एक अख़बार से अपनी तुलना किए जाने और ख़ुद को 'सस्ता' बताने के राज के ट्वीट से भड़की स्वरा ने गुस्से में उन्हें भला-बुरा सुनाया। उन्होंने कहा कि राज उन्हें रोल ऑफर करते हैं और अपनी फ़िल्म का ट्रेलर शेयर करने का निवेदन करते हैं। राज ने कहा कि अगली बार फिर रोल ऑफर करूँगा।
इन 10 चेहरों को देख लीजिए। इन्होंने 2019 में नकारात्मकता, जातिवाद, डर और तानाशाही का कारोबार किया है। ऑपइंडिया लेकर आया है उन 10 लोगों के नाम, जिन्होंने पूरे 2019 में केवल बुरे कारणों से ही सुर्खियाँ बनाईं। कइयों को जनता ने इस साल करारा सबक सिखाया।
"(भारत में...) धर्म नागरिकता का आधार नहीं है। धर्म भेदभाव का आधार नहीं हो सकता। राज्य धर्म के आधार पर फैसला नहीं ले सकता। नागरिकता संशोधन बिल ने मुस्लिमों को स्पष्ट रूप से बाहर रखा है। इस NRC/CAB प्रोजेक्ट में जिन्ना का पुनर्जन्म हुआ है। हिन्दू पाकिस्तान को मेरा हैलो!"
"मैं मुंबई में शूटिंग का अपना अनुभव शेयर कर रही थी। इस दौरान मैंने जो शब्द इस्तेमाल किए वह एडल्ट कॉमेडी है, मैंने यह शब्द एक एडल्ट मज़ाक के तौर पर उस वक़्त के अपने फ्रस्टेशन (कुंठा) को व्यक्त करने के लिए इस्तेमाल किए थे।"
स्वरा को बताते देखा जा सकता है कि वो अपने ऐड के दौरान इस बात से काफ़ी आश्चर्यचकित रह गई थीं जब एक चार साल के बाल कलाकार ने उन्हें ‘ऑन्टी’ कहकर संबोधित किया। स्वरा ने इस घटना का ज़िक्र करते हुए उस बाल कलाकार को ‘चू ** या’ कहा।
स्वरा भास्कर ने जिस अंदाज़ में यह सब बातें कही उस अंदाज़ को भले ही दर्शकों ने पसंद किया हो, लेकिन एक बाल कलाकार को इस तरह से संबोधित करके स्वरा ने अपने अभद्र व्यवहार का ही प्रमाण दिया है।
लल्लू सिंह ने माफ़ी माँगते हुए जो लिखा वो किसी को भी ठीक से संतुष्ट नहीं कर पा रहा कि उन्होंने स्क्रॉल करते वक़्त गलती से ट्वीट के उस बेहूदे रिप्लाई को लाइक कर दिया।
स्वरा भास्कर के लिए ऑर्गेज्म यानी संभोग के दौरान चरमसुख पाना लैंगिक समानता का मसला हो सकता है, उन तमाम औरतों को लिए नहीं जिनके लिए ज़िंदा रहना ही सबसे बड़ा संघर्ष है।
स्वरा भास्कर उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने भाजपा को सत्ता से हटाने से लिए विपक्षी नेताओ के लिए कैंपेनिंग की थी। लेकिन मोदी लहर के आगे उनका जलवा नहीं चल पाया। वो सभी कैंडिडेट्स रुझानों में भाजपा नेताओं से पिछड़ते नजर आए, जिनकी कैम्पेनिंग करने के लिए स्वरा ने...
अगर पार्टी और व्यक्ति को विचारधारा से आँका और परखा जाता है तो कन्हैया तो कम्युनिस्ट हैं, हम कैसे मान लें कि कल को देश के उच्च पद पर आसीन होने के बाद कन्हैया इस बात पर जोर नहीं देंगे कि सबको कम्युनिस्ट होना पड़ेगा? कैसे मान लें कि वो 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' जैसे नारे कथित तौर पर दोबारा नहीं लगाएँगे!