों के राज वाली हरकत अभी करना सही नहीं है।

नई दिल्ली स्थित शाहीन बाग में CAA विरोधी आंदोलन के दौरान सड़क रोक कर बैठे प्रदर्शनकारियों के मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (अक्टूबर 07, 2020) को कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि कोई भी समूह या शख्स द्वारा सिर्फ विरोध प्रदर्शनों के नाम पर शाहीनबाग जैसी सार्वजनिक जगहों को अनिश्चित काल तक ब्लॉक या कब्जा नहीं किया जा सकता है।

शीर्ष अदालत ने आज अपने फैसले में कहा कि कोई भी व्यक्ति या समूह सार्वजिनक स्थानों को ब्लॉक नहीं कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पब्लिक प्लेस पर अनिश्चितकाल के लिए कब्जा किया जा सकता। अदालत ने कहा कि धरना-प्रदर्शन का अधिकार अपनी जगह है लेकिन अंग्रेजों के राज वाली हरकत अभी करना सही नहीं है।

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है और इसका सम्मान किया जाना चाहिए। हालाँकि, अधिकार का मतलब यह नहीं है कि आंदोलन करने वाले लोगों को स्वतंत्रता के लिए संघर्ष के दौरान औपनिवेशिक शासन के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने वाले विरोध के साधनों और तरीकों को अपनाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एसके कौल, अनिरुद्ध बोस और कृष्ण मुरारी की बेंच द्वारा यह फैसला दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि विरोध प्रदर्शनों के लिए सार्वजनिक स्थान पर इस तरह का कब्जा स्वीकार्य नहीं है और निर्धारित स्थानों पर ही विरोध प्रदर्शन होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “शाहीन बाग इलाके से लोगों को हटाने के लिए दिल्ली पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए थी। विरोध प्रदर्शनों के लिए शाहीन बाग जैसे सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा करना स्वीकार्य नहीं है। प्रशासन को खुद कार्रवाई करनी होगी और वे अदालतों के पीछे छिप नहीं सकते। लोकतंत्र और असहमति साथ-साथ चलते हैं। लेकिन विरोध प्रदर्शन के लिए निर्धारित जगह होनी चाहिए”

बता दें कि शीर्ष अदालत ने गत 21 सितंबर को ‘लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन के अधिकार और लोगों के मुक्त आवागमन के अधिकार को संतुलित करने की आवश्यकता’ के पहलू पर अपना आदेश सुरक्षित रखा था।

वकील अमित साहनी ने जनवरी में शाहीन बाग में हुए सीएए-एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को हटाने के लिए याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने शिकायत की थी कि प्रदर्शनकारियों द्वारा ब्लॉक किए गए सड़क की वजह से जनता के मुक्त आवागमन के अधिकार पर असर पड़ रहा।

सुप्रीम कोर्ट ने सड़क से भीड़ नहीं हटाने और इस मामले में अदालत के आदेश की प्रतीक्षा करने के लिए सरकार को भी लताड़ा। अदालत ने कहा कि प्राधिकारियों को खुद कार्रवाई करनी होगी और वे अदालतों के पीछे छिप नहीं सकते।

सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग में तथाकथित सीएए-विरोध पर कहा, “दिल्ली पुलिस को शाहीन बाग क्षेत्र को खाली करने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए थी।”

अदालत ने आगे कहा कि प्रदर्शनों से बड़ी संख्या में लोगों को असुविधा होती है और उनके अधिकारों का उल्लंघन कानून के तहत स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने कहा कि सार्वजनिक सड़क का उपयोग करने के लिए लोगों के अधिकार को देखते हुए विरोध का अधिकार संतुलित होना चाहिए। लंबे समय तक ब्लॉक सड़क को लेकर कोर्ट ने पूछा, ” लोगों द्वारा सड़क का उपयोग करने के अधिकार के बारे में क्या?”

गौरतलब है कि कोरोना वायरस को मद्दे नजर रखते हुए लॉकडाउन लागू होने के बाद प्रदर्शकारियों को सड़क से हटा दिया गया था। लेकिन शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह ‘राइट टू प्रोटेस्ट बनाम राइट टू मोबिलिटी’ के मुद्दे पर फैसला सुनाएगी। आज के आदेश से सरकारों को अदालती आदेश की प्रतीक्षा किए बिना सार्वजनिक स्थानों पर विरोध प्रदर्शनों को हटाने की कानूनी मंजूरी मिल गई है, इसका प्रभाव आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ करीब 100 दिनों तक लोग सड़क रोक कर बैठे थे। दिल्ली को नोएडा और फरीदाबाद से जोड़ने वाले एक अहम रास्ते को रोक दिए जाने से रोज़ाना लाखों लोगों को परेशानी हो रही थी। इतना ही नहीं दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों की साजिश भी शाहीनबाग में ही रची गई थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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