इंदिरा गाँधी के मामले में स्वामी ने दावा किया कि इंदिरा गाँधी ने अपनी राजनीतिक छवि के चक्कर में अपने सुरक्षा कर्मियों के आतंकी गुटों से मिल जाने की रिपोर्ट के बाद भी सुरक्षा कर्मी नहीं बदले।
अपनी किताब में उसने दावा किया कि हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिए बालासाहेब ने दलितों की हत्या तक करवा दी थी। सुधीर ने अपनी इस किताब में 1974 के वर्ली दंगे का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि इस दौरान मराठवाड़ा की दलित महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुआ था।
1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगे भड़क गए थे। दंगों में सिख समुदाय के हज़ारों लोग मारे गए थे। कुछ वरिष्ठ राजनेताओं, जिनमें से कई कॉन्ग्रेस पार्टी से थे, उन पर हिंसा भड़काने और हमले का आरोप लगाया गया था।
एक ज़माने में फ़िरोज़शाह तुगलक जब शिकार पर निकलते थे तो इसी महल में ठहरते थे। 1993 के बाद इस मालचा महल को लेकर कई जनश्रुतियाँ प्रचलित हुईं, जिनमे कहा गया कि इस महल में रहने वाली विलायत बेग़म ने हीरे को पीसकर निगल लिया और आत्म-हत्या कर ली।
पुलवामा और उरी के हमले अगर इंदिरा सरकार के समय में हुए होते, तो भी पाकिस्तान को कमोबेश वैसा ही जवाब मिलता, जैसे मोदी ने दिया। लेकिन वही 26/11 के बाद, बनारस, दिल्ली से लेकर मुंबई, हैदराबाद और दंतेवाड़ा अनेकों बम धमाकों के बाद भी यूपीए सरकार ने लचर रुख अख्तियार किया।
जेएनयू छात्रों की हड़ताल में जर्मन कोर्स की एक छात्रा शामिल नहीं होना चाहती थी, इसलिए वह क्लास करने के लिए जर्मन फैकल्टी की ओर बढ़ी। उसका नाम था मेनका गाँधी- संजय गाँधी की पत्नी और इंदिरा गाँधी की बहू।
आज़ादी के बाद से ही 'सेक्युलरासुर' सरकारें गौ भक्तों को हिकारत भरी नज़रों से देखती रही हैं। 7 नवंबर 1966 को गौ भक्तों के दमन का वह आदेश भी "इंदिरा इज़ इंडिया, इंडिया इज़ इंदिरा" के अंदाज़ में ही दिया गया था।
इंदिरा, सोनिया और कल प्रियंका में मॉं खोजने वाले चाटुकारों के लिए परिवार के बाहर की महिलाओं का सम्मान मायने नहीं रखता। इसलिए, कभी वे एयरहोस्टेस की आत्महत्या को राजनीतिक हथियार बनाते हैं, तो कभी उपराज्यपाल पर ओछी टिप्पणी करते हैं।
पत्र में इंदिरा गाँधी ने न केवल सावरकर को "भारत का विशिष्ट पुत्र" बताया था, बल्कि यह भी कहा था कि उनका ब्रिटिश सरकार से निर्भीक संघर्ष स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में अपना खुद का महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
जेपी ने अव्यवहारिक राजनीति की, वे ऐसी मसीहाई भूमिका में आ गए थे, जो अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई और अपने ही लोगों के खिलाफ लड़ाई को एक ही तराजू में तौल रहे थे। उन्हें उम्र के उस अंतिम पड़ाव में जरा भी भान नहीं हुआ कि जो लोग उनकी पालकी उठा रहे हैं, उनकी मंशा क्या है?