ये पत्रकारिता के कुछ ऐसे संस्थान हैं, जो भोजन शुरू करने से पहले अन्न का प्रथम अंश जवाहरलाल नेहरू और दूसरा अंश गाँधी परिवार के लिए रख देते हैं। कम ही लोग ये बात जानते हैं कि BBC जैसे मीडिया गिरोह राहुल गाँधी द्वारा हर चुनाव नतीजों के बाद त्याग दिए गए जनेऊ गले में धारण कर के ही कार्यक्षेत्र को रवाना होते हैं।
NDTV ने अपने शेयरों में हुए बदलाव व इंडियाबुल्स के साथ हुए समझौते के बाद समय पर सब कुछ खुलासा नहीं किया, इसीलिए उस पर 12 लाख रुपए का जुर्माना लगाने का निर्णय लिया गया। इससे पहले एक मामले में NDTV के दोनों प्रमोटरों प्रणय रॉय और राधिका रॉय पर कम्पनी में किसी भी प्रकार का पद लेने से 2 साल का प्रतिबन्ध लगा दिया था।
असली खबर से इतनी बड़ी छेड़-छाड़ के बाद प्रकाशित हुआ 'दि प्रिंट' पर ये लेख इस बात का सबूत है कि आज सरकार के प्रति मीडिया गिरोह में इतनी घृणा भर चुकी है कि यदि कोई व्यक्ति सरकार पर झूठा इल्जाम भी लगा दे तो वो उसे पब्लिक डोमेन में पहुँचाने में गुरेज नहीं करेंगे।
यह जानना आवश्यक है कि जिस पर आज फैसला सुनाया गया, वह अयोध्या में 2005 में हुआ आतंकी हमला था, जबकि बाबरी विध्वंस एक जगह पर विवाद के फलस्वरूप जन्मी घटना थी।
...लेकिन 2019 के चुनावों के बाद से इन नमक-हराम मीडिया गिरोहों ने नेहरू को ऐसे निकाल फेंका है जैसे लोग चाय में से मक्खी को निकाल फेंकते हैं। मीडिया अब समझ गया है कि वो नेहरू को गन्ने की तरह गन्ने की मशीन में ठूँसकर जितना निचोड़ सकते थे, निचोड़ चुके हैं।
"अगर आज़ादी का कोई भी अर्थ है, तो वह लोगों को वह सुनाने का अधिकार है जो वह नहीं सुनना चाहते।" हम निश्चित तौर पर आपकी मुवक्किल स्वाति चतुर्वेदी और कई अन्य पत्रकारों को वह सुनाने के दोषी हैं जो वह नहीं सुनना चाहते। जैसा कि आपकी मुवक्किल के द्वारा प्रदर्शित किया गया, यह मानहानि नहीं आज़ादी है।
प्रेस परिषद ने दोनों अखबारों का माफीनामा भी खारिज कर दिया है और शिकायतकर्ता की शिकायत पर कहा है कि पाठक को अधिकार है कि अगर वो अखबार में किसी तरह की गलती को पाता है तो सीधे परिषद को संपर्क करे।
कुल मिलाकर 'Self-Styled godman' शब्द हमेशा हिन्दू धर्मगुरुओं के लिए इस्तेमाल होता है, यह मीडिया का आम सत्य है। लेकिन इंडिया टुडे समेत पत्रकारिता का समुदाय विशेष इस शब्द का इस्तेमाल उस हेडलाइन में करता है, जिसमें खबर आज़म नामक मौलवी द्वारा हैदराबाद में एक किशोरी के साथ बलात्कार की है।
ईद के जश्न में नृत्य करने को बुलाई गई लड़कियों को 500 लोगों की भीड़ ने जबरन नग्न अवस्था में नृत्य करने को मजबूर किया। इस खबर को लगभग हर मीडिया संस्थान ने कवर किया - कुछ ने सच्चाई को जैसे का तैसा रख कर रिपोर्ट किया, कुछ ने खबर को छिपाते हुए। इंडिया टुडे एक कदम आगे बढ़ गया और...
मीडिया संस्थानों को स्पष्ट करना चाहिए कि उनके नए नियम के मुताबिक़ अगर कोई पत्रकार सड़क किनारे मजदूरी कर रहे किसी मजदूर से इंटरव्यू लेने जाता है तो वह क्या करेगा और क्या नहीं - हथौड़ा उठाएगा या फावड़ा? सीमा पर गोलीबारी कवर करने जाने वाले पत्रकार भी लगे हाथ दो-चार गोलियाँ दागेंगे क्या?