अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण अभियान चल रहा है। इसके लिए घर-घर जाकर लोगों से दान माँगा जा रहा है। आम से लेकर खास तक इसमें योगदान कर रहे हैं। लेकिन, वामपंथियों और इस्लामवादियों को यह नहीं सुहा रहा। कवि उदय प्रकाश को भी इस जमात ने राम मंदिर के लिए दान देने पर जमकर खरी-खोटी सुनाई है। वैसे उदय प्रकाश कभी इस जमात की ऑंखों के तारे होते थे।
उदय प्रकाश ने दान की जानकारी अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए गुरुवार (फरवरी 4, 2021) को दी। उन्होंने लिखा “आज की दान-दक्षिणा। अपने विचार अपनी जगह पर सलामत।”
बता दें कि उदय प्रकाश पत्रकार होने के साथ-साथ शिक्षाविद, कवि और आलोचक भी हैं। उन्होंने साल 2015 में कन्नड़ साहित्यकार एमएम कलबुर्गी की हत्या के बाद साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटा दिया था। उस समय वह वामपंथी गिरोह के प्रिय चेहरों में से एक थे। लेकिन जब उन्होंने राम मंदिर के लिए दान देने का प्रमाण दिया, तो यही लोग उन पर बिफर गए।
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जगदीप सिंह ने कहा, “बहुत से प्रगतिशीलों का पतन बुढ़ापे में होते देख रहे हैं। खैर आपका व्यक्तिगत मसला है। आप स्वतंत्र हैं। इससे जाहिर होता है अवस्था के अनुसार व्यक्ति के सरोकार बदल जाते हैं। आपके लिखे को आपके व्यक्तित्व से अलग करके ही देखना होगा।”
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शेषनाथ पांडे लिखते हैं, “कहीं कुछ भी ठीक नहीं चल रहा सर। आपका यह कदम ‘ठीक नहीं चलने देने’ की तरफ धकेल रहा है। विनम्र असहमति आप से।”
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फैक अतीक किदवई कहते हैं, “मुस्लिमों पर ये किसी अट्टहास से कम नहीं है।”
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मजदूर झा ने कहा, “आपने जो किया उस पर बात हो सकती है लेकिन आपकी दलीलें तो दलाली है। आप जैसे दलित चिंतको की आखिरी परिणति यही है। राजेन्द्र जी ने कहा था कि रोना बंद कीजिए और अपने समाज के लिए काम कीजिए। लेकिन आपको तो कायराना आँसू टपकाने की आदत है। डूब मरो और सिम्पैथी कार्ड खेलो।”
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लेखक अनुराग अनंत लिखते हैं, “उदय सदैव उदय नहीं होता वह अस्त भी होता है। यह दौर आँखों से पर्दा हटने का दौर है। मैं भीतर से इस नतीज़े पर पहुँच रहा हूँ कि कोई भी व्यक्ति सेलिब्रिटी नहीं। कोई हीरो नहीं। कोई आदर्श नहीं। सब बस हैं। जैसे होना चाहते हैं वैसे हैं। जैसे आप इस समय नृत्य करना चाहते हैं और आप कर रहे हैं।”
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शादाब आनंद लिखते हैं, “हिंदी साहित्य का बड़ा वर्ग अंदर से हमेशा साम्प्रदायिक रहा है, हम जिसे प्रगतिशील धड़ा समझते हैं उनमें भी ऐसे लोग भरे पड़े हैं। शर्मनाक।”
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विजेंद्र सोनी कहते हैं, “थोड़ा सा पाने के चक्कर में बहुत कुछ खो दिया, वैसे भी उदय प्रकाश के आगे सिंह लगाना इस समय उनके अपने इलाके की फौरी जरूरत है।”
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अब्बास पठान ने लिखा है, “इसी बिना रीढ़ के साहित्यकार वर्ग पर अक्सर मैं लानत भेजता रहता हूँ। क्या आपकी कलम में ये पूछने की हिम्मत है कि इससे पहले किया गया अरबों रुपये का चन्दा किधर है और ऐसी कौनसी इमारत का नक्शा जारी कर दिया गया है, जिसकी लागत 5000 करोड़ आने वाली है।”
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