राहुल ने सदन के अंदर महज 14 चर्चाओं में ही हिस्सा लिया है। उन्होंने सरकार से एक भी धारदार सवाल पूछने की हिम्मत नहीं की। यही नहीं, राहुल गाँधी ने सदन के अंदर एक भी प्राइवेट मेंबर बिल पेश नहीं किया।
मोदी ने कहा, "केंद्र ने आंध्र के लिए पिछले 55 महीने में कोई कमी नहीं छोड़ी। लेकिन कमी सिर्फ़ इतनी रही कि केंद्र से जो पैसा आया वो यहाँ कि सरकार ने आपको बताया नहीं। यहाँ खर्च़ नहीं किया।"
साढ़े तीन साल तक कुशलतापूर्वक सेवा देने के बावजूद उन्हें पद छोड़ना पड़ा था, इसकी वजह राहुल का वो आदेश था जिसके मुताबिक़ जो 80 साल के हो गए हों उन्हें सत्ता में नही रहना चाहिए।
पीएम ने कहा कि चाहे वो पाकिस्तान से आए हों, अफगानिस्तान से या फिर बांग्लादेश से... जो अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध पारसी और ईसाई हैं, उनको संरक्षण देना हमारा दायित्व है।
राहुल गाँधी हमेशा से ही नए-नए तरीक़ों का इस्तेमाल करके भाजपा के ख़िलाफ़ टीका-टिप्पणी करते नज़र आते हैं। फिर भले ही कॉन्ग्रेस का हर दावा झूठा ही क्यों न साबित हो जाए।
प्रियंका गाँधी की सीट का आवंटन इस ओर भी इशारा करता है कि कहीं न कहीं कॉन्ग्रेस को यह एहसास है कि वो वंशवादी परंपरा को आज भी जीवित रखे हुए है, जिसे दुनिया की नज़र से धूमिल करना होगा।
जब सांसद स्तर के लोग ही इस तरह का मखौल सरेआम उड़ाएंगे तो #MeeToo जैसा अभियान तो धरा का धरा ही रह जाएगा। ख़ामोश बाबू की ख़ामोशी से मचाए शोर कभी ऐसे अभियानों को रफ़्तार पकड़ने ही नहीं देंगे।