थरूर ने अपनी पार्टी को इस बात पर विचार करने की सलाह दी कि आख़िर इन वोटरों ने कॉन्ग्रेस से नाता क्यों तोड़ लिया? पूर्व केंद्रीय मंत्री ने पूछा कि जब तक हम ये नहीं पता लगाएँगे कि हमारे वोटर हमें छोड़ कर क्यों चले गए, हम उन्हें वापस अपने पाले में लाने में कैसे कामयाब होंगे?
मोदी की हर वक्त आलोचना को गैर वाजिब बताने के उनके बयान को सोनिया गाँधी ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया था। इसके बाद केरल की प्रदेश कॉन्ग्रेस ने थरूर से स्पष्टीकरण माँगा और पूर्व मंत्री वीरप्पा मोइली ने उन्हें 'पब्लिसिटी का भूखा' बताया।
दिल्ली की राउज एवेन्यू अदालत में चल रही सुनवाई के दौरान सुनंदा के भाई आशीष दास ने भी अपना बयान दर्ज कराया। उन्होंने कहा, "वह (सुनंदा) शादीशुदा ज़िंदगी से खुश थीं। आख़िरी दिनों में बहुत परेशान रहने लगी थी। लेकिन वह कभी भी आत्महत्या के बारे में नहीं सोच सकती थी।"
"मैं नरेंद्र मोदी सरकार का एक कठोर आलोचक रहा हूँ और मुझे उम्मीद है कि सकारात्मक आलोचक रहा हूँ। समावेशी मूल्यों और संवैधानिक सिद्धांतों के कारण ही मैंने लगातार 3 बार चुनाव जीता है। मैं अपने कॉन्ग्रेस के साथियों से निवेदन करता हूँ कि मेरे विचारों की कद्र करें, यदि वे उससे सहमत नहीं हैं, तब भी।"
सोनिया गाँधी ने शशि थरूर के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा था कि उन्हें इस तरह का बयान सार्वजनिक तौर पर न देकर पार्टी के समक्ष रखना चाहिए था। सोनिया गाँधी के बयान के बाद से कई कॉन्ग्रेसी नेताओं ने थरूर की...
प्रदेश कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने कहा है कि 5 साल तक मोदी का विरोध करने वाले थरूर बताएँ कि अचानक से उनके सुर क्यों बदल गए हैं। वहीं केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्नितला ने कहा है कि मोदी का गुणगान करने की जरूरत नहीं है।
पिछले दिनों जयराम रमेश ने कहा था कि पीएम मोदी के शासन का मॉडल पूरी तरह नकारात्मक गाथा नहीं है। उनके काम को स्वीकार नहीं करना और हर समय खलनायक की तरह पेश कर कुछ हासिल नहीं होने वाला है। सिंघवी और थरूर ने उनके बयान का समर्थन किया था।
अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि शशि थरूर द्वारा तरार को लिखे पत्र में मेहर के नाम की जगह 'मेरी प्रियतम' कहकर संबोधित किया गया था। ये सब कुछ सुनंदा के लिए किसी प्रताड़ना से कम नहीं था।
"2019 में दोबारा सरकार में आने पर भाजपा एक नया संविधान लिख सकती है, जिससे राष्ट्र पाकिस्तान बनने के मार्ग पर बढ़ जाएगा। फिर, राष्ट्र में अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सामने करने वाला कोई नहीं होगा।"