वरुण ग्रोवर की कविता 'कागज नहीं दिखाएँगे' को काटती बहुत अच्छी कविताओं में से एक कविता है ऊर्वी सिंह की। यह लखनऊ के एक कॉलेज में अंग्रेज़ी की सहायक अध्यापिका हैं। सुनिए उनकी कविता, उन्हीं की आवाज में, जो तोड़ती है छद्म लिबरलों और स्वघोषित बौद्धिकता का भाव पाले बैठे लोगों का घमंड।
वामपंथियों की पैदल सेना में सबसे ज्यादा लोग दिल्ली जैसी जगहों के कॉलेजों के नए बच्चे होते हैं। व्यवस्थित तरीके से उनके दिमाग में झूठ का सहारा ले कर खास धर्म और विचार के खिलाफ जहर भरा जाता है। रवीश और केजरीवाल से ले कर कामरा, राठी, बनर्जी, पीईंग ह्यूमन आदि इसकी पूरी योजना बनाते हैं।
हाँ, हमें मौलिक आराधना करनी होगी, शक्ति का प्रत्युत्तर शक्ति से ही देना होगा, शिव और शक्ति को एक साथ साधना ही होगा, तभी इन म्लेच्छ शक्तियों की पराजय निश्चित होगी। जब तक सिद्धि न हो, समर को टाल कर सिद्धि करनी होगी…
जब वामपंथी संगठन AISA के छात्रों ने जितेन्द्र सिंह के भाषण के बीच में टोकाटाकी और नारेबाजी की, तो जवाब में ABVP वालों ने भी “कश्मीर से कन्याकुमारी, भारत माँ एक हमारी” का नारा लगाना शुरू कर दिया।
ब्रेनन कॉलेज में एसएफआई की अच्छी पकड़ है। जिसके कारण यहाँ दूसरे संगठनों को काम करने से रोका जाता है। Sfi सीपीएम का छात्र संघ है, जिसे यहाँ के कैंपस में हिंसात्मक राजनीति के लिए जाना जाता है।
JNU वामपंथी की हालिया गतिविधियों के तार अगर एक सिरे से जोड़ते हुए देखा जाए, तो पता चलता है कि ये कोई विद्यार्थी या नेता या समाजवादी नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ एक शहरों में रहने वाला अनपढ़, कूप-मण्डूक, गतानुगतिक है, जिसे किसी भी हाल में क्रांति की तलाश थी और समय आने पर उसने अपनी क्रांति को परिभाषित भी कर डाला है, जिसका उदाहरण ऑन डिमांड आस्तिकता वाली शेहला राशिद है।
अगली बार कोई एन्टीसैप्टिक क्रीम वाले लोग ऐसा विज्ञापन बनाएँगे जिसमें किसी नमाज़ पढ़ने जाते बच्चे पर हिन्दू बच्चों ने बम उछाल दिया हो, और उसकी चमड़ी जल जाए। बाद में पता चले कि वो तो हिन्दू ही था जिसने अपने मजहबी दोस्त के लिए टोपी पहनकर बम झेला! फिर आप चुपके से अपनी क्रीम बेच लेना यह कहकर कि साम्प्रदायिक सद्भावना का परिचायक है यह विज्ञापन।
लेफ़्ट इसलिए बलवान नहीं है कि उसके पास पैसा है। लेफ़्ट इसलिए भी बलवान नहीं है कि उसके पीछे विदेशी ताकते हैं। बल्कि लेफ़्ट इसलिए बलवान है क्योंकि उनमें एकता है