क्या अकारण वीरगति को प्राप्त हुए सेना के जवान और आतंकी मनसूबों के साथ मरने वाले आतंकवादियों में कोई फर्क ही नहीं रह गया है? अपने दुख को इन जवानों के घर वालों के दुख के समान बताकर किस तरह का माहौल बनाया जा रहा है?
सर्वदलीय बैठक से पहले गृहमंत्री राजनाथ सिंह के घर पर बड़ी बैठक हुई। इस बैठक में गृह सचिव राजीव गौबा सहित इंटेलीजेंस ब्यूरो(आईबी) के बड़े अधिकारी भी बैठक में शामिल रहे।
गृह मंत्री ने शाम में कहा था कि सेना को हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया गया है। इस बयान के कुछ समय बाद ही सरकार द्वारा हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा वापस लेने की बात कही जा रही है।
जवानों की शहादत पर लोगों ने जम्मू शहर में जौहरी चौक, पुरानी मुंडी, रेहरी, शक्तिनगर, पक्का डंगा, जानीपुर, गाँधीनगर और बख्शीनगर समेत कई जगहों पर बड़े पैमाने पर पाकिस्तान के विरोध में नारे लगाते हुए प्रदर्शन किया।
लगातार धर्म की आड़ में आतंकियों को पालने वाले पाकिस्तान को अच्छे से यह बात मालूम है कि जो आतंक का बीज़ वो अपनी धरती पर लगाता है, उसकी जड़ें भी बनेंगी और वो फैलेंगी भी।
जवानों की शहादत के बाद से पूरे देश में मातम का माहौल छाया हुआ है। कई परिवार बिलख रहे हैं, तो कई बेटे की शहादत का बदला चाहते हैं। इन शहीदों में एक नाम ठाकुर रतन सिंह का भी शामिल है।
लोकनगर निवासी अजीत कुमार सीआरपीएफ की 115वीं बटालियन में तैनात थे। बीते गुरुवार की शाम वह जम्मू से श्रीनगर सीआरपीएफ के काफ़िले के साथ जा रहे थे। इस दौरान पुलवामा के अवंतीपोरा के गोरीपोरा में एक आतंकी ने विस्फोटक से भरी गाड़ी को जवानों की बस से टकरा दी।