शुक्रवार (15 मार्च, 2019) को न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च शहर के 2 प्रार्थना स्थलों में एक बंदूकधारी ने अंधाधुंध गोलीबारी कर करीब 49 लोगों की हत्या कर दी। इस घटना से सारी दुनिया को गहरा दुःख पहुँचा है, जो स्वभाविक है। इस मामले की जाँच पड़ताल से पता चलता है कि बंदूकधारी ने यह हमला किसी उग्रवादी संगठन के बहकावे में आकर, जल्दबाजी में या मानसिक रोग की वजह से नहीं किया है।
ये बात जानकार हैरानी होती है कि ब्रेनटेन टैरेंट नाम के इस आरोपित ने अपना एक 74 पेज का घोषणापत्र जारी किया था, जिसमें उसने अपनी सोच, उद्देश्य व हमले के कारण लिखे थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वह करीब 2 साल से हमले की तैयारी कर रहा था। हमले वाले स्थलों को उसने 3 महीने पहले ही चुन लिया था, और 24 घंटे पहले ही सोशल मीडिया के माध्यम से धमकी भी दी थी।
हमले के वक्त आरोपित ब्रेनटेन टैरेंट ने लगातार 17 मिनट तक वीडियो का लाइव टेलीकास्ट भी किया। हमले के पीछे उसने कई कारणों को जिम्मेदार बताया है। यह कारण जानना इसलिए भी जरूरी है, ताकि वैश्विक शांति के लिए दहशतगर्दी की जड़ को पहचानकर और समझकर, उसका समाधान किया जा सके, जिससे कि भविष्य में ऐसे किसी नृशंस कार्य व हिंसा द्वारा मानवता को शर्मसार करने वाली अप्रिय घटना से बचा जा सके। हालाँकि, यह एक दिवास्वप्न मात्र है।
- हमलावर ने अपने घोषणापत्र में सबसे पहले बेतहाशा बढ़ रहे शरणार्थियों का विरोध किया है, वह कहता है, “मुस्लिम शरणार्थी हमारी भूमि पर अतिक्रमण कर रहे हैं। यह भूमि श्वेतों की है।” हमलावर ने चिंता जताई है कि शरणार्थी अधिक प्रजनन करके पश्चिमी देशों की धार्मिक जनसांख्यिकी को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। वह शरणार्थियों पर पश्चिम देशों की संस्कृति व शांति भंग करने का आरोप लगाता है।
- हमलावर पूरे इतिहास में यूरोपीय भूमि में विदेशी आक्रमणकारियों के कारण हुई हजारों मौतों का बदला लेने की बात कहता है। साथ ही इस्लामिक आक्रान्ताओं पर यूरोप के लाखों लोगों को गुलाम/दास बनाने का भी आरोप लगाता है।
- आरोपित ब्रेनटेन टैरेंट यूरोप में हुए जिहादी हमलों में हुई मौतों का जिक्र करता है। गौरतलब है कि शरणार्थियों को शरण देने के बाद से यूरोप में आतंकी घटनाओं में अत्यधिक वृद्धि दर्ज की गई है, जिसमें 2017 का स्टॉकहोम हमला भी शामिल है।
- वह ‘एब्बा एकरलैंड’ नाम की एक 12 साल की मूक-बधिर बच्ची जिसकी अप्रैल 2017 के स्टॉकहोम
आतंकी हमले में मृत्यु हो गई थी, की बात करता है। गौरतलब है कि स्टॉकहोम हमला रख्मत नाम के
एक शरणार्थी ने इस्लामिक स्टेट आतंकी संगठन के समर्थन में किया था। - वह ऐसे राजनेताओं को खुद के देश के लोगों का शत्रु बताता है जो शरणार्थी समर्थक हैं, इसलिए वो उन्हें भी आतंकी संगठनों के खिलाफ कड़े कदम उठाने के लिए संदेश देने की बात करता है। वह कहता है कि शून्यवाद, सुखवाद, व्यक्तिवाद व स्वार्थ ने पश्चिमी विचारों पर नियंत्रण कर लिया है, वह इसे नष्ट करना चाहता है।
- हमलावर इस कृत्य द्वारा नाटो (NATO ) के सदस्य राष्ट्रों, यूरोप के देशों व तुर्की के बीच दरार डालना चाहता था, जिससे नाटो से तुर्की को निकाल दिया जाए और वह फिर से एकजुट होकर यूरोपीय सेना में बदल जाए। दरअसल नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) एक अंतर्राष्ट्रीय राज्यसंघ है, जिसमें कुल 29 देश हैं। इनमें 2 देश संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के, 26 देश यूरोप के हैं व एक देश तुर्की है। संधि की अनुसार, इसमें से किसी भी देश पर हमला सभी देशों पर हमला माना जाता है। इनमें से तुर्की एकमात्र इस्लामिक देश है, जिस पर नाटो संधियों के उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं। जैसे वर्ष 2003 में ईराक में आतंकवाद के खिलाफ सेना भेजने से इंकार करना आदि। ऐसे कारणों व सीरिया समस्या के बाद से पश्चिमी देशों में तुर्की को इस्लामिक पक्षपाती देश के रूप में देखा जाने लगा है।
- इसके अलावा हमलावर ने ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड, जर्मनी व अन्य पश्चिमी देशों में अप्रवासी, शरणार्थियों आदि द्वारा किए गए महिलाओं के बलात्कार व बाल यौनशोषण के करीब 20 लिंक देते हुए बदला लेने की बात कही है।
हमलावर ने अपना एक चिन्ह भी जारी किया है, जिसमें उसने 8 उद्देश्य रखे हैं
- पृथ्वी के पर्यावरण की रक्षा
- जिम्मेदार मार्केट
- व्यसन मुक्त समाज
- कानून एवं व्यवस्था
- जातीय स्वराज्य
- संस्कृति और परंपरा की रक्षा
- कामगारों के अधिकार
- साम्राज्यवाद का विरोध
इसके अतिरिक्त भी हमलावर ने कई बातें कहीं हैं, जो उग्र, संगीन, हिंसा समर्थक व विवादित होने के कारण प्रकाशित नहीं किए जा सकते हैं। इस हमले से आज सारा विश्व दुखी महसूस कर रहा है। कानून हाथ में लेकर निर्दोष व्यक्तियों की हत्या करना एक सभ्य समाज में कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। इसलिए बदले की भावना से भरे इस भटके हुए हमलावर की जितनी कड़ी से कड़ी निंदा की जाए कम है। इस समय हमें वैश्विक शांति के लिए एक समाज, एक शांतिप्रिय विश्व के रूप में एकजुट होना चाहिए।