Sunday, May 5, 2024

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इतिहास

‘हिन्दू हूँ, पुनर्जन्म लेकर स्वतंत्र भारत में फिर आऊँगा’: गीता पाठ कर फाँसी के फंदे पर झूलने वाला ‘काकोरी’ का नायक

जब वे जेल में थे तो अंग्रेजों ने डर के मारे 2 दिन पहले ही फाँसी दे दी। उनकी मृत्यु के बाद भी अंग्रेज भयभीत थे।

200 साल पहले ‘जहर’ था टमाटर, मुकदमा चला, लाल रंग भी मुसीबत: जानिए, कैसे हुई रसोईघर में एंट्री

आज रसोई में खास जगह बना चुके टमाटर को 28 जून 1820 को बिना जहर वाली सब्जी घोषित किया गया था।

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय: प्रेसीडेंसी कालेज से BA करने वाले वह पहले भारतीय, अंग्रेजी नौकरी और उसी के विरोध में ‘वंदे मातरम्’

सरकारी नौकरी में होने के कारण बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय किसी सार्वजनिक आन्दोलन में प्रत्यक्षतः भाग नहीं ले सकते थे, पर उनका मन...

राजा-रानी की शादी हुई, दहेज में दे दिया बॉम्बे: मात्र 10 पाउंड प्रति वर्ष था किराया, पुर्तगाल-इंग्लैंड ने कुछ यूँ किया था खेल

ये वो समय था जब इंग्लैंड में सिविल वॉर चल रहा था। पुर्तगाल को स्पेन ने अपने अधीन किया हुआ था। भारत की गद्दी पर औरंगज़ेब को बैठे 5 साल भी नहीं हुए थे। इधर बॉम्बे का भाग्य लिखा जा रहा था।

वो ब्राह्मण राजा, जिनका सिर कलम कर दिया गया: जिन मुस्लिमों को शरण दी, उन्होंने ही अरब से युद्ध में दिया धोखा

राजा दाहिर ने जब कई दिनों तक शरण देने की एवज में खलीफा के उन दुश्मनों से मदद माँगी, तो उन्होंने कहा, "हम आपके आभारी हैं, लेकिन हम इस्लाम की फौज के खिलाफ तलवार नहीं उठा सकते। हम जा रहे हैं।"

कहाँ से आई सती प्रथा? कितना था प्रभाव? NCERT के पास सबूत Nil, फिर भी बच्चों को पढ़ा रहा

NCERT के पास भारत में सती प्रथा की उत्पत्ति या प्रभाव के बारे में कोई जानकारी नहीं है। एनसीईआरटी के जवाब के अनुसार, ASI के आधार पर विभाग की फाइलों पर अभिलेखों/तथ्यों के स्रोत उपलब्ध नहीं हैं।

‘मुस्लिम जज’ ने दिया था सरेआम गाय काटने का आदेश, अंग्रेजी तोप के सामने उड़ा दिए गए थे 66 नामधारी: गोहत्या विरोधी कूका आंदोलन

सिख सम्राट रणजीत सिंह जब तक जीवित थे, तब तक उनके साम्राज्य में गोहत्या पर प्रतिबंध रहा। लेकिन, हिन्दुओं और सिखों के लिए दुर्भाग्य ये रहा कि महाराजा का 1839 में निधन हो गया।

‘हमने पिथौरा को जिंदा दबोच इस्लामी फौज को सौंप दिया’: ‘गरीब नवाज’ ने क्यों लिया था पृथ्वीराज चौहान की हार का श्रेय?

जिस साल मोहम्मद गोरी हार कर भागा, उसके अगले ही साल एक सूफी संत ने अजमेर में डेरा जमाया, पृथ्वीराज चौहान की राजधानी में और...

मैं चाहे जो लिखूँ-बोलूँ, मेरी मर्जी: बालसुलभ तर्कों से लैस इतिहास्य-कार, आरफा खानुम महज झाँकी है

औरंगज़ेब ने भले दर्जनों मंदिर तुड़वाए, लेकिन इतिहासकार चाहे तो अपने इतिहास की कार चढ़ा उसे कुचल दे और साबित कर दे कि वह तो बड़ा शालीन शासक था।

शिंगणवाडी का संत, जिनके बताए मार्ग पर चलते थे छत्रपति शिवाजी, चरणों में अर्पित कर दिया था पूरा राज्य: नकारते हैं वामपंथी

समर्थ रामदास से मिलने के लिए छत्रपति शिवाजी खुद पत्र लेकर चाफल के श्रीराम मंदिर के नीचे की पहाड़ी पर शिंगणवाडी के जंगलों में पहुँच गए।

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