"निगम द्वारा कोई भी लाइसेंस नहीं दिया गया है। केजरीवाल ये बताएँ कि फैक्ट्री चलाने वाला रेहान कौन है, जिसे वहाँ के विधायक का संरक्षण प्राप्त है? हम इसकी उच्च स्तरीय जाँच की माँग करते हैं।"
एक 3 बार राज्यसभा चला गया, दूसरे के भाग का छींका गुप्ताओं ने हड़प लिया। एक ने अपने नेता को 'धोबी का कुत्ता' बना दिया, दूसरे को उसके नेता ने ही 'धोबी का कुत्ता' बना दिया। एक शाकाहारी अंडे की बात करता है, दूसरा ब्रेड-अंडे की। 'सामना' करिए 'सत्य हिंदी' का।
बीते साल जब दिल्ली की हवा बिगड़ रही थी तो केजरीवाल फैमिली के साथ दुबई प्राइवेट ट्रिप पर निकल गए थे। इस बार चुनाव चौखट पर है, इसलिए बने रहने की मजबूरी है। प्रदूषण के बहाने वे अपने 'बच्चा पॉलिटिक्स' को मॉंजने में जुट गए हैं।
"दिल्ली सरकार द्वारा नियुक्त पब्लिक प्रोसिक्यूटर 23 सितम्बर के बाद से पेश नहीं हुए हैं। अजीब स्थिति है। सरकार इस केस में गंभीरता दिखा ही नहीं रही। ऐसा लगता है कि राज्य सरकार ने सारी जिम्मेदारियों से हाथ धो लिया है।"
अकेले सीएम केजरीवाल के इलाज पर 12 लाख रुपए से भी अधिक ख़र्च किए गए। उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के परिजनों के इलाज पर 13.25 लाख रुपए से भी अधिक ख़र्च किए गए। ये सारा ख़र्च सरकारी खजाने से हुआ।
आज केजरीवाल को यूपी-बिहार, बंगाल और राजस्थान से आए लोगो से नफरत है। इसके उलट उन्हें बांग्लादेश और म्यांमार से आए घुसपैठियों से मोहब्बत है। देशद्रोही, नक्सली और टुकड़े-टुकड़े गैंग की राजनीति करने वाले केजरीवाल अपने वोट बैंक को एक साफ सन्देश दे रहे हैं- "दिल्ली में NRC लागू नहीं होने दूँगा और टुकड़े-टुकड़े गैंग को बचाऊँगा।"
कपिल मिश्रा ने केजरीवाल पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह भी संभव है कि दिल्ली में अवैध तरीके से रह रहे बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट और भारत सरकार का घुसपैठियों की पहचान करने का जो दिशा निर्देश है, उसके रास्ते में रोड़े अटकाने की साजिश हो।
तिवारी ने सीएम के बयान पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि क्या केजरीवाल दिल्ली में रह रहे देश के अन्य हिस्से के लोगों को विदेशी मानते हैं? तिवारी ने दावा किया कि अरविन्द केजरीवाल अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं।
स्कूलों की पोल तब खुली, जब पैरेंट्स एसोसिएशन ने एक आरटीआई दाखिल की। 2000 से अधिक स्कूलों में फायर एनओसी का न होने का मतलब है कि 2 लाख बच्चे ख़तरे की जद में आ जाते हैं। दिल्ली सरकार किस अनहोनी के इंतजार में हाथ पर हाथ धरे बैठी है?