Sunday, September 1, 2024
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मीडिया गिरोह ने RSS प्रमुख मोहन भागवत पर छापी Fake News, PCI के सामने हुए शर्मसार

प्रेस परिषद ने पाया कि यह कोई अनजाने में हुई गलती नहीं है। प्रेस परिषद द्वारा जाँच कमेटी की रिपोर्ट स्वीकार कर ली गई जिसमें कहा गया है कि गलती तब मानी जाती जब इसे कोई जूनियर पत्रकार करता।

कुछ समय पहले इंडियन एक्सप्रेस के स्तंभकार करन थापर और एक्सप्रेस समूह के मराठी दैनिक ‘लोकसत्ता’ के संपादक गिरीश कुबेर ने सरसंघचालक मोहन भागवत के ऊपर लेख लिखा था। इस लेख में सच्चाई को बिना जाने मोहन भागवत के वक्तव्य को तोड़ मरोड़ कर प्रकाशित किया गया था कि 2015 में हुई अख़लाक की मौत पर उन्होंने एक व्याख्यान के दौरान टिप्पणी की, कि वेदों में गाय की हत्या करने वालों को मारने का निर्देश है। जबकि मोहन भागवत ने ऐसी कोई बात नहीं कही थी। उस लेख पर डोंबीवली के स्थानीय श्री अक्षय फाटक ने शिकायत दर्ज की थी, जिसपर भारतीय प्रेस परिषद (Press Council of India) ने दोनों अखबारों के संपादकों के ख़िलाफ़ नोटिस जारी किया। इस घटना पर प्रेस परिषद ने दोनों अखबारों की कड़े शब्दों में निंदा की।

2018 में नई दिल्ली में संघ ने ‘भविष्य का भारत’ नामक तीन दिन की व्याख्यान शृंखला आयोजित की थी। इस दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत का बातचीत का सत्र रखा गया। जिसके बाद 21 सितंबर 2018 को लोकसत्ता में संपादकीय छपा जिसमें अखलाक़ की मौत पर मोहन भागवत के नाम पर झूठे बयान को प्रकाशित किया गया। इसमें लिखा था कि उन्होंने तीन दिन के व्याख्यान के बाद दुखद घटना पर ये प्रतिक्रिया दी है कि वेदों में गाय को मारने वाले की हत्या करने का आदेश है।

इसी दिन इंडियन एक्सप्रेस में भी ऐसा लेख छपा जिसमें थापर ने लेख का टाइटल दिया, “HAS THE GROUND SHIFTED.” जबकि मोहन भागवत ने वास्तविकता में अख़लाक़ मामले में हुई हिंसा और मॉब लिचिंग के प्रति कड़ी निंदा जाहिर की थी, लेकिन अखबारों ने इसे अपने विचारों में लपेटकर पेश करना उचित समझा।

जब इस मामले को 29 मार्च 2019 में प्रेस परिषद में सुना गया तो न्यूजपेपर की ओर से जवाब आया कि उन्हें लगा जो बयान उन तक पहुँचा वो सही बयान हैं, जबकि वास्तव में वह एक भूल थी। लेकिन प्रेस परिषद ने पाया कि यह कोई अनजाने में हुई गलती नहीं है। प्रेस परिषद द्वारा जाँच कमेटी की रिपोर्ट स्वीकार कर ली गई जिसमें कहा गया है कि गलती तब मानी जाती जब इसे कोई जूनियर पत्रकार करता।

तब इस सुनवाई को टाला जा सकता था, लेकिन इस मामले में गलती दिग्गज़ अनुभवी पत्रकारों से हुई है। इसलिए जाँच कमेटी का विचार है कि ये गलती ‘Bona-fide’ (अनजाने में की गई भूल) नहीं है। परिषद ने कहा कि वक्तव्य के तथ्य की जाँच की जा सकती थी। इस तरह के बयानों को आधार बनाते हुए स्तंभकारों को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए, जिसमें दोनों संस्थानों के दिग्गज पत्रकार असफल रहे।

प्रेस परिषद ने दोनों अखबारों का माफीनामा भी खारिज कर दिया और शिकायतकर्ता की शिकायत पर कहा है कि पाठक को अधिकार है कि अगर वो अखबार में किसी तरह की गलती पाता है तो सीधे परिषद से संपर्क करे। परिषद ने इस मामले में इंडियन एक्सप्रेस और लोकसत्ता की कड़े शब्दों में निंदा की जिसकी एक कॉपी जनसंपर्क निदेशक, महाराष्ट्र सरकार और मुंबई के डिप्टी कमिशनर ऑफ पुलिस को भी दी जाएगी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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